जहां चुनाव के समय ऋषिकेश ये विधायक चौबीसों घंटे जनता से मिलते हैं वहीं चुनाव जीतने के बाद इनका जनता मिलने का समय मात्र एक घंटे का हो जाता है।
योगेश डिमरी/ऋषिकेश
ऋषिकेश विधानसभा क्षेत्र के भाजपा विधायक प्रेमचंद्र अग्रवाल के पास जनता से मिलने का समय 9:30 से 10:30 का है। यकीन नहीं है तो उनके घर के बाहर लगा बोर्ड देख लीजिए, परंतु ये समय सारिणी चुनाव के समय बदल जाती है। उस समय इस पर सफेद कागज चिपका दिया जाता है। तब विधायक चुनाव जीतने के लिए दिन के पूरे २४ घंटे जनता मिलन कार्यक्रम को देते हैं, पर जैसे ही वोटिंग खत्म होती है, वो सफेद कागज भी हटा दिया जाता है। समय सीमा बढ़ाने के लिए मतगणना का इंतजार इसलिए नहीं किया जाता कि वोटिंग के बाद जनता से मिलकर कोई फायदा ही नहीं है। उस चिपके कागज के हटते ही जनता को समझ आ जाता है कि विधायक से मिलने का समय अब मात्र एक घंटा रह गया है। ताज्जुब यह है कि विधायक की इस खूबी के लिए यहां की जनता ने इन्हें दो बार विधायक बनाया, जबकि अपने गृह क्षेत्र डोईवाला में अग्रवाल नगर पंचायत अध्यक्ष तक का चुनाव बुरी तरह हार गए थे।
स्थानीय नहीं पसंद
राज्य गठन के बाद से ऋषिकेश विधानसभा के चुनाव परिणाम से तो यही सिद्ध हुआ है कि इस विधानसभा की जनता को या तो क्षेत्रीय नेता पसंद नहीं हैं या यूं कह लें कि पार्टी कार्यकर्ताओं को अपने स्थानीय नेताओं पर विश्वास नहीं है। इसका उदाहरण इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्य के पहले विधानसभा चुनाव 2002 में यहां की जनता ने भाजपा के स्थानीय नेता संदीप गुप्ता को हराकर टिहरी से आए कांग्रेस के शूूरवीर सिंह सजवाण को जितवा दिया। उसके बाद 2007 और २०१२ में संगठन महामंत्री रामलाल अग्रवाल की कृपा से भाजपा ने डोईवाला के प्रेमचंद्र अग्रवाल को यहां से टिकट दिया। तब जनता को भाजपा पसंद आई।
जीत की रणनीति
अपनी दो बार की भारी जीत ने विधायक को क्षेत्र की दूसरी बड़ी समस्याओं से परहेज कर छोटी समस्या पर ध्यान केंद्रित करने को मजबूर किया। उन्होंने अपनी विधायक निधि से पूरे विधानसभा की गलियां बनाई। अपनी विधायक निधि का ८० प्रतिशत से ज्यादा खर्च विधायक ने इन्हीं कामों पर खर्च किया। इन कामों के कारण विधायक को विपक्षी गली का विधायक कहकर भी चिढ़ाते हैं। अपने एक काम के लिए माननीय चार बैठकें कर जनता के बीच अपनी पकड़ मजबूत की है। पहली बैठक में प्रस्ताव रखकर पास किया जाता है, दूसरी में शिलान्यास होता है और तीसरी बैठक में लोकार्पण से अपने किये कार्यों के फायदे जनता को गिनाए जाते हैं। यदि जरूरत पड़े तो कहीं-कहीं पर चौथी बैठक भी करवानी पड़ती है। एक काम की चार बैठकों ने जनता के बीच इनकी पकड़ इतनी मजबूत हो गई है कि इनके दूसरे 2012 के चुनाव में इनके खाते में लगभग एक हजार वोट कम पड़ा। वहीं काम करवाने वाले इनके कार्यकर्ताओं का कहना है कि विधायक की एक काम के लिए इतनी बैठकें करवाने से उनके हिस्से का सारा फायदा बैठकों में ही खर्च हो जाता है। विधायक की जितनी पकड़ गलियां बनाने में है, उतनी ही कमजोरी भवन बनाने में है। इन्होंने अपनी निधि से कुम्हारबाड़ा में दूसरी मंजिल पर आंगनबाड़ी के ऊपर एक भवन बनाया। बनने के कुछ महीने बाद ही उसके लिंटर से पानी लीक होकर नीचे आंगनबाड़ी में पडऩे वाले छोटे बच्चों पर टपकता है। वहीं रेलवे रोड पर इन्होंने शहीद मनीष थापा की स्मारक स्थली पर डेढ़ लाख से ज्यादा खर्च किए, परंतु जानकारों का कहना है कि इस काम में ५० हजार से ज्यादा का खर्च नहीं आना था। इन्होंने अपनी निधि का प्रयोग केंद्रीय विद्यालय में भी किया। वहां बने भवन की तो छत पहले ही तूफान में उड़ गई थी। तब अपनी किरकिरी से बचने के लिए विधायक को दोबारा अपनी निधि खर्च करनी पड़ी। ऐसा भी नहीं हुआ कि इनकी विधायक निधि की कृपा हर क्षेत्र में पड़ी हो। इन्होंने पहाड़ी बाहुल्य क्षेत्र इंदिरानगर, गीतानगर, रुशा फॉर्म, श्यामपुर गढ़ी, गोहरी माफी, खांड गांव आदि में अपनी विधायक निधि का एक धेला भी खर्च नहीं किया।
