महेशचंद्र पंत
रुद्रपुर नगर निगम अपनी स्थापना के समय से ही घोटालों के लिए खासा चर्चित रहा है। अब आरटीआई में भी इसका खुलासा हो गया है कि निगम में राजनेताओं, अफसरशाही और ठेकेदारों के गठजोड़ से बड़े घोटालों का खेल खेला जा रहा है।
आरटीआई में मिले दस्तावेजों में कई खुलासे हुए हैं। वर्ष 2017 तक नगर निगम रुद्रपुर के सभी 2६ वार्डों का कूड़ा उठाने वाले ठेकेदार को साफ सफाई के एवज में लगभग 5 लाख हर महीने दिए जाते थे, लेकिन नगर निगम में नए परिसीमन के कारण वार्डों की संख्या ४० हो गई है। जिसके लिए नियमों को ताक पर रखकर ठेकेदार को लाभ पहुंचाने के लिए सफाई एवं कूड़ा निस्तारण के एवज में १८ लाख से अधिक का ठेका दे दिया गया है।
ठेके की नियमावली के अनुसार साफ सफाई एवं निस्तारण का ठेका 3 साल के लिए दिया जाना चाहिए था, लेकिन अब इसे 5 साल 8 महीने के लिए दे दिया गया, जो कि नियम विरुद्ध है। इस तरह दो करोड़ 70 लाख सालाना के अलावा ठेकेदार को प्रतिवर्ष 10′ राशि बढोतरी का भी अधिकार दिया गया।
नगर निगम रुद्रपुर ने राज्य से बाहर के एक अखबार में 2 अगस्त 2017 को कूड़ा शहर से बाहर डलवाने के लिए निविदाएं आमंत्रित की। इससे टेंडर की जानकारी बहुत कम लोगों को पता चल पाई। जिस कारण मात्र तीन निविदाएं ही प्राप्त हुई। जिन तीन लोगों की निविदाएं दी गई, उन सभी ने एक ही दिन में एक ही समय पर ऋषिकेश के चंदा स्टांप विक्रेता से 100 रुपए का स्टाप पेपर खरीदे। इससे टेंडर प्रक्रिया पर भी सवाल उठे।
नियमानुसार एक करोड़ से अधिक का ठेका ई टेंडरिंग के जरिए होता है व ए क्लास ठेकेदार ही उस टेंडर में भाग ले सकते हैं, लेकिन इस टेंडरिंग में ऐसा नहीं हुआ।
ठेका अधिकतम तीन वर्ष के लिए दिया जा सकता है, जबकि यहां नियमों को ताक पर रखकर 5 साल 8 महीने के लिए जीरो वेस्ट इन कारपोरेशन को 15 करोड़ 87 लाख रुपए में ठेका दे दिया गया। चौंकाने वाली बात यह है कि जिन नियमों का हवाला देकर धनराशि 5 लाख प्रतिमाह से बढ़ाकर 18 लाख 10 हजार की गई, वह अभी अस्तित्व में ही नहीं है।
ठेकेदार को 2′ रेवेन्यू स्टांप एग्रीमेंट देना होता है। इस प्रकार इस टेंडर प्रक्रिया में 15 करोड़ 87 लाख का रेवेन्यू स्टांप लगभग 30 लाख से ज्यादा का होता है, लेकिन ठेका लेने वाली कंपनी जीरो वेस्ट इन कारपोरेशन से नगर निगम ने स्टांप ड्यूटी जमा करने के बजाय मात्र सौ रुपए के स्टांप पर कंपनी के साथ एग्रीमेंट कर लिया। जिससे सरकार को ३० लाख का चूना लगाया गया।
जीरो वेस्ट इन कारपोरेशन द्वारा नगर निगम कार्यालय में जमा कराया गया आयकर रिटर्न तथा बैलेंस शीट बहुत ही कम मूल्य के हैं। मसलन जीरो वेस्ट इन कारपोरेशन के 2016-17 के इनकम टैक्स रिटर्न में 22 लाख ७ हजार 205 की आय दिखाई गई। इसी प्रकार लाभ हानि खाते में शुद्ध लाभ 49 लाख दिखाया गया है।
जीरो वेस्ट इन कारपोरेशन के पास मात्र 5 लोगों का ही लेबर लाइसेंस उपलब्ध है, जबकि नगर निगम में कंपनी में 50 से ऊपर कर्मचारी कार्यरत हैं। इस प्रकार कई तरह से कंपनी को लाभ पहुंचाने का षडयंत्र रचा गया है। कर्मचारियों का ईएसआई/पीएफ का भुगतान भी किया जाना संदिग्ध है।
कंपनी को यह टेंडर इस शर्त के साथ दिया गया था कि कंपनी जैविक और अजैविक कूड़ा का निस्तारण अलग-अलग तरह से करेगी और इससे जैविक खाद बनाई जाएगी। यही नहीं जैविक खाद से जो आय अर्जित होगी वह नगर निगम के खाते में जानी थी, लेकिन कंपनी ने किसी भी शर्त को पूरा नहीं किया।हालत यह हैं कि स्वच्छता मिशन के नाम पर जनता को लूटा जा रहा है, जबकि डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन के एवज में प्रत्येक घर के 50 रुपए वसूला जा रहा है।
इसके अलावा ठेकेदार का हैसियत प्रमाण पत्र भी टेंडर में नहीं लगाया गया, जबकि ठेकेदार को ठेके की 80′ का हैसियत प्रमाण पत्र देना होता है।
नियम के अनुसार जिस कंपनी को 18 लाख 10 हजार प्रतिमाह का ठेका दिया गया, उसका टर्नओवर इससे ज्यादा होना चाहिए, जबकि ठेका लेने वाली कंपनी जीरो वेस्ट इन कारपोरेशन की आइटीआर में सिर्फ 4 लाख ही दिखाया गया है।
सवाल यह है कि बिना हैसियत प्रमाण पत्र और उपयुक्त आइटीआर न होने के बावजूद जीरो वेस्ट इन कारपोरेशन को यह ठेका कैसे दे दिया गया?
जाहिर है कि निगम में राजनेताओं, अफसरशाही और ठेकेदारों के गठजोड़ के बिना इस तरह के बड़े घोटाले किए जाने संभव नहीं है।
कुल मिलाकर यदि नगर निगम रुद्रपुर के इस मामले की उच्च स्तरीय जांच की जाए तो बड़ा घोटाला सामने आ सकता है और कई उच्चाधिकारियों पर इसकी गाज गिरनी तय है। अब देखना यह होगा कि जीरो टोलरेंस की सरकार इस मामले की तहकीकात करती है या फिर इस ओर आंखें मूंदना ही बेहतर समझती है।