जगदम्बा कोठारी
रुद्रप्रयाग। जनपद के वर्षों से बंजर पड़े खेतों पर चाय विकास बोर्ड व स्थानीय काश्तकारों की मेहनत का नतीजा है कि अब उन्हीं खेतों में चाय के बगीचे लहरा रहे हैं।
वर्ष 2012-13 में चाय विकास बोर्ड ने जखोली विकासखंड के कमलेक (ललूडी) गांव के बंंजर पड़े खेतों में चायपत्ती की नर्सरी तैयार कर ग्रामीणों को चाय उत्पादन के लिए प्रेरित किया। कुछ समय बाद जखोली के पुजार गांव, सिरवाडी, पूलन, चौंरा सहित लगभग दर्जनों गांव मे चाय की नर्सरी व बंजर भूमि पर चाय के बगीचे लगवाये। वहीं अगस्त्यमुनि के पिल्लू, जयकण्डी, अखोडी व भणज समेत ऊखीमठ विकासखंड के थापला और जयकण्डी गांवों की बंजर भूमि पर भी चाय की फसल फल-फूल रही है।
वर्तमान में जनपद के 26 हैक्टेयर क्षेत्र में चाय के बगीचे लग चुके हैं व आधा दर्जन से अधिक नर्सरियों में 8 लाख से अधिक पौध रोपाई के लिए तैयार हैं, लेकिन सरकारी अनदेखी के चलते लाखों पौध सडऩे की कगार पर हैं।
जनपद में इतनी बड़ी संख्या में पौध व नर्सरी होने के बाद भी चाय विकास बोर्ड का कोई भी क्षेत्रीय कार्यालय जनपद में नहीं है। साथ ही काश्तकारों को खाद व छिड़काव के लिए कीटनाशक तक उपलब्ध नहीं करवाया जाता है। जिस कारण प्रतिदिन हजारों पौध सूख रही हैं। वहीं चाय उत्पादन के लिए अपनी कृषि भूमि दे चुके सैकड़ों काश्तकार अब खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं।
इन चाय की नर्सरियों में हजारों मजदूर 230 रुपये दैनिक मजदूरी पर कार्य करते हैं, लेकिन अब चाय विकास बोर्ड को मनरेगा के अंतर्गत लिया जा रहा है, जिसका सभी मजदूर पुरजोर विरोध कर रहे हैं।
प्रधान संघ के जखोली अध्यक्ष महावीर सिंह पंवार का कहते हंै कि मनरेगा के अंतर्गत गावों में हुए विकास कार्यों का सालों से भुगतान नहीं हुआ है। अब चाय विकास बोर्ड के मजदूरों को भी मनरेगा में लेने का फैसला करना मजदूरों के साथ सरासर धोखा है, क्योंकि मनरेगा की मजदूरी 175 रुपये दैनिक है और चाय विकास बोर्ड की 230 रुपये। ऐसे में मजदूरों को 55 रुपये दैनिक मजदूरी का घाटा उठाना पड़ रहा है।
ज्येष्ठ प्रमुख जखोली चैन सिंह पंवार कहते हैं कि सरकार को चाहिए कि बोर्ड के सभी कर्मचारियों को संविदा पर नियुक्त करने के साथ ही नर्सरियों में समय-समय पर कीटनाशक व खाद उपलब्ध करायी जाए और अतिशीघ्र बोर्ड का क्षेत्रीय कार्यालय जनपद में खोला जाना चाहिए, अन्यथा स्थानीय जनता को उग्र आंदोलन के लिए बाध्य होना पड़ेगा।