प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में पंहुची भाजपा सरकार को एक माह हो गया लेकिन कहीं से भी नहीं लगा कि सरकार बदल गई है। वहीं उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व भाजपा सरकार द्वारा लिए गए फैसले मील के पत्थर प्रतीत हो रहे हैं। जहं योगी सरकार धड़ाधड़ फैसले लेकर चर्चा में है वहीं त्रिवेन्द्र सरकार अभी तक खनन और शराब मसले पर ही जूझती नजर आई है। सरकार का केवल एक फैसला ही ऐसा है जिसे उसकी उपलब्धि के तौर पर देखा जाता वह है एनएच मुआवजा घोटाले की सीबीआई जांच की संस्तुति करना लेकिन सरकार ने वहीं पूर्वी सरकार में भ्रष्ट अधिकारियों को अभी तक हटाया नहीं वे अपनी मलाईदार कुर्सियों पर अभी तक जमे हुए हैं। इससे सरकार भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जीरो टॉलरेंस के दावे की फजीहत हो रही है। इसका कारण है कि सरकार ने दागी और विवादित छवि के लोगों को ऊंचे पदों पर बैठाया दिया।
सक्रिय नहीं लग रहे मुख्यमंत्री
जब भी कोई नवनियुक्त मुख्यमंत्री प्रदेश की बागडोर हाथ मे लेता है तो सबसे पहले सभी जिलाधिकारियों और पुलिस कप्तानों की औपचारिक बैठक लेता है। इस बैठक में जिलों से जुड़े विभिन्न बिंदुओं पर लंबी चर्चा की जाती है। लेकिन अभी तक ऐसा कुछ नहीं लगा की मुख्यमंत्री ने ऐसा कुछ किया हो। प्रमुख अधिकारियों के साथ कालऑन मीटिंग हुई लेकिन विभागीय समीक्षा नहीं हुई। अपर सचिवों से उनके विभाग में चल रही योजनाओं की प्रगति की भी जानकारी भी अभी तक नहीं ली गयी। चुनाव के दौरान भाजपा सरकार ने जो वादे किए उसे वह कैसे पूरे करेगी, इसका अभी तक कहीं आता-पता नहीं है।
अब तक के बेहतर आंशिक फैसले
सरकार बनने के बाद कैबिनेट की बैठकों को व्यवस्थित करने का काम किया गया। प्रत्येक माह पहले और चौथे बुधवार को कैबिनेट की बैठक करने के अलावा बैठक में रखे जाने वाले प्रस्तावों को पहले परामर्शी विभाग जैसे न्याय, कार्मिक और वित्त से एप्रूव कराने की व्यवस्था संबंधी फैसले की सभी ने सराहना की। अरसे पुराने विवाद को समाप्त करने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात कर परिसंपत्तियों के बंटवारे के लिए बेहतर प्लेटफॉर्म स्थापित हुआ। पूर्ववर्ती सरकारों में कैबिनेट की बैठक में रखे जाने वाले प्रस्तावों पर ऐसी कोई कवायद नहीं की जाती थी, जिसके चलते ज्यादातर फैसले अमल में आ ही नहीं पाते थे।
सरकार और उसके मंत्रियों का परीक्षाफल
प्रकाश पंत -: खनन, आबकारी, वित्त समेत तमाम महत्वपूर्ण महकमों के मंत्री प्रकाश पंत बीते एक महीने में केवल खनन और शराब के मुद्दे पर ही जूझ रहे है। भ्रष्टाचार समाप्त करने के दावे के अलावा उनकी ओर से कोई नीतिगत फैसला लेने की बात सामने नहीं आई।
अरविंद पांडेय –
: भ्रष्टचार पर जीरो टालरेंस का दावा करने वाली भाजपा सरकार के दबंग विधायक एवं पहली बार मंत्री बने अरविंद पांडे ने फर्जी और अमान्य डिग्री के मामलों में कार्रवाई पर शिथिलता बरती। उन्होने ट्रायल के तौर पर मिड-डे मील की गुणवत्ता बढ़ाने के मकसद से अक्षय पात्र संस्था को देहरादून, हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर और नैनीताल जिलों का आवंटन किया है। यदि इसके परिणाम आशानुरूप आते हैं तो बाद अन्य जिलों में भी इसे आरंभ किया जाएगा। सीएसआर के तहत संसाधनविहीन प्राइमरी स्कूलों को बेहतर करने के लिए भी निर्देश दिए गए हैं।
मदन कौशिक -: प्राधिकरणों में नक्शों को ऑनलाइन एप्लीकेशन करने का फैसला किया गया। इसके निस्तारण के लिए अधिकारियों की जिम्मेदारी भी तय की। अफोर्डेबल हाउसिंग स्कीम और मेट्रो ट्रेन को चलाने के लिए निर्देश देने की बात मदन कौशिक ने कही।
डॉ. धन सिंह रावत -: ‘उत्तराखंड में रहना तो वंदे मातरम कहना है’ जैसे विवादित बयानों को लेकर चर्चा में रहे धन सिंह रावत ने अपने मंत्रालयों में अब तक कोई सराहनीय फैसला नहीं लिया है सिवाय राज्य सहकारी बैंक में एमडी दीपक कुमार की नियुक्ति के अलावा।
सतपाल महाराज -: उत्तराखंड के पर्यटन और धर्मस्व मंत्री सतपाल महाराज की ओर से कोई नीतिगत फैसला अभी तक नहीं लिया गया है। हाँ हाल ही में महाराज ने टिहरी झील के विकास के लिए पूर्व की सरकार में जारी सौ करोड़ का टेंडर जरूर रद किया है।
डॉ. हरक सिंह रावत -: काँग्रेस शासन काल में भी वजनदार मंत्री रहे हरक सिंह रावत को वन, पर्यावरण और आयुष जैसे महकमों की जिम्मेदारी मिली है लेकिन कैबिनेट मंत्री हाल ही में लगी जंगल की आग जैसे संवेदनशील मुद्दे पर भी कुछ महत्वपूर्ण फैसला लेने की स्थिति में नहीं दिखे। उनके अधीन विभागों में इस एक महीने में कोई हरकत दिखाई दी।
सुबोध उनियाल -: हॉर्टिकल्चर यूनिवर्सिटी का देहरादून स्थित कैंप आफिस समाप्त
करके वीसी को पहाड़ों में बैठने का आदेश जारी कर करने के साथ ही ई-नैम (नेशनल एग्रीकल्चर मार्केटिंग) व्यवस्था को अमल में लाया गया। हरिद्वार की मंडी से इसकी शुरुआत की गई है। इसके तहत कुल पांच मंडियों को लाया जाएगा।
यशपाल आर्य -: समाज कल्याण मंत्री यशपाल आर्य को महकमे में आते ही सौ करोड़ से ज्यादा का घपला चर्चा में मिला, जिसकी गंभीरता से जांच कराने के बजाए इसे दबाने के प्रयास ज्यादा हुए। इसके अलावा कोई महत्वपूर्ण फैसला यशपाल आर्य की ओर से नहीं लिया गया।
रेखा आर्या -: अल्मोड़ा के डीएम सविन बंसल के साथ पति के मुकदमों का ब्यौरा मांगने को लेकर विवाद के कारण चर्चा में रहीं राज्य मंत्री रेखा आर्या ने भी अपने स्तर पर भी किसी नीतिगत फैसले की चर्चा अभी तक कहीं नहीं है। हाँ अभी तक उन्होने थोक के भाव जरूर निर्देश दिये और समीक्षा बैठकें कर डाली।