फर्जी दस्तावेजों के आधार पर भर्ती मास्टरों को पकड़ में आने के बाद सिर्फ बर्खास्त करके छोड़ देना विभागीय मिलीभगत का परिचायक है
जगमोहन रौतेला/हल्द्वानी
उत्तराखंड बनने के बाद से बेसिक व माध्यमिक ही नहीं, बल्कि उच्च शिक्षा में फर्जी डिग्रीधारी लोगों के अध्यापक बनने की चर्चाएं आम होती जा रही हैं। इनमें से अधिकतर डिग्रीधारी उत्तर प्रदेश व बिहार से शिक्षा पाए हुए हैं। हालात इतने गंभीर हैं कि विभागीय उच्चाधिकारियों व मंत्रियों तक से शिकायत किए जाने पर इस तरह के मामलों में कोई गंभीरता नहीं दिखाई जा रही है और जांच न किए जाने से फर्जी डिग्रीधारी ये लोग मजे से उत्तराखंड के बेसिक, माध्यमिक व विश्वविद्यालयों में अध्यापन का कार्य करके यहां के बच्चों के जीवन के साथ बेधड़क होकर खिलवाड़ कर रहे हैं, पर किसी को भी इसकी चिंता नहीं है।
पकड़ से बाहर फर्जी मास्टर
केवल नैनीताल व ऊधमसिंहनगर जिलों की ही बात करें तो गत 8 जून 2016 को ऊधमसिंहनगर जिले में बेसिक स्कूलों के 13 मास्टरों को बीटीसी के फर्जी प्रमाण पत्र होने के आरोप में बर्खास्त किया गया था। बर्खास्त किए गए मास्टर गदरपुर, बाजपुर, सितारगंज, रुद्रपुर विकासखण्डों में तैनात थे। विभाग को इस बारे में शिकायत मिली थी कि जिले 20 लोग फर्जी बीटीसी प्रमाण पत्रों के आधार पर मास्टरी कर रहे हैं। विभाग ने सभी संदिग्धों की जांच परीक्षा नियामक इलाहाबाद के रजिस्ट्रार कार्यालय से करवाई, जिसमें इन मास्टरों के नाम, पिता का नाम व अभिलेखों में भिन्नता मिली। इसके बाद इन विकासखण्ड के विभिन्न बेसिक स्कूलों में तैनात मास्टरों बलवीर सिंह, योगराज सिंह, परमानन्द, पुरुषोत्तम कुमार, महेशचन्द्र, मेहर सिंह, खेन्द्रपाल, कान्ता प्रसाद शर्मा, हेमराज सिंह, नौबहार सिंह, अनिल कुमार, तेजपाल सिंह, नरेश कुमार को बर्खास्त कर दिया गया था। बाकी सात अन्य मास्टरों के अभिलेखों में मामूली अंतर मिलने से उन्हें एक बार फिर से साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर दिया गया।
ऊधमसिंहनगर के जिला शिक्षा अधिकारी, बेसिक दिनेशचन्द्र सती कहते हैं, जाली शैक्षिक प्रमाण पत्रों की जांच में पुष्टि होने के बाद 17 अध्यापकों को बर्खास्त कर दिया गया था। बर्खास्त करने के साथ इन सभी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाने के आदेश भी संबंधित विकासखण्डों के उप शिक्षा अधिकारियों को दे दिए गए थे। उन्होंने किन कारणों से मुकदमा दर्ज नहीं करवाया, इसकी जांच की जाएगी।
अफसर भी जिम्मेदार
इस लापरवाही पर जिले की मुख्य शिक्षा अधिकारी डा. नीता तिवारी भी लीपापोती करती नजर आती हैं। वह कहती हैं कि इस बारे में संबंधित शिक्षा अधिकारियों से स्पष्टीकरण मांगा गया है। यह प्रथम दृष्टया घोर लापरवाही का मामला है।
हाल ही में 15 और मास्टरों के प्रमाण पत्रों के फर्जी होने की शिकायत मिली है। इस बारे में ऊधमसिंहनगर के शिक्षा विभाग ने गत 25 अगस्त 2016 को इन सभी मास्टरों के शैक्षिक प्रमाण पत्रों की जांच के आदेश दिए हैं। इन सभी संदिग्धों के प्रमाण पत्र व डिग्रियां उत्तर प्रदेश के विभिन्न विद्यालयों व विश्वविद्यालयों से जारी हुए हैं। इस बीच 27 अगस्त 2016 को सितारगंज के शक्तिफार्म में पड़ावगांव सुभाषनगर स्थित बेसिक स्कूल में तैनात मास्टर रमेश कुमार मंडल को हाईस्कूल के फर्जी प्रणाण पत्र के आधार पर बर्खास्त कर दिया गया है। इससे पहले नैनीताल जनपद के ओखलकांडा विकासखण्ड में गत 25 अगस्त 2015 को पांच मास्टर को फर्जी डिग्रियों व प्रमाण पत्रों के आरोप में निलंबित किया गया था। पांचों मास्टर उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के रहने वाले थे। इन मास्टरों के खिलाफ बहुत लम्बे समय से शिकायत मिल रही थी, लेकिन शिक्षा अधिकारी मामले को दबाने में लगे रहे। जब यह मामला तत्कालीन शिक्षा महानिदेशक डी. सेंथिल पांडियन के संज्ञान में आया, तब जाकर इन मास्टरों के निलंबन की कार्यवाही की गई थी। नैनीताल जिले में 122 मास्टर और ऐसे हैं, जिनके शैक्षिक दस्तावेजों के फर्जी होने की बात संज्ञान में आई है, जिनकी जांच के आदेश दे दिए गए हैं। चिंतनीय बात यह है कि ये लोग पिछले पांच से लेकर दस सालों से विभिन्न बेसिक व माध्यमिक स्कूलों में बच्चों को पढ़ा रहे हैं। जिले के मुख्य शिक्षा अधिकारी रघुनाथ लाल आर्य कहते हैं कि जिले के 122 अध्यापकों की डिग्रियों पर शक है। सभी की जांच की जा रही है। कुछ की रिपोर्ट हमें मिल चुकी है, उनके खिलाफ कार्यवाही के आदेश दिए जा चुके हैं। नैनीताल जिले में तीन साल पहले भी फर्जी डिग्री के आरोप में पांच मास्टरों को बर्खास्त किया गया था, पर यह सवाल अपनी जगह है कि नियुक्ति करने के तुरंत बाद ही शिक्षा विभाग मास्टरों के शैक्षिक दस्तावेजों की जांच क्यों नहीं करवाता, जब कोई गोपनीय शिकायत उसके पास पहुंचती है, तभी वह सक्रिय क्यों होता है? बच्चों के शैक्षिक जीवन से खिलवाड़ करने वाली इस गंभीर लापरवाही के लिए कौन जिम्मेदार है?
नैनीताल जिले में 122 मास्टर और ऐसे हैं, जिनके शैक्षिक दस्तावेजों के फर्जी होने की बात संज्ञान में आई है, जिनकी जांच के आदेश दे दिए गए हैं। चिंतनीय यह है कि ये लोग पिछले पांच से लेकर दस सालों से विभिन्न बेसिक व माध्यमिक स्कूलों में बच्चों को पढ़ा रहे हैं।