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सवालों में सहकारी बैंक

March 9, 2017
in पर्वतजन
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नैनीताल जिले में कुर्मांचल सहकारी बैंक में ऋण वितरण को लेकर भारी गड़बडिय़ां हुई हैं निवेशकर्ताओं को धोखे में रखने का भी हुआ खुलासा।

अमित तोमर

सहकारी बैंक किस तरह से डूब जाते हैं, इसका ए

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क ताजा उदाहरण नैनीताल जिले का कुर्मांचल सहकारी बैंक है। इस बैंक की हल्द्वानी में स्थित शाखा के कर्मचारियों ने स्वयं को फायदा पहुंचाने की नीयत से फर्जी तरीके से ऋण प्राप्त किया। इन कर्मचारियों ने फर्जी तरीके से बैंक से ऋण निकाला और अपने व्यक्तिगत कार्य करके हालांकि कुछ समय बाद वापस जमा भी कर दिया, किंतु इस पूरे प्रकरण से बैंक की साख पर सवालिया निशान खड़े हो गए हैं। बैंक के कर्मचारियों की इन हरकतों के कारण अन्य जिन लोगों ने मकान बनाने अथवा किसी अन्य कार्य के लिए ऋण के लिए आवेदन किया हुआ था, उन्हें लोन नहीं मिल सका। हालांकि यह मामला थोड़ा पुराना है, किंतु बैंक के कर्मचारियों की आपसी फूट के कारण इसका खुलासा हुआ है।
दरअसल हुआ यह कि बैंक प्रबंधन ने 5 लोगों के नाम से 5 फर्जी खाते खोले और प्रत्येक खाता धारक के नाम से 5 लाख रुपए लोन के रूप में निकाल दिए। सीरियल नंबर से खुले इन खातों के नाम पर एक ही दिनांक 23 मार्च 2010 को 25-25 लाख रुपए ऋण स्वीकृत किए गए, किंतु दिलचस्प तथ्य यह है कि बैंक द्वारा लोन की स्वीकृति ऋण वितरण के 4 माह बाद एक ही दिन 24 जुलाई 2010 को दी गई। ऋण लेने के बाद यह सभी खाते लगभग एक ही साथ 4 मई 2012 को ऋण जमा करने के उपरांत एक साथ बंद भी कर दिए गए।
सवाल यह है कि एक के बाद एक सीरियल नंबर वाले खुले इन खातों में एक ही दिन 5-5 लाख रुपए कैसे जमा हुए? एक ही दिन कैसे यह खाते ऋण स्वीकृत होने और वितरण के साथ-साथ 2 साल बाद एक ही दिन ऋण जमा करने के बाद एक साथ कैसे बंद हो गए?
यह भी एक गंभीर सवाल है, जिसने बैंक प्रबंधन की मनमानियों के खिलाफ शिकायत करने की कोशिश की, बैंक के उच्चाधिकारियों ने उनको ही नौकरी से हटा दिया और अपनी मनमानी जारी रखी।
कुर्मांचलनगर सहकारी बैंक एंप्लाइज यूनियन की हल्द्वानी शाखा ने बैंक की मनमानियों के खिलाफ सहकारी समितियों के निबंधक के कार्यालय में शिकायत की 25 मई 2015 को की गई, शिकायत के बाद सहकारी समितियों के निबंधक में भी एंप्लाइज यूनियन की शिकायत को सही पाया था। यहां तक की बैंक की सर्विस रूल का अनुमोदन भी सहकारी समितियों के निबंधक से बिना प्राप्त किए ही चल रहा है। बैंक ने अपनी मनमानी के हिसाब से अपने सर्विस रूल बना रखे हैं और इसमें बैंक के विभिन्न पदों की संख्या निर्धारित नहीं की गई है। इससे यह पता पता नहीं चल सकता कि स्वीकृत पदों की कितनी संख्या है और विभिन्न वर्गों में कितनी संख्या में पद स्वीकृत किए गए हैं। बैंक द्वारा अपने आप बिना किसी स्वीकृति के पदों का सृजन मनमाने ढंग से कर दिया जाता है। इसी प्रकार बैंक के पदों को भरने या वेतनमान का पुनरीक्षण करने के लिए कोई नियम अथवा अवधि भी निर्धारित नहीं है। बैंक प्रबंधन स्टाफ कमेटी व कार्यकारिणी समिति द्वारा अपने स्तर से निर्णय लेकर वेतनमान पुनरीक्षित किए जाते रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि बैंक में वर्ष 2006 से लेकर वर्ष 2012 तक पांच बार वेतनमान संशोधित किए गए हैं। बैंक में प्रचलित सर्विस रूल्स में जेष्ठता व योग्यता के आधार पर पदोन्नति दिए जाने का प्राविधान रखा गया है। योग्यता के लिए मात्र साक्षात्कार ही