उत्तराखंड सरकार ने नगर पालिका तथा नगर पंचायतों में अनुसूचित जाति जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग की सीटों के आरक्षण में जमकर मनमानी की है।दलित समुदाय का मानना है कि सरकार का दलित विरोधी चेहरा उजागर हुआ है।
सरकार ने आधे से अधिक कोटे की सीटों को जनरल कर दिया है। इससे अनुसूचित जाति जनजाति के लोगों में सरकार के खिलाफ आक्रोश उत्पन्न हो गया है। यहां तक कि बागेश्वर के अनुसूचित जाति के विधायक चंदन रामदास ने सरकार के इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने की बात कही है।
एक तरफ सरकार के जनप्रतिनिधि सहभोज कार्यक्रमों के जरिए दलितों के घरों में भोजन करके दलित हितैषी होने का प्रचार प्रसार कर रहे हैं, वहीं दलितों के कोटे की सीटों को सामान्य किया जा रहा है।
चंदन रामदास सीटों के आरक्षण में हुई इस मनमानी के खिलाफ प्रदेश अध्यक्ष मुख्यमंत्री तथा मुख्य सचिव से भी मिले लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला।
विधायक चंदन रामदास कहते हैं कि अनुसूचित जाति के लिए 19% आरक्षण दिया जाना जरूरी है लेकिन सरकार ने निकायों में सिर्फ 12% आरक्षण तय किया है।
भाजपा को तेजी से कम होते दलित वोट बैंक के कारण यह चिंता है कि यदि पर्याप्त संख्या में आरक्षित की गई तो हो सकता है यह सीटें उनके हाथ से फिसल जाएं। इसलिए भाजपा ने यह रास्ता निकाला है कि अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग की सीटों में से भी कुछ सीटें अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षित कर दी है।
जिस नियमावली का सरकार हवाला दे रही है, उसमें साफ लिखा है कि पिछड़ा वर्ग के लिए 27% आरक्षण दिया जाएगा, किंतु सरकार ने पिछड़ा वर्ग के लिए भी मात्र 14% सीटें आरक्षित की है।
शहरी विकास सचिव आरके सुधांशु कहते हैं कि नियमावली के अनुसार आरक्षण का फारमुला बिल्कुल स्पष्ट है और वार्ड की कुल संख्या गुणा अनुसूचित जाति की संख्या में संबंधित निकाय की कुल जनसंख्या का भाग देकर आरक्षण तय किया जाता है।
चंदन रामदास कहते हैं कि संविधान में आरक्षण की जो व्यवस्था है उसे नियमावली बनाकर नहीं बदला जा सकता इसलिए यदि इस आपत्ति का निराकरण नहीं किया गया तो वह हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। बाहर हाल सरकार की इस आरक्षण व्यवस्था के खिलाफ सत्ता पक्ष के ही विधायक चंदन रामदास के हाई कोर्ट जाने की नौबत आने से सरकार की फजीहत होनी तय है।