भूपेंद्र कुमार
“डबल इंजन” और “जीरो टोलरेंस” त्रिवेंद्र सरकार के यह दोनों शब्द तो पहले से ही जुमला साबित हो रहे हैं किंतु आम जन की समस्याओं के त्वरित निस्तारण के लिए बनाए गए विभिन्न शिकायती एप्लीकेशन भी महज सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए बनाए गए जुमले साबित हो रहे हैं।
हकीकत इस बात से ही पता लग जाती है कि जब इस संवाददाता ने विभिन्न जन समस्याओं और समाज में हो रहे अपराधों को दर्ज कराने के लिए इस ऐप का सहारा लिया तो शुरुआती 2 शिकायतों को दर्ज करने के बाद उत्तराखंड पुलिस एप ने इस संवाददाता की आईडी को ही ब्लॉक कर दिया।
परिणाम यह हुआ कि जब भी कोई शिकायत ऐप पर दर्ज करने की कोशिश की गई तो यह ऐप यही लिखा हुआ बताता रहा कि “चेक योर इंटरनेट कनेक्शन।”
इस संवाददाता ने लगभग 1 हफ्ते में 38 शिकायतें दर्ज करने की कोशिश की लेकिन हर बार उत्तराखंड का यह पुलिस एप यही बताता रहा।
जाहिर है कि इस एप को संचालित करने वालों ने जब यह पाया कि यह व्यक्ति अधिक शिकायतें कर रहा है तो फिर उन्होंने शिकायतकर्ता को ही ब्लॉक कर दिया।
जब इस संवाददाता ने आज 6 अक्टूबर को पुलिस महानिदेशक, उपमहानिरीक्षक और एसएसपी को पत्र लिखकर इस बात की शिकायत की तथा ब्लॉक किए जाने से संबंधित स्क्रीनशॉट उच्चाधिकारियों को बताए तो फिर आनन-फानन में एप संचालकों ने शिकायतकर्ता (इस संवाददाता) को अनब्लॉक कर दिया।
गौरतलब है कि इस संवाददाता ने जनहित में 30 जुलाई 2018 को देहरादून के आराघर स्थित शराब की दुकान पर ओवर रेटिंग की शिकायत दस्तावेजों के साथ पुलिस एप के माध्यम से दर्ज कराई थी तथा 22 सितंबर 2018 को देहरादून के महिला चिकित्सालय में प्रसव के ऑपरेशन के बाद फर्श पर लेटी महिला को डॉक्टर द्वारा लात मारने और अभद्र व्यवहार करने की शिकायत भी पुलिस एप में दर्ज कराई थी।
इन दो शिकायतों को दर्ज करने के बाद जब इस संवाददाता ने 2 दिन बाद तीसरी शिकायत दर्ज करानी चाही तो पुलिस एप के संचालकों ने इस संवाददाता की आईडी को ही ब्लॉक कर दिया।
इसके बाद इस संवाददाता ने 26 सितंबर से लेकर 4 अक्टूबर तक लगभग 38 दफा शिकायतें दर्ज कराने की कोशिश की लेकिन एक भी बार पुलिस ऐप पर शिकायत दर्ज नहीं हो सकी।
किंतु जब आज 6 अक्टूबर को उच्चाधिकारियों से इस बात की शिकायत की गई तो फिर इस संवाददाता की आईडी को खोल दिया गया।
मित्र पुलिस की इन हरकतों के कारण ही उत्तराखंड पुलिस आलोचना का शिकार होती रही है। जाहिर है कि यह सभी शिकायतें जनहित की थी किंतु शिकायतें दर्ज न करने का पुलिसिया रवैया अभी भी सुधरा नहीं है और यही परिपाटी पुलिस ने ऑनलाइन पंजीकरण में भी अपना ली है। यदि इस तरह की मनमानी पर अंकुश नहीं लगाया गया तो इस तरह के ऐप सरकार की छवि सुधारने के बजाए और अधिक खराब कर सकते हैं।