अपने गृह क्षेत्र से इनका इतना लगाव है कि इन्होंने अपनी विधायक निधि के लगभग सभी कार्य अपने गृह विकासखंड डोईवाला से ही करवाए हैं।
कई समस्याओं पर ध्यान नहीं
आजकल चुनावी दौर में जनता के सामने जाने के लिए ये मुख्यमंत्री हरीश रावत को क्षेत्र की समस्याओं के ज्ञापन देने लग गए हैं, परंतु आज तक इनके गलियां बनाने के लिए होने वाली बैठकों से ही ध्यान नहीं हट पाया, जिससे ये अपने विधानसभा क्षेत्र की दूसरी गंभीर समस्याओं को विधानसभा के पटल तक पर नहीं रख पाए। इनके ऋषिकेश आवास से मात्र 200 मीटर की दूरी पर रंभा झील के विकास का काम कई सालों से लटका पड़ा है, जो कि नगर के पर्यटन विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। ऋषिकेश का एकमात्र महाविद्यालय के 2011 में ऑटोनॉमस होने के कारण इनकी विधानसभा के कई छात्रों को खासकर प्राइवेट उच्च शिक्षा के लिए दूर जाने को मजबूर होना पड़ता है। कई सालों से टिहरी विस्थापित राजस्व ग्राम बनाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। पहाड़ों की होलसेल का बाजार ऋषिकेश में होने के कारण यहां टांसपोर्टनगर स्थापित करने का मामला भी लटका पड़ा है। इन समस्याओं के समाधान का तो इन्होंने कभी प्रयास किया ही नहीं, पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऋषिकेश कार्यक्रम में कांग्रेस महासचिव राजपाल खरोला द्वारा दिए गए 14 सूत्रीय ज्ञापन की फोटो स्टेट करवाकर उसे विधायक ने अपने नाम से अगले दिन मुख्यमंत्री को देने का दिमाग खूब चलाया। विधायक के इस क्रियाकलाप पर खरोला ने इनको मीडिया के माध्यम से क्षेत्र की समस्याओं पर बहस करने की खुली चुनौती भी दी।
इन्होंने स्थानीय रोजगार संवद्र्धन के लिए वर्षों से सिक यूनिट घोषित दवा निर्माता आईडीपीएल की फैक्ट्री को खुलवाने का भी अपने स्तर से कोई प्रयास नहीं किया। इन्होंने अपने कार्यकाल से पहले स्थापित हुए एम्स को खुलवाने का श्रेय लेने की पूरी कोशिश तो की, किंतु उसमें स्थानीय लोगों के रोजगार के लिए कोई तत्परता नहीं दिखाई। स्वास्थ्य को लेकर इन्होंने स्वास्थ मंत्री का तो घेराव कर डाला, परंतु इन्होंने अपने कार्यकाल में न तो एक भी स्वास्थ्य केंद्र खुलवाया और न ही किसी स्वास्थ्य केंद्र का उच्चीकरण करवाने में सक्रियता दिखाई। शिक्षा के क्षेत्र में भी ये फिसड्डी ही रहे। इनके कार्यकाल में कोई नया स्कूल नहीं खुला और न किसी स्कूल का उच्चीकरण हुआ। 2011 के ऋषिकेश महाविद्यालय के ऑटोनॉमस हो जाने से अब इंटर पास कई छात्रों को इस कॉलेज में मेरिट सूची में न आने पर दूरस्थ जाने को मजबूर होना पड़ रहा है। क्षेत्र के प्रति इनकी संवेदनशीलता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इन्होंने सदन तक में इन बेसिक मुद्दों को उठाने की हिम्मत नहीं दिखाई।
अखरता है आक्रामक व्यवहार
पार्टी की महिला कार्यकर्ताओं के साथ भी बचकाना व्यवहार करते हैं। अजय भट्ट के प्रदेश अध्यक्ष बनने पर पहली बार ऋषिकेश आगमन पर इन्होंने एक महिला सभासद के गले में बीच सभा में माला डाल दी। उसके बाद उस सभासद ने इनको खूब खरी खोटी सुनाई, पर ये तब भी मुस्कराते रहे। महिला की बदसलूकी पर कांग्रेस ने अगले दिन इनका पुतला भी फूंका।
यही नहीं क्षेत्र में इनकी गुण्डागर्दी भी किसी से छिपी नहीं है। इन्होंने अपने बेटे की जिद पूरी न होने पर रोडवेज बस परिचालक की अपनी कार्यकर्ताओं के साथ जमकर धुनