कमल जगाती, नैनीताल
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने प्रदेशभर में पत्रकारों की दुर्दशा पर आधारित एक जनहित याचिका में आदेश जारी करते हुए सरकार को पत्रकारों की सामाजिक और माली हालत सुधारने को कहा है।
कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा की खंडपीठ ने 31 अक्टूबर 2018 को नैनीताल निवासी रविंद्र से प्राप्त एक पत्र को जनहित याचिका के रूप में ले लिया है। शिकायत में कहा गया है कि नियमित रूप से नियुक्त संवाददाता और अनियमित संवाददाता आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे हैं। कई जांच समितियों के सुझाव के बावजूद उन्हें मिलने वाली पगार या तनख्वाह बहुत कम है। पत्रकारों का समाज में बहुत बड़ा योगदान है। याचिकाकर्ता ने न्यायालय से श्रम और रोजगार मंत्रालय, राज्य सरकार व् अन्य को निर्देश जारी कर संवाददाताओं के सामाजिक और आर्थिक जरूरतों को पूरा करने को कहा है। सरकार की तरफ से चीफ स्टैंडिंग काउन्सिल परेश त्रिपाठी ने बताया सरकार द्वारा पत्रकारों के लिए विभिन्न योजनाएं रखी गई है, जिसके लिए पांच करोड़ रूपये अवमुक्त किये गए हैं। उन्होंने न्यायालय को बताया किसी पत्रकार की मौत या शारीरिक नुकसान होने पर सरकार पांच लाख रूपये और विशेष परिस्थितियों पर दस लाख रूपये देती है। न्यायालय को ये भी बताया गया कि साठ वर्ष से अधिक सात पत्रकारों को इसी मद से वृद्ध पेंशन दी जा रही है। पत्रकारों के स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं के लिए 25 लाख रूपये का बजट रखा गया है। मान्यता प्राप्त पत्रकारों को उत्तराखंड रोडवेज की बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा भी दी जाती है।
खंडपीठ ने सरकार से कहा की वो ‘दा वर्किंग जर्नलिस्ट एंड न्यूज़ पेपर एम्प्लॉएंस एक्ट 1955’ के तहत पत्रकारों के श्रम कानून को लागु कराएं। न्यायलय ने कहा कि सेक्शन 9 के अनुसार केंद्र सरकार जरुरत पड़ने पर एक वेज बोर्ड बनाए। न्यायालय ने जनहित याचिका को निस्तारित करते हुए तीनों पक्षों से कहा है कि वो 11 नवम्बर 2011 के नोटिफिकेशन के अनुसार पत्रकारों की स्थिति में सुधर लाएं। न्यायालय ने राज्य सरकार से कहा है कि वो वृद्ध पत्रकारों की पेंशन को खर्चों के अनुरूप बढ़ाएं। खंडपीठ ने सरकार से कहा कि वो आंध्रप्रदेश और ओड़िसा की तर्ज पर पत्रकारों के लिए वेलफेयर फण्ड नियमावली बनाएं। न्यायालय ने सुझाव देते हुए कहा है की राज्य सरकार के अपर मुख्य सचिव और निदेशक सूचना पत्रकारों के स्वास्थ्य और पेंशन स्कीम बनाकर इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार की तर्ज पर अलग मद बनाएं। अन्त में न्यायालय ने सरकार से कहा कि वो चाहे तो पत्रकारों को हाऊसिंग फ्लैट्स स्कीम या सरकारी हाऊसिंग स्कीम में आरक्षण दे सकती है।