ऊर्जा प्रदेश में फैला अंधेरा
पंडित दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण ज्योति योजना के नाम पर ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युतीकरण के जो आंकड़े सरकार द्वारा दिए गए हैं, वे सत्य से परे हैं। भारत सरकार पूरे देश में इस बात को प्रचारित प्रसारित करने में लगी है, किंतु यह सच्चाई से कोसों दूर है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भारतवर्ष के सभी गांवों तक बिजली पहुंचाने के दावे की उत्तराखंड में पोल खुल गई है। उत्तराखंड के कुल ४७५८ तोकों में अभी तक बिजली नहीं पहुंच पाई है। जिस देहरादून में राजधानी स्तर की तमाम सुविधाएं बताई जाती हैं, उस देहरादून के ६९७ तोक अभी तक विद्युतविहीन हैं।
देहरादून की यह हालत अकेली नहीं है। पूरे १३ जिलों में अमूमन यही स्थिति है। हरिद्वार के १५, पौड़ी गढ़वाल ३३९, रुद्रप्रयाग १५०, बागेश्वर २०८, नैनीताल १३१, ऊधमसिंहनगर २८७, टिहरी गढ़वाल ९७१, उत्तरकाशी ५१३, चमोली ४४३, चंपावत ४४९, अल्मोड़ा २९७, पिथौरागढ़ २५८, कुल मिलाकर ४७५८ तोक अभी तक बिना बिजली के हैं।
सरकारी भले ही कुछ और दिखा रहे हों, किंतु चंपावत जिले के चंपावत विकासखंड के तीन राजस्व गांव सुकमी, बकौरिया व बुड़म राजस्व गांव में आजादी के ७० साल बाद भी बिजली तो बहुत दूर, बिजली के खंभे तक नहीं लग पाए हैं।
टिहरी जनपद के देवप्रयाग विधानसभा के कीर्तिनगर ब्लॉक का सुमाड़ी गांव, जो कि ग्रामसभा कोटी जखेड़, पट्टी डागर, तहसील कीर्तिनगर के अंतर्गत है, में आज तक भी बिजली नहीं पहुंच पाई है। यह स्थिति तब है, जब राज्य बनने से लेकर अब तक इस विधानसभा में तीन कैबिनेट मंत्री बन चुके हैं।
इन आंकड़ों की हकीकत इस बात से समझी जा सकती है कि एक ओर ऊर्जा विभाग स्वयं विद्युतविहीन तोकों की सूची जारी कर रहा है, वहीं दूसरी ओर डबल इंजन सरकार मोदी राग अलाप रही है। अब ताजा आंकड़े सामने आने के बाद सरकार द्वारा ३१ मार्च २०१९ तक सभी गांवों तक बिजली पहुंचाने का दावा किया जा रहा है, जो इस बात को पुख्ता करता है कि केंद्र सरकार के द्वारा दिए गए आंकड़े धरातल पर नहीं हैं।