आयुर्वेद विश्वविद्यालय में मृत्युंजय मिश्रा की वापसी के बाद शुरू हुआ हंगामा अब जल्दी नहीं टलने वाला। कुलसचिव बनते ही मृत्युंजय मिश्रा ने सबसे पहले वर्तमान कुलसचिव डॉ राजेश अधाना को उनके मूल विभाग वापस भेज दिया। जैसे ही यह मामला चर्चा में आया तो शासन ने मृत्युंजय मिश्रा को आयुष विभाग में अटैच कर दिया।
अब सवाल यह है कि जो आदेश मृत्युंजय मिश्रा कर गए हैं, उसे कौन और कैसे निरस्त करेगा !
पिछले साल राजभवन की नाराजगी के बाद शासन ने मृत्युंजय मिश्रा को अपर स्थानिक आयुक्त बनाकर दिल्ली भेज दिया था।
इस बीच उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का वर्चस्व बढ़ता चला गया। डॉ अरुण कुमार त्रिपाठी और अनूप कुमार गख्खड़ की कुलसचिव पद से असमय और विदाई के बाद विश्वविद्यालय में संघ विचारधारा के कुलपति के ज्वाइन करने के बाद RSS की पहल पर संघ विचारधारा के ही डॉ राजेश अधाना को पहले डिप्टी रजिस्ट्रार के पद पर तैनात कर दिया गया था। डॉ राजेश अधाना ने विश्वविद्यालय को संघ के कार्यक्रमों का अड्डा बना दिया था।
व्यवस्थाओं को पटरी पर लाने के लिहाज से आयुष सचिव हरवंश सिंह चुघ ने प्रभारी सचिव आयुष जीबी औली को आयुर्वेद विश्वविद्यालय का रजिस्ट्रार बनाने के आदेश दिए तो संघ के हस्तक्षेप के बाद औली को आधे रास्ते से ही वापस लौटना पड़ा और एक नाटकीय घटनाक्रम के तहत डिप्टी रजिस्ट्रार के पद पर अवैध रूप से कार्य कर रहे राजेश कुमार अधाना को ही विश्वविद्यालय का कुल सचिव बना दिया गया।
पर्वतजन के पाठकों को मालूम होगा कि किस तरह श्री औली को कुलसचिव बनाया गया और किस तरह उनके जूनियर अफसर संयुक्त सचिव के द्वारा उनका नियुक्ति आदेश रद्द कर दिया गया।
जाहिर है कि अधाना 5400 ग्रेड पे के अधिकारी हैं और डिप्टी रजिस्ट्रार तक बनने की भी योग्यता नहीं रखते तो ऐसे में उनको रजिस्ट्रार बनाए जाने के पीछे संघ का ही अनैतिक दबाव था।
अधाना मूल रूप से पौड़ी में आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी हैं और उनका वेतन अभी भी पौड़ी से ही निकल रहा है।
इस बीच अपर स्थानिक आयुक्त के पद पर उप जिलाधिकारी इला गिरी के स्थानांतरण हो जाने के बाद मृत्युंजय मिश्रा को वापस आना पड़ा।
मूल रूप से मृत्युंजय मिश्रा उच्च शिक्षा विभाग के अफसर थे किंतु सरकार और शासन में बेहतर संबंधों और लंबे समय तक आयुर्वेद विश्वविद्यालय में रहने के कारण उन्हें आयुर्वेद विश्वविद्यालय में ही कुलसचिव के पद पर समायोजित कर दिया गया।
राजभवन की गहरी नाराजगी के बाद जब कुलसचिव को अपर स्थानिक आयोग बनाकर भेजा गया तो तब भी आयुर्वेद विश्वविद्यालय में घपले-घोटाले, खरीद फरोख्त मे कोई लगाम नहीं लगी।
मृत्युंजय मिश्रा ने कुलसचिव बनने के बाद सबसे पहले हस्ताक्षर डॉ राजेश अधाना को वापस भेजने के पत्र पर किए। मृत्युंजय मिश्रा ने अधाना की नियुक्ति को नियम विरुद्ध बताते हुए उन्हें उनके मूल विभाग पौड़ी भेज दिया। इधर शाम होते होते यह मामला इतना गरमा गया कि संघ के पदाधिकारियों ने इसे अपना प्रतिष्ठा का प्रश्न बना दिया।
पर्वतजन के सूत्रों के अनुसार मृत्युंजय मिश्रा को आयुष विभाग में अटैच करने की तैयारी हो गई है। कोर्ट के एक आदेश के अनुसार उत्तराखंड में अटैचमेंट समाप्त किया गया है। ऐसे में जिस तरह से संघ के दबाव में आकर शासन के अधिकारियों ने कुलसचिव मृत्युंजय मिश्रा को विश्वविद्यालय से हटाने की कार्यवाही की है, उससे ऐसा लग रहा है कि मृत्युंजय मिश्रा को कुल सचिव पद से हटाए जाने के खिलाफ यदि वह कोर्ट गए तो नियम विरुद्ध हुई अधाना की नियुक्ति तो निरस्त हो जाएगी।
मिश्रा को कुलसचिव बनाए जाने को लेकर राजभवन के कान भी फिर से खड़े हो गए हैं। जाहिर है कि कुलसचिव का नियुक्ति प्राधिकारी शासन होता है किंतु संघ ने अपनी विचारधारा के व्यक्ति को कुलसचिव बनाकर सरकार से सीधी टक्कर अख्तियार कर ली है। सवाल यह भी उठाया जा रहा है कि शासन द्वारा कुलसचिव के पद पर मृत्युंजय मिश्रा की तैनाती को विश्वविद्यालय अपनी स्वायत्तता में हस्तक्षेप मान रहा है। किंतु एक अहम सवाल यह भी है कि आखिरकार विश्वविद्यालय को तब अपनी स्वायत्तता पर खतरा क्यों नहीं लगा जब नियम विरुद्ध संघ विचारधारा के डॉ राजेश अधाना की तैनाती की जा रही थी। इस पूरे प्रकरण में राजभवन की रहस्यमय चुप्पी पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। लंबे समय से कुलपतियों और कुलसचिवों की नियुक्तियों तथा विश्व विद्यालय की विभिन्न गड़बड़ियों पर राजभवन अब तक लगातार लंबे समय से मौन है।
बहरहाल हालत यह है कि डॉ राजेश अधाना पर कुलपति और संघ का वरद हस्त है तो मृत्युंजय मिश्रा पर आयुष विभाग के अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश का हाथ है। जाहिर है कि इस पूरे प्रकरण पर संघ और सरकार एक बार फिर से आमने-सामने आ गए और मृत्युंजय मिश्रा को आयुष विभाग में अटैच होना पड़ रहा है तो यह एक तरह से सरकार पर संघ के दबदबे के रूप में भी देखा जा रहा है, किंतु जो इतनी जल्दी मात खा जाए वह मृत्युंजय कैसा !