प्रचंड बहुमत की सरकार के बावजूद अपनी अक्षमता तथा गलत सलाहों के चलते मीडिया में लगातार आलोचनाओं के शिकार हो रहे मुख्यमंत्री मीडिया को ट्रैप करने के चक्कर मे खुद भी इस ट्रैप में फंस गए हैं।
मीडिया के खिलाफ मुखर
पहले उत्तरा प्रकरण में देशव्यापी मीडिया में आलोचनाओं के दौर से मुख्यमंत्री उभरे भी न थे कि दोबारा झांपु गाने को लेकर विचलित हो गए। इससे पूरी तरह उभर पाते कि इन्वेस्टर्स समिट में अडानी के वीडियो प्रकरण को दिल पे ले बैठे।
मुख्यमंत्री ने अपने काम पर ध्यान देने के बजाय मीडिया को दंड से भयभीत करने की नीति अपना ली।
पहले पर्वतजन न्यूज़ पोर्टल के खिलाफ एफआईआर और अब समाचार प्लस के सीईओ उमेश कुमार पर शिकंजा कसने को लेकर मुख्यमंत्री खुद भी इस शिकंजे पर अपनी पकड़ बनाए रखने में ही अपनी सारी ऊर्जा गंवा रहे हैं।
ऊर्जा का अधोपतन
समय निकलता जा रहा है और वह लगातार चार दिन से अखबारों के पूरे-पूरे पेज पर नकारात्मक समाचारों के कारण चर्चाओं में हैं। जब इस मुकदमे में कुछ खास नहीं मिला तो फिर अब नए-पुराने सभी मुकदमों को खुलवाने की तैयारी की जा रही है। साथ ही उमेश कुमार से नाराज हर उस सूत्र से संपर्क साधा जा रहा है जो इस मामले में उमेश कुमार के खिलाफ सरकार की मदद कर सके। यानि दुश्मन का दुश्मन दोस्त।
मुख्यमंत्री खुद इस प्रकरण को लेकर बेहद संजीदा हैं और हर एक गतिविधि की जानकारी ले रहे हैं। पुलिस के आला अधिकारी उन्हें देर शाम तक इस प्रकरण की अपडेट दे रहे हैं। और हर कोई उन्हें इस मामले में अपनी अपनी तरह से सलाह दे रहा है। कोई नजदीकी बनाने के लिए ऐसा कर रहा है तो कोई चेहरा दिखाने को। जाहिर है कि शुभचिंतक के वेश मे आ रहे इन सलाहकारों की सुननी भी पड़ रही है। लेकिन इन सब चीजों को लेकर मुख्यमंत्री का वह कीमती समय जाया हो रहा है जो निकाय चुनाव से लेकर आगामी लोकसभा चुनावों तक सरकार को मजबूत करने में काम आ सकता था।
चार अखबारों को साधकर तथा पुलिस, प्रशासन तथा कानूनी सलाहकारों की कमान अपने हाथ में होने के भरोसे पर मुख्यमंत्री ने समाचार प्लस के मुखिया उमेश कुमार के खिलाफ जंग तो शुरू कर दी है लेकिन स्टिंग प्रकरण में सरकार के हाथ अभी तक लगभग खाली हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री की स्थिति एक ऐसे व्यक्ति की तरह हो सकती है जिसके हाथ की रिवाल्वर की गोलियां अचानक खत्म हो जाए और वह चौतरफा निशानेबाजों से घिरा हो।
मुट्ठी खुल गई तो खाक की ( सात सवाल)
उमेश कुमार के प्रकरण में सरकार की बंद मुट्ठी का जायजा लेने के लिए कुछ सवाल काफी हैं।
पहला प्रश्न यह है कि जिस आयुष गौड़ नामक एक कर्मचारी ने उमेश कुमार के शिकार खिलाफ जान का खतरा होने की बात कही है वह 10 अगस्त को मुकदमा लिखाने के बाद से अभी तक उमेश कुमार के चैनल में नौकरी क्यों कर रहा है !आखिर उसने इस्तीफा क्यों नहीं दिया !
दूसरा सवाल यह है कि एफ आई आर में खुद आयुष गौड़ यह बात कहता है कि उसने उमेश कुमार के कहने पर कई स्टिंग किए थे तो फिर स्टिंग करने वाला आयुष गौड़ अभी तक खुद कैसे बाहर घूम रहा है ! अर्थात जिस पर स्टिंग कराने का आरोप है वह तो जेल में है और जिसने खुद स्टिंग किया वह बाहर कैसे है !!
तीसरा सवाल यह है कि एक कर्मचारी होने के नाते यदि आयुष गौड़ को स्टिंग नहीं करना था तो फिर वह मना भी कर सकता था अथवा नौकरी भी छोड़ सकता था लेकिन ऐसा उसने नहीं किया आखिर क्यों !!
चौथा सवाल यह है कि आयुष गौड़ ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि वह उमेश कुमार के साथी राहुल भाटिया के विषय में नहीं जानता कि वह कहां रहता है, किंतु एफ आई आर में राहुल भाटिया के देहरादून स्थित आवास का पता साफ-साफ लिखा है। ऐसे में यदि आयुष गौड़ को राहुल भाटिया के निवास का पता नहीं था तो फिर एफ आई आर मे यह पता किसने लिखवाया ! आयुष गौड़ के पीछे कौन है !!
पांचवां सवाल 10 अगस्त को दर्ज एफआईआर में यदि दम होता तो पुलिस उमेश कुमार को तभी गिरफ्तार कर लेती। लगभग साढे 3 महीने बाद भी सरकार के हाथ लगभग खाली आखिर क्यों !!
छटा सवाल यह है कि एक ओर सरकार और आयुष गौड़ कह रहे हैं कि ना कोई स्टिंग हुआ और ना पैसे का लेनदेन हुआ तो फिर जब वाकई स्टिंग नहीं हुआ तो फिर उमेश के खिलाफ यह ऐलान ई जंग क्यों !
सातवां सवाल यह है कि आयुष तो खुद कह रहे हैं कि उसने ओम प्रकाश तथा मुख्यमंत्री के भाई बिल्लू का भी स्टिंग किया है तो आखिर अब तक उनसे किसी तरह की पूछताछ क्यों नहीं शुरू हुई है !
सांप-छछुंदर जैसी हालत
कहीं ऐसा तो नहीं कि सरकार को यह डर था कि कहीं किसी अफसर या करीबी का स्टिंग चैनल पर न चल जाए और सरकार की फजीहत हो जाए, इसलिए आनन फानन उमेश को गिरफ्तार कर लिया गया !
यह बात तो साफ है कि मृत्युंजय मिश्रा स्टिंग में करोड़ों के लेनदेन की बात ओमप्रकाश की शह पर ही कर रहा था तो फिर ओमप्रकाश से तो पूछताछ बनती ही है। स्टिंग के दाग से बचने के लिए इस जंग को भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टोलरेंस की लड़ाई का जामा पहनाना कितना कारगर होता है, यह देखने वाली बात होगी।
कहीं ऐसा तो नहीं कि सरकार उमेश पर शिकंजा कस कर खुद भी फंस गई हो और यह लड़ाई अब सांप और नेवले की बन गई है। जिसका भी शिकंजा कमजोर पड़ेगा, उसका शहीद होना तय है।
यदि सरकार यह स्वीकार करती है कि स्टिंग हुआ है तो फिर जिसका स्टिंग हुआ है, उसके खिलाफ भी कार्यवाही करनी ही पड़ेगी और यदि स्टिंग की बात नकारी जाती है तो फिर उमेश कुमार पर भी पकड़ ढीली करनी ही पड़ेगी और यदि पकड़ ढीली हुई तो यह तय है कि देर सबेर किसी न किसी माध्यम से यह स्टिंग जरूर जनता के सामने आएंगे और फिर सरकार की फजीहत होनी तय है।
फिलहाल यह समय के गर्भ में है कि सांप नेवले की लड़ाई में कौन सांप है और कौन नेवला !
अलोकप्रियता का बढता ग्राफ
फिलहाल इतना तो तय है कि मीडिया के खिलाफ सरकार के इस कदम की कहीं भी तारीफ नहीं हो रही। मुख्यमंत्री के प्रलोभन मे अखबारों में उमेश कुमार के खिलाफ नेगेटिव रिपोर्टिंग से सीएम खुद भी प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष मीडिया के दबाव का शिकार होते जा रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ उनके अच्छे कार्यों को इस प्रकरण ने फिलहाल सुर्ख़ियों से पूरी तरह से विलोपित कर दिया है।
एक स्थापित कहावत है कि व्यक्ति केवल पहला कदम उठाने के लिए ही स्वतंत्र होता है उसका दूसरा कदम पहले कदम से ही बंध जाता है। सीएम ने भी चाहे जो सोच कर यह पहला कदम उठाया हो लेकिन अब वह चाहकर भी अपनी मर्जी से दूसरा कदम नहीं उठा सकते। अब पहले कदम से उत्पन्न हुई परिस्थितियां ही उनके दूसरे कदम की दिशा और दशा तय करेंगी।
यदि ऐसे दौर में सरकार से कोई चूक होती है तो आने वाले समय में उन्हें तीव्र आलोचनाओं के लिए खुद को अभी से तैयार कर लेना चाहिए।