उत्तराखंड वन विभाग के मुखिया के कार्यालय में 20 लाख से महंगी इनोवा कार खड़ी है। शासन की ओर से स्पष्ट प्राविधान है कि मुख्यमंत्री से लेकर पीसीसीएफ तक 15 लाख रुपए की गाड़ी में ही घूम सकते हैं।
इधर शासन ने 10 मार्च 2016 को यह आदेश किया और 9 अगस्त 2016 को यानी ठीक 4 महीने बाद ही वन विभाग ने शासन के आदेश को चित्त कर दिया। वन विभाग के मुखिया जयराज कहते हैं कि यह उन से पहले की खरीद है। किंतु बड़ा सवाल यह है कि यह आखिर हुआ तो क्यों हुआ!
यह वाहन वन निगम के बजट से खरीदा गया सवाल यह है कि अगर वन विभाग के पास इसे खरीदने के लिए बजट नहीं था तो इतनी भारी भरकम धनराशि का बोझ वन निगम पर क्यों डाला गया ! यह आर्थिक अराजकता नहीं तो और क्या है। यह मुख्यमंत्री मंत्री और कैबिनेट मंत्रियों का खुलेआम अपमान कर अवमानना का मामला तो है ही।
उत्तराखंड शासन के परिवहन विभाग द्वारा जारी शासनादेश संख्या. 169 /IX-1/215/2011/2016 दिनांक 10 मार्च 2016 के क्रम में उत्तराखंड राज्य के विशिष्ट एवं अति विशिष्ट महानुभावों तथा विभिन्न श्रेणी के अधिकारियों हेतु सरकारी वाहनों की अनुमन्यता के संबंध में आदेश निर्गत किए गए हैं । इस क्रम में मा.मुख्यमंत्री एवं माननीय कैबिनेट मंत्रीगण, मुख्य सचिव, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, पुलिस महानिदेशक तथा वन विभाग के मुखिया PCCF HoFF एवं अन्य प्रमुख वन संरक्षक स्तर के अधिकारियों हेतु रुपए 15 लाख तक के अधिकतम मूल्य का वाहन अनुमन्य है।
इस शासनादेश में वर्णित अनुमन्यता को धत्ता बताते हुए वन विभाग के मुखिया PCCF HoFF द्वारा 20 लाख रुपए से महंगी इनोवा लग्जरी कार में घूम कर खुलेआम माननीय मुख्यमंत्री एवं माननीय कैबिनेट मंत्रीगणों का अपमान कर अवमानना की जा रही है। उत्तराखंड सरकार द्वारा एक तरफ वित्तीय मितव्ययता का ढोल पीटा जा रहा है तो दूसरी ओर वन विभाग के मुखिया इसी ढोल की खोल उतारने में लगे हुए हैं।
उत्तराखंड सरकार के इस शासनादेश के अनुसार *एक अधिकारी- एक वाहन* का नियम लागू है परंतु शासन में कई आईएएस अधिकारियों के पास तीन-तीन वाहन रख कर वाहनों का दुरुपयोग किया जा रहा है। मुख्यमंत्री इन अधिकारियों पर क्या कार्रवाई करते हैं यह देखना दिलचस्प होगा।