उत्तराखंड लोक सेवा आयोग में शासन ने एक साल पहले राज्य अवर अधीनस्थ सेवा परीक्षा 2016-17 के लिए अधियाचन भेजा था। लेकिन यह 30 अप्रैल 2017 से आयोग में अटका पड़ा है।
यदि आयोग इस पर परीक्षाएं करवा देता तो उत्तराखंड के 53 बेरोजगार अभ्यर्थियों का जीवन संवर जाता। शासन ने 1 साल पहले शहरी विकास विभाग के अंतर्गत अधिशासी अधिकारियों के 17 पदों सहित आबकारी निरीक्षक के 10 पदों के लिए तथा जेलर के 28 पदों के लिए अधियाचन भेजा था, किंतु उक्त पदों पर चयन के लिए अभी तक उत्तराखंड लोक सेवा आयोग ने विज्ञप्ति प्रकाशित नहीं की है।
इन पदों पर नौकरी पाने की आस जुटाए सैकड़ों बेरोजगारों के सर पर ओवर एज हो जाने की तलवार भी लटकी हुई है।
एक तो आयोग वैसे ही प्रक्रिया पूरी करने में कम से कम 2 वर्ष से अधिक का समय लेता है, ऊपर से अभी तक अधियाचन ही प्रकाशित नहीं किया गया है। इससे नुकसान यह हो रहा है कि जो परीक्षार्थी दिन रात मेहनत कर रहे हैं, उन्हें रोजगार से वंचित रहना पड़ रहा है। आयोग और उत्तराखंड शासन के अधिकारी वातानुकूलित कुर्सियों और कमरों में बैठकर फाइल- फाइल खेल रहे हैं।
आयोग के सचिव आनंद स्वरूप से बातचीत के आधार पर यह निष्कर्ष निकला कि अधिशासी अधिकारी और जेलर के पदों की सेवा नियमावली और अन्य खामियां तो दुरस्त कर दी गई हैं लेकिन आबकारी निरीक्षक के पदों पर सेवा नियमावली या अन्य कमियों को दुरुस्त करने में समय लग रहा है।
“इसके लिए शासन से दो बार की वार्ता हो चुकी है।” आयोग के सचिव आनंद स्वरूप कहते हैं कि भविष्य में ऐसा न हो इसलिए आयोग हर दूसरे-तीसरे महीने शासन से से कम एक बैठक आयोजित कराने की नीति बना रहा है ,ताकि इस तरह की विसंगतियों को समय रहते दूर किया जा सके।
इस तरह के कई और पदों की अधियाचन भी आयोग में फाइलों में दफन हो रखे हैं और बेरोजगार नौकरी के सपने देखते-देखते बूढ़े हो रहे हैं। उत्तराखंड के युवा बेरोजगारों पर डबल इंजन सरकार में शासन और आयोग की यह सुस्ती भारी पड़ रही है