कुलदीप एस राणा
नकारात्मक वजहों से हमेशा से खबरों की सुर्खियों में रहने वाला उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय एक बार फिर संदेह के घेरे में है। इस बार विवि प्रशासन केंद्रीय भारतीय चिकित्सा परिषद के मानकों को दरकिनार कर बीएएमएस की पढ़ाई कर रहे छात्रों की री-सैशनल परीक्षा संपन्न कराने जा रही है।
यहां आपको बताते चलें कि आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के मानक उसके पाठ्यक्रम एवं परीक्षा नियमावली का निर्धारण केंद्रीय भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम 1970 के सेक्शन 33 की उप धारा (आई),(जे) एवं (के) तहत सीसीआईएम के द्वारा निर्धारित किया जाता है। जिसे देश के समस्त आयुर्वेदिक विश्वविद्यालयों को लागू करने हेतु जारी कर दिया जाता है।
विश्वविद्यालयों को सीसीआईएम द्वारा जारी मानकों को यथावत संबंधित आयुर्वेदिक संस्थाओं /कॉलेजों में लागू करवाना होता है।
उक्त निर्धारित नियमों के लागू होने के उपरांत ही विश्वविद्यालयों द्वारा जारी की गई डिग्रियां सीसीआईएम की ‘पैरा दो’ में सम्मिलित हो सकती हैं।
यहां स्पष्ट है कि सीसीआईएम के द्वारा निर्धारित किये गए मानकों ,पाठ्यक्रम और परीक्षा नियमावली में छेड़छाड़ करने का अधिकार विश्वविद्यालय को नहीं है।
अन्यथा विवि द्वारा जारी की गई डिग्रियों के सीसीआईएम के पैरा-दो में सम्मलित होने में परेशानी हो सकती है, जिसका सीधा प्रभाव आयुष के संबंधित छात्रों के भविष्य पर पड़ सकता है, क्योंकि ऐसी स्थिति में छात्रों का स्टेट बोर्ड में रजिस्ट्रेशन होना संभव नही होगा।
‘उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय परिनियमावली 2015’ में भी यह स्पष्ट उल्लेखित है कि जिन पाठ्यक्रमों के संचालन हेतु केंद्रीय परिषद द्वारा जैसा स्वरूप निर्धारित होगा, वह पाठ्यक्रम हूबहू वैसे ही संचालित किए जाएंगे।
आपको बताते चलें कि सीसीआईएम के पाठ्यक्रम और परीक्षा नियमावली में सेशनल परीक्षा का कोई प्रावधान ही नहीं है, इसके बावजूद उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय प्रशासन ने सीसीआईएम के निर्धारित नियमों को दरकिनार करते हुए 16 अक्टूबर को सेशनल परीक्षा का नया शेड्यूल जारी भी कर दिया।
शेड्यूल की प्रति
विशेषज्ञ उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में इन समस्त अनियमितताओं एवं त्रुटियों की एक बड़ी वजह स्थापना काल से लेकर अब तक विश्वविद्यालय की मूल ढांचे में परीक्षा समिति संकाय बोर्ड ऑफ स्टडी पाठ्यक्रम समिति आदि का गठन होना मान रहे हैं क्योंकि उपरोक्त समितियों द्वारा दिए गए सुझावों को विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा नजरअंदाज नही किया जा सकता है।
विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि विश्वविद्यालय में उक्त तमाम समितियों का गठन न होने के पीछे एक बड़ी वजह अब तक रहे कुल सचिवों की महत्वाकांक्षा और उनकी शक्तियों के विकेंद्रीकरण हो जाने को मान रहे हैं । जिसके कारण विवि की प्रतिष्ठा दिन प्रति दिन गिरती जा रही है।