उत्तराखंड में 7 और 8 अक्टूबर को संपन्न हुए इन्वेस्टर्स समिट में उत्तराखंड सरकार ने वैकल्पिक ऊर्जा के क्षेत्र में 25 हजार करोड़ रुपए के निवेश कराए जाने का दावा किया है लेकिन इसकी तल्ख हकीकत यह है कि इन्वेस्टर्स समिट में इसके लिए तैयार किए गए रंग बिरंगे विज्ञापनों में जिस व्यक्ति के प्लांट का फोटोग्राफ लगाया गया है वह व्यक्ति आज कुर्की होने की नौबत पर खड़ा है। यहां तक कि उनके पास इन्वेस्टर्स समिट में आने के लिए किराया तक नहीं था।
पौड़ी जिले में वर्ष 2015 में 500 किलो वाट का सौर ऊर्जा का प्लांट लगाने वाले डीएस रावत को अभी तक न तो योजना के अंतर्गत 70% सब्सिडी मिली है और ना ही किसी तरह की कोई आर्थिक मदद।
केंद्र ने वैकल्पिक ऊर्जा में किया है ब्लैक लिस्ट
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत वैकल्पिक ऊर्जा को लेकर इन्वेस्टर्स समिट में 25 हजार करोड़ रुपए की एमओयू होने का ढोल पीट रहे हैं लेकिन हकीकत यह है कि मिनिस्ट्री ऑफ न्यू एंड रिन्यूएबल एनर्जी भारत सरकार ने उत्तराखंड सोलर प्लांट लगाने में सब्सिडी देने पर रोक लगा रखी है।
निवेशकों के लिए चाहे जितनी जुमलेबाजी हो रही हो लेकिन वास्तव मे उत्तराखंड सरकार को केंद्र सरकार ने इस सेक्टर में ब्लैक लिस्ट कर रखा है। गौरतलब है कि भारत सरकार ने वर्ष 2022 तक के लिए 350 मेगा वाट क्षमता के सोलर प्लांट लगाने की स्वीकृति दी थी। इसके लिए भारत सरकार ने प्रति मेगा वाट 5 करोड़ रुपए देने थे, किंतु पहले ही कदम पर उत्तराखंड सरकार ने भारत सरकार के साथ धोखा कर दिया। उत्तराखंड के लिए स्वीकृत ग्यारह सोलर प्रोजेक्टों में से 10 सोलर प्रोजेक्ट बिना प्लांट लगाए ही सब्सिडी खाकर चलते बने। इसके कारण डीएस रावत जैसे उद्यमियों को भी सब्सिडी नहीं मिल पाई।
विडंबना देखिए कि हाई कोर्ट ने भी इन फर्जी सोलर प्रोजेक्ट वालों से रिकवरी कराने के आदेश दिए हुए हैं, लेकिन आज की तिथि तक इन लोगों से रिकवरी वापस नहीं कराई जा सकी है।
सीएम ने कहा “हो जाएगा” पर हुआ नहीं !
27 सितंबर 2017 को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के पौड़ी दौरे पर डीएस रावत में उनसे मुलाकात करके उन्हें इस तमाम स्थिति से अवगत कराया था किंतु मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत “हो जाएगा- हो जाएगा” कहकर चलते बने थे।
सीएम को दी चिट्ठी
चिट्ठी हो गई “मिट्टी”
उसके बाद से डीएस रावत तथा उनके अन्य साथी दो-तीन बार मुख्यमंत्री से मिल चुके हैं लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात है।
दिल्ली मे था कारोबार, यहां धारोंधार
डीएस रावत इससे पहले दिल्ली में “रावत बिल्डर्स” कंस्ट्रक्शन के कारोबार में थे और उन्होंने रिवर्स माइग्रेशन के संकल्प के साथ उत्तराखंड में सोलर प्लांट लगाया था, किंतु उनकी सारी जमापूंजी इसी में लुट गई है और अब उनके पास कर्मचारियों को तनख्वाह देने के लिए भी पैसे नहीं बचे हैं।
आज भुखमरी की कगार पर खड़े डीएस रावत को बैंक वाले कर्ज की वसूली के लिए कुर्की करने के लिए तैयार बैठे हैं और सरकार है कि 25 हजार करोड़ के एमओयू होने के बाद ऊर्जा प्रदेश के ख्वाब देख रही है।
गोदी मीडिया भी सरकार की गोद में बैठ कर 56 इंच के सीने का दूध पी रहा है किंतु तल्ख हकीकत यह है कि जब उत्तराखंड में मात्र 500 किलो वाट का सोलर पावर प्लांट लगाने वाले डी एस रावत भुखमरी की कगार पर आ गए हैं तो भला सरकार किस तरह से वैकल्पिक ऊर्जा के क्षेत्र में 25 हजार करोड़ रुपए इन्वेस्ट करने वालों के ख्वाब देख रही है। यह मुंगेरीलाल के हसीन सपने नहीं तो और क्या है !
एक हकीकत यह भी है कि सोलर पावर प्रोजेक्ट के अंतर्गत मिलने वाली सब्सिडी उरेडा विभाग के अधिकारियों ने अपने चहेतों के साथ बंदरबांट कर दी है।
अभी भी जागे, तो जग सकती है उम्मीद
इसकी रिकवरी की जानी चाहिए थी किंतु जीरो टोलरेंस की सरकार में अभी तक वह रिकवरी भी नहीं हो पाई है। यदि चहेतों को बांटी गई सब्सिडी की रिकवरी हो जाती तो एक उम्मीद बनती थी कि डीएस रावत के पावर प्लांट को दी जाने वाली सब्सिडी के पैसे का कुछ हिस्सा तो उन्हें मिलता, जिससे बंदी के कगार पर खड़े उनके पावर प्लांट को कुछ राहत तो मिल पाती। साथ ही भारत सरकार से नए प्रोजेक्ट के लिए मदद की भी राह खुलती।