13 अगस्त को शिक्षा सचिव भूपेंद्र कौर औलख ने मुख्यमंत्री के ओएसडी ऊर्वा दत्त भट्ट की पत्नी को प्रतिनियुक्ति पर देहरादून में तैनाती दे दी है।
ओएसडी की पत्नी सहित दो अन्य को भी प्रतिनियुक्ति पर देहरादून लाया गया है। ओएसडी की पत्नी वर्षा गौनियाल राजकीय इंटर कॉलेज ज्वालापुर हरिद्वार में प्रवक्ता के पद पर तैनात थी।
इनको देहरादून लाने के नाम पर संस्कृत शिक्षा निदेशालय में सहायक निदेशक के पद पर प्रतिनियुक्ति दे दी गई है। शिक्षा सचिव भूपेंद्र कौर औलख ने 13 अगस्त को जारी अपने आदेश में इनकी प्रतिनियुक्ति 3 वर्ष के लिए उत्तराखंड संस्कृत शिक्षा विभाग में सहायक निदेशक के पद पर कर दी है।
संस्कृत शिक्षा निदेशालय का कार्यालय गंगोत्री एंक्लेव बद्रीपुर रोड देहरादून में स्थित है। ओएसडी की पत्नी सहित संजीव प्रसाद ध्यानी को यमकेश्वर पौड़ी देउली इंटर कॉलेज से और भूपेंद्र सिंह को राजकीय इंटर कॉलेज गेंवला उत्तरकाशी से देहरादून लाया गया है।
अहम सवाल यह है कि यदि संस्कृत शिक्षा निदेशालय में वाकई प्रतिनियुक्ति पर सहायक निदेशकों की तैनाती की जरूरत थी तो जीरो टॉलरेंस का तकाजा तो यही कहता है कि इन पदों पर प्रतिनियुक्ति के लिए इच्छुक और योग्य शिक्षकों से आवेदन सार्वजनिक रूप से मांगे जाते। ताकि सभी को अपनी योग्यता साबित करने का समान अवसर मिलता।
आखिर इन तीनों को ही शिक्षा सचिव डॉक्टर भूपेंद्र कौर औलख ने कैसे योग्य मान लिया ! क्या इनकी योग्यता सिर्फ इतनी है कि इसमें से एक मुख्यमंत्री के ओएसडी की पत्नी है !
हकीकत तो यह है कि देहरादून के इस निदेशालय को इन शिक्षकों की जरूरत नहीं थी, बल्कि इन शिक्षकों को देहरादून आने के लिए कोई न कोई जुगाड़ चाहिए था !देहरादून की यदि वाकई में जरूरत है तो गंभीर रुप से बीमार लोगों को है, जिनका इलाज लंबे समय से देहरादून के अस्पतालों में चल रहा है। जिनमें से कोई कैंसर का मरीज है तो कोई थैलीसीमिया का।
देहरादून में तैनाती ना होने के कारण यह लोग लंबे समय से मेडिकल और लीव विदआउट पे पर रहने को मजबूर हैं और किसी तरह अपना इलाज करा रहे हैं।
अगर देहरादून में तैनाती की जरूरत थी तो 25 साल से उत्तरकाशी के दुर्गम में सेवाएं दे रही विधवा शिक्षिका उत्तरा की योग्यता आखिर कहां कम थी।
लेकिन तमाम दावों और प्रतिदावों के बाद इन तीन पहुंच वालों को प्रतिनियुक्ति की आड़ में देहरादून लाए जाने से यह बात साबित हो गई है कि जीरो टॉलरेंस तो मात्र एक जुमला है।
पहुंच वालों के लिए कोई नियम कायदे मायने नहीं रखते उनके लिए कोई ना कोई चोर दरवाजा हमेशा खुला है। जब राज्य की सबसे बड़ी IAS सेवा की अफसर डॉक्टर भूपेंद्र कौर औलख भी दबाव मे इस तरीके के चोर दरवाजों का इस्तेमाल करेंगे तो फिर शिक्षा विभाग में न्याय की आशा और किससे से की जा सकती है !
जब नियम-कायदे देखने के बजाय केवल मुख्यमंत्री अथवा मंत्री का ही आदेश मानना है तो फिर IAS की सेवा और गुलाम तथा दास की सेवा में क्या अंतर है ! इस तरह की ट्रांसफर से तो यही संदेश जाता है कि किस राज्य में योग्यता का एक बड़ा बेईमान आज यही रह गया है कि आप अपने काम के लिए रोजाना कितनी बार मंत्री और मुख्यमंत्री को अपनी शक्ल दिखाते हो।
मुख्यमंत्री के पास जाएंगे तो वह फिर किसी और को गिरफ्तार करने का आदेश जो दे सकते हैं ! सोशल मीडिया पर शिक्षा सचिव के इस आदेश को लेकर सरकार की काफी फजीहत हो रही है। जब शिक्षा सचिव भूपेंद्र कौर से उनका पक्ष जानने के लिए फोन किया गया तो उन्होंने कहते हुए फोन काट दिया यह बात करने का सही समय नहीं है। ओ एस डी भट्ट ने भी यह कहते हुए फोन काट दिया कि वह मीटिंग में हैं ।