आधार बनाया गया है, जिससे पदोन्नतियों में पारदर्शिता का अभाव रहता है। इनके अतिरिक्त कर्मचारियों की जेष्ठता सूची का निर्धारण भी नहीं किया गया है। सर्विस रूल्स के नियम 2 के अनुसार सर्विस रूल्स में संशोधन का अधिकार बैंक की प्रबंध कमेटी में निहित किया गया है, किंतु जांच में यह तथ्य भी प्रकाश में आया था कि प्रबंध कमेटी द्वारा गठित कमेटी के स्तर से सर्विस रूल में संशोधन के निर्णय लेकर लागू कर दिया जाता है, परंतु संशोधनों के निर्णय का अनुमोदन बैंक की प्रबंध कमेटी से नहीं कराया जाता है, जो किसी भी प्रकार से विधि सम्मत नहीं है।
जांच कमेटी ने भी अपनी जांच में जो तथ्य पाया था कि बैंक की उप समितियों द्वारा ही महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाते हैं और निर्वाचित प्रबंधक कमेटी के समक्ष इन निर्णयों को नहीं लाया जाता है, इससे ऐसा लगता है कि बैंक में कई समानांतर बोर्ड चल रहे हैं तथा निर्वाचित बोर्ड की भागीदारी बहुत ही कम है। यह किसी भी रूप से पारदर्शी और लोकतांत्रिक नहीं कही जा सकती। जब बैंक की इन मनमानियों के खिलाफ बैंक के यह तीन वरिष्ठ कर्मचारियों ने आवाज उठाई तो बैंक के तीनों कर्मचारी निलंबित कर दिए गए। जांच में यह तथ्य साफ हो गया कि इन कर्मचारियों को बैंक की मनमानियों के खिलाफ आवाज उठाने पर निलंबित किया गया था। यही नहीं बैंक प्रबंधन में आयु सीमा पार कर चुके कर्मचारियों को भी मिलीभगत के चलते बैंक में नौकरियां दे रखी हंै। उदाहरण के तौर पर रेखा, सीमा रहमान की शैक्षिक योग्यता अनुभव एवं जन्म तिथि अभिलेखों के अवलोकन से पता चलता है कि नियुक्ति की तिथि को सीमा रहमान की आयु 46 वर्ष 8 माह 11 दिन थी, जबकि बैंक में प्रचलित सेवा नियमावली के अनुसार सीधी भर्ती हेतु अधिकतम आयु सीमा 35 वर्ष निर्धारित है। प्रबंध कमेटी ने इनकी आयु सीमा में छूट देने के लिए भी कोई प्रस्ताव पारित नहीं किया था। प्रचलित सेवा नियमावली के अध्याय 2 के नियम 6, 18 में यह स्पष्ट प्राविधान है कि कोई भी नवनियुक्त कार्मिक तभी अस्थाई नियुक्ति पा सकेगा, जब वह अपनी परिवीक्षा अवधि को पूरी कर लेगा, किंतु सीमा रहमान को नियमित नियुक्ति पत्र 5 दिसंबर 2014 में ही अपनी स्थाई रूप से नियमित नियुक्त कर दिया गया, जो कि सेवा नियमावली का सरासर उल्लंघन है।
सेवा नियम मूल्यों का उल्लंघन करके सीमा रहमान को सीधे अधिकारी वर्ग-1 में नियुक्ति दी गई। इस मनमानी के खिलाफ बैंक के अधीनस्थ स्टाफ में भी काफी रोष व्याप्त है। बैंकिंग में मनमानियों का आलम यहीं नहीं रुकता। बैंक ने पहले भी कई ऐसे ऋण दिए, जिसमें बैंक प्रबंधन की मिलीभगत थी और इन दिनों में भी बैंक में वन टाइम सेटलमेंट के माध्यम से ब्याज की माफी दे दी, लेकिन इसमें निबंधक की अनुमति प्राप्त नहीं की। बैंक की प्रबंध कमेटी और ऋण समिति ने समय-समय पर एकमुश्त समाधान योजना के अंतर्गत ब्याज माफ किया है, जबकि बैंक की कोई भी एकमुश्त समाधान योजना नहीं चल रही थी। इससे साफ हो जाता है कि बैंक द्वारा संबंधित निर्णयों को बिना निबंधक की स्वीकृति के ब्याज माफी देकर प्रबंध कमेटी ने बैंक को आर्थिक क्षति पहुंचाई।
बैंक की मंडी शाखा से पांच-पांच लाख भवन मरम्मत के नाम पर दिए गए, जिसमें बैंक में प्रचलित नियमों का पालन नहीं किया गया। बैंक द्वारा यह समस्त रिटर्न भवन मरम्मत के लिए वितरित किए गए हैं, जबकि उक्त सभी दिनों की स्वीकृति 24 जुलाई 2010 को ऋण वितरण के पश्चात दी गई थी। इन पांचों ऋण वितरण पत्रावलियों में भवन का नक्शा उपलब्ध नहीं था। जिस भवन की मरम्मत हेतु ऋण दिया गया था। उसी भूमि के स्वामित्व से संबंधित दस्तावेज पत्रावलियों में उपलब्ध नहीं थे। ऋण लेने के लिए किसी और की भूमि बंधक की गई थी, लेकिन बंधक विलेख पर बंधक रखी गई भूमि का भी कोई विवरण अंकित नहीं किया गया था। बंधक हेतु लगाए गए स्टांप पेपर भी ऋण स्वीकृति से काफी पहले की तिथियों के लगाए गए थे। भवन ऋण प्रार्थना पत्र अधूरे भरे पाए गए तथा किसी भी ऋणी के आय प्रमाण पत्र पत्रावलियों में नहीं थे और न ही अप्रेजल रिपोर्ट पत्रावली में उपलब्ध पाई गई।
दस्तावेज बताते हैं कि उन 500 दिनों की खाते की स्टेटमेंट के अनुसार खाता संख्या 124 126 एवं 127 एक ही तिथि को बंद हुए हैं। खाता संख्या 127 को बंद करते समय अवशेष धनराशि को खाता संख्या 128 में जमा किया गया है। पांचों खातों में एक ही व्यक्ति की जमानत पर ऋण दिया गया था तथा उसी व्यक्ति द्वारा खातों में धनराशि जमा की गई हो सकती है। इसकी संभावना जांच समिति ने भी जताई थी।
बैंक प्रबंधन ने बैंक की कार्य प्रणाली को पेशेवर तरीके से सीखने के नाम पर गुडग़ांव की एक अदयंत नामक फर्म को सलाह देने के लिए 25 लाख रुपए दिए। भुगतान के अतिरिक्त कंपनी के रहने खाने और घूमने-फिरने का खर्चा भी बैंक ने ही उठाया, किंतु उक्त फर्म के साथ अनुबंध किए जाने का प्रस्ताव 28 जुलाई 2014 को हुआ, किंतु अनुबंध उक्त प्रस्ताव की तिथि से पूर्व ही 5 जुलाई 2014 को कर लिया गया। इससे यह साफ हो जाता है कि फर्म का चयन प्रबंध समिति के प्रस्तावों से पूर्व ही कर लिया गया था। इसके अलावा फर्म के चयन के लिए भी बैंक ने अन्य फर्मो से किसी भी प्रकार की तकनीकी अथवा वित्तीय निविदाएं आमंत्रित नहीं की। इतनी बड़ी धनराशि का अनुबंध किए जाने से पहले प्रोक्योरमेंट नियमावली का पालन किया जाना चाहिए था, ताकि अनुबंध में पारदर्शिता बनी रहती, लेकिन बैंक ने ऐसा नहीं किया। बैंक में लगातार घाटे होने के बावजूद भी निवेशकर्ताओं को धोखे में रखकर फर्जी लाभ होना दिखाया और शेयर फोल्डर को लाभांश का भुगतान किया, जबकि घाटे में 2013-14 में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हुई है।
यही नहीं कुर्मांचल नगर सहकारी बैंक के सचिव के पद पर मनोज शाह की नियुक्ति भी सवालों के घेरे में हैं। निबंधक सहकारी समितियों की ओर से कराई गई एक जांच में सचिव की नियुक्ति नियम विरुद्ध पाई गई।
इसके अलावा बैंक अपने कार्य क्षेत्र से बाहर आर्थिक अनुदान के नाम पर हजारों रुपए पिछले कई वर्षों से लुटा रहा है, किंतु इसका कोई भी दस्तावेज बैंक के पास नहीं है। बैंक उत्तराखंड परिषद नाम की लखनऊ स्थित संस्था को 51 हजार रुपए प्रति वर्ष लुटा रहा है, जबकि यह संस्था लखनऊ की है और इसकी अनुमति भी सहकारी समितियों के निबंधक से नहीं ली गई है।
बैंक में चतुर्थ श्रेणी कार्मिकों की नियुक्ति भी मनमाने तरीके से की है। इनकी नियुक्ति प्रबंधक कमेटी के अनुदान अनुमोदन के पश्चात की जाती है, भर्तियों में ऐसा नहीं किया गया। बैंक में कार्यरत वरिष्ठ अधिकारी अखिल साह से लेकर कई अन्य स्टाफ की नियुक्तियां भी सवालों के घेरे में हैं।
कुल मिलाकर मनमाने ढंग से ब्याज माफ कर देना, ऋण वितरण करना तथा मनमाने ढंग से बिना निविदा की रही थी। संस्थाओं को लाखों रुपए के अनुबंध करने के अलावा मनमानी नियुक्तियां करने से बैंक प्रबंधन पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। यदि इनका जल्द निस्तारण नहीं किया गया तो बैंक की साख पर सवाल खड़े हो सकते हैं, जिसके चलते आने वाले समय में बैंक की वित्तीय सेहत के साथ ही निवेशकों और खाताधारकों के लिए भी गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो सकती है।


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