मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के वीटो से देहरादून मेयर का टिकट भाजपा नेता सुनील उनियाल गामा को दे तो दिया गया, किंतु सुनील उनियाल गामा के लिए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा सजाई गई फील्डिंग लाख कोशिश के बावजूद भी धरातल पर उतर नहीं पा रही। दो दिन पहले सुनील उनियाल गामा को दिए टिकट के कारण आक्रोशित भाजपा नेता उमेश अग्रवाल और अनिल गोयल को गामा के कार्यक्रमों में शामिल जरूर किया गया, किंतु नाराज नेताओं की बॉडी लैंग्वेज से भाजपा असहज है।
सुनील उनियाल गामा को मेयर बनाने के लिए हाईकोर्ट के उस आदेश, जिसमें कोर्ट ने अवैध बस्तियों को हटाने का आदेश दिया था, को त्रिवेंद्र रावत ने अध्यादेश लाकर तीन साल के लिए रुकवा दिया, ताकि बस्तियों के हजारों वोट सुनील उनियाल गामा को मिल सके, किंतु दो नवंबर २०१८ को नैनीताल हाईकोर्ट के नए आदेश से सुनील उनियाल गामा का चुनाव अभियान बैकफुट पर आ गया है। हाईकोर्ट ने उत्तराखंड सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश के बाद कल देहरादून की १२९ बस्तियों को तीन माह के भीतर हटाने का आदेश दे दिया है।
ज्ञात रहे कि सरकार द्वारा अध्यादेश लाने के बाद देहरादून की सभी बस्तियों में सुनील उनियाल गामा और मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के बड़े-बड़े होर्डिंग लगा दिए थे। चारों ओर इन दोनों को हीरो के रूप में प्रदर्शित किया गया, किंतु बीच चुनाव में न्यायालय द्वारा १२९ बस्तियां हटाने के फैसले से त्रिवेंद्र रावत और सुनील उनियाल गामा दोनों सकते में हैं।
अध्यादेश लाकर जो मुख्यमंत्री कल तक सुनील उनियाल गामा के लिए मेयर की सीट का सेफ पैसेज तैयार कर रहे थे, अचानक आए इस नए फैसले से अब इन्हें नए रणनीति बनाने को मजबूर होना पड़ेगा। सरकार की मंशा इन बस्तियों के लाखों निवासियों को प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत शिफ्ट करने की थी, किंतु न्यायालय द्वारा तीन माह की समय-सीमा के बाद अब देहरादून नगर निगम का चुनाव रोचक मोड़ पर आ गया है। तकरीबन ४० हजार भवनों और दो लाख की आबादी वाली इन बस्तियों के मतदाता बेघर होने की कगार पर पहुंच चुके हैं, किंतु इन दो लाख लोगों के बेघर होने से अधिक चिंता मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत को देहरादून मेयर की हॉट सीट को लेकर है, जिसे वह अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ चुके हैं।
हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद नदी किनारे वाहनों की पार्किंग से लेकर तमाम तरह के निर्माण हटाना सरकार की बाध्यता बन जाएगा। देखना है कि न्यायालय के इस नए आदेश के बाद अब त्रिवेंद्र सिंह रावत क्या रुख अख्तियार करते हैं।