पहली अप्रैल की शाम अमित शाह से मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत और राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी के साथ विजय बहुगुणा की मुलाकात का नतीजा आखिर यही रहा कि विजय बहुगुणा का अप्रैल फूल बना दिया गया।
विजय बहुगुणा आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अपने पुत्र साकेत बहुगुणा को टिहरी से लोकसभा का टिकट दिए जाने का दबाव बनाने के लिए अमित शाह से मिले थे। लेकिन अमित शाह ने तीनों को एक साथ बुलाकर इस रणनीति पर पानी फेर दिया।
विजय बहुगुणा इस बार राज्यसभा के उम्मीदवार थे किंतु आखिरी दौर में नाम का खुलासा होने पर बहुगुणा न तो अनिल बलूनी के नामांकन में शामिल हुए और न जीत के जश्न में ।दरअसल प्रदेश भाजपा ने उन्हें पहले ही सरकार का एक साल पूरा होने वाले जश्न में आमंत्रित न करके अलग-थलग कर दिया था।
जहां तक अनिल बलूनी को राज्यसभा भेजने का सवाल है, उसे भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व काफी पहले तय कर चुका था। किंतु इसका खुलासा सबसे आखिर में किया।
उत्तराखंड में भाजपा से जुड़े एक विश्वसनीय सूत्र की माने तो भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने कांग्रेस के बागियों को भाजपा में शामिल करने से पहले ही यह तय कर लिया था कि यदि बागियों के क्षत्रपों को मजबूत किया गया तो भाजपा में भी कालांतर में बगावत हो सकती है।
इसके मद्देनजर यह रणनीति अपनाई गई कि जिन क्षत्रपों के कैंप तले विधायक एकजुट हो सकते हैं उन्हीं छत्रपों को कमजोर करके अलग-थलग कर दिया जाए।
इस रणनीति के तहत पहले सतपाल महाराज और विजय बहुगुणा को कमजोर किया गया। एक समय में सतपाल महाराज के पास 7-8 विधायक हुआ करते थे। जो उनके इशारे पर कभी भी त्यागपत्र दे सकते थे। प्रदेश सरकार ने सतपाल महाराज के मंत्रालयों में भी हस्तक्षेप करके न सिर्फ उन्हें निष्क्रिय कर दिया है, बल्कि तमाम आयोजनों और मीडिया की खबरों से भी उन्हें ब्लैक आउट कर दिया है। उनके मंत्रालयों के कार्यक्रमों को सरकार स्वयं आयोजित करती है और उनसे जुड़ी योजनाओं के शिलापट्ट तक से उनका नाम गायब कर दिया गया है। उनके विभाग में काम कर रहे सचिव मीनाक्षी सुंदरम को सिर्फ इसलिए हटा दिया गया था क्योंकि वह पर्यटन सचिव रहने के दौरान सतपाल महाराज की ब्रांडिंग कर रहे थे। उनसे पहले पर्यटन सचिव रहे शैलेश बगोली पर यह आरोप था कि वह सतपाल महाराज को उच्चस्तरीय दबाव के कारण सहयोग नहीं कर रहे हैं।
विजय बहुगुणा को भी इसी रणनीति के तहत आयोजनों में न बुलाना और राज्यसभा सदस्यता से भी वंचित कर देना दूसरा कदम था। विजय बहुगुणा ही पिछली बगावत के लीडर थे। भविष्य में किसी तरह की बगावत अथवा विरोध की गुंजाइश खत्म करने के लिए ही बहुगुणा को कमजोर किया जा रहा है। न सिर्फ बहुगुणा को बल्कि उनके पुत्र साकेत बहुगुणा को भी लोकसभा के टिकट से वंचित किए जाने की नीति तय की जा चुकी है।
इसी कड़ी में तीसरा कदम कांग्रेस से भाजपा में आए और प्रदेश के एकमात्र वरिष्ठ और प्रभावशाली दलित नेता यशपाल आर्य को कमजोर किया जाना है।
यशपाल आर्य अपने पुत्र विधायक संजीव आर्य तथा थराली से पूर्व विधायक डॉ जीतराम सहित नैनीताल तथा उधम सिंह नगर की राजनीति पर काफी पकड़ रखते हैं। रणनीति के तहत पिछले महीने हल्द्वानी में आयोजित एक कार्यक्रम में यशपाल आर्य का नाम भी बैनर से हटा दिया गया था। जबकि जिन मंत्री का उस कार्यक्रम और कुमाऊं से कोई राजनीतिक वास्ता न था उन्हें बैनर पर प्राथमिकता दी गई थी। यशपाल आर्य की भी यही शिकायत है कि उनके मंत्रालयों में अफसर उन्हें सहयोग नहीं कर रहे हैं। यशपाल आर्य इस बात को लेकर खफा है।
हालत यह है कि यह तीनों छत्रप अपनी मर्जी से कोई ट्रांसफर भी नहीं कर सकते। इनके अलावा कांग्रेस से भाजपा में आए अन्य कद्दावर बागियों की भी यही हालत है। पाला बदल के दौरान उनके समर्थक अन्य नेता भी भाजपा में आए थे। किंतु जो पहले कांग्रेस मे नगर पालिका अध्यक्ष से लेकर पार्षद आदि के दावेदार थे, अब भाजपा में आने के बाद वह राजनीतिक नेपथ्य में चले गए हैं।
किंतु भाजपा अपनी रणनीति में कामयाब दिख रही है। इसी का परिणाम है कि क्षत्रपों से जुड़े विधायक आज भाजपा के रंग में रंग चुके हैं और इक्का-दुक्का को छोड़कर बाकी किसी में पुराने रंग-ढंग नहीं दिखाई देते।