देहरादून,कृष्णा बिष्ट
तो जातिवाद के सहारे चलेगी सरकार ….!
सत्ता की कुर्सी पर बैठने के बाद से डिजाइनर कपड़ों के प्रति बेहद संवेदनशील मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की एक नई तस्वीर सामने आई है। इस तस्वीर में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत रावत सेना के नाम का एक पट्टा गले में डाले हुए हैं। इसमें भगवा रंग के कपड़े पर नीले रंग से ‘रावत सेना’ का नाम उकेरा गया है।
उत्तराखंड में ब्राह्मण समाज और क्षत्रिय समाज के नाम से कुछ संगठन जरूर सक्रिय हैं और इन संगठनों में राज्य के मंत्रियों अथवा प्रशासनिक क्षेत्र के व्यक्तियों की भागीदारी की भी आलोचना होती है क्योंकि भारत संवैधानिक तौर पर एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है और कोई भी मंत्री, मुख्यमंत्री अथवा प्रशासनिक व्यक्ति समाज के सभी वर्गों के लिए बराबर अथवा निरपेक्ष भाव से रहने की शपथ लेता है। ऐसे में किसी धर्म विशेष अथवा जाति समुदाय विशेष के प्रति झुकाव का सार्वजनिक प्रदर्शन उत्तराखंड के बुद्धिजीवी वर्ग में भी आलोचना का विषय बनता आया है।
ऐसे में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का क्षत्रिय समाज अथवा ब्राह्मण समाज से एक कदम आगे बढ़कर रावत सेना का पट्टा गले में टांग कर फोटो सेशन कराना कई तरह की चर्चाओं को जन्म दे रहा है।
गौरतलब है कि एक अक्टूबर को राष्ट्रीय रावत सेना के पदाधिकारियों ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से उनके आवास पर मुलाकात की थी और हरिद्वार में रावत समाज का मंदिर और धर्मशाला बनाने की मांग की थी।
इसके अलावा रावत समाज में दिल्ली तथा देहरादून में रावत समाज के लिए छात्रावास बनाने की मांग भी की है। रावत सेना के पदाधिकारियों ने बताया कि मुख्यमंत्री ने उनकी मांगों पर जल्दी कार्यवाही करने का आश्वासन दिया है।
रावत समाज के पदाधिकारियों ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत 100 पर अपनी 3 पृष्ठों के ज्ञापन में कहा कि आज रावत समाज क्षत्रिय होते हुए भी देश के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग जातियों में बंटा हुआ है।
उदाहरण के तौर पर राजस्थान तथा मध्य प्रदेश में रावत समाज को पिछड़ी जाति का दर्जा हासिल है, जबकि गुजरात में रावत समाज अनुसूचित जाति के अंतर्गत आता है। वहीं उत्तराखंड में रावत सामान्य जाति के अंतर्गत नोटिफाइड हैं। रावत सेना ने मुख्यमंत्री से पूरे भारत में निवास कर रहे रावत समाज को विशेष पिछड़ा वर्ग में सम्मिलित करने की मांग की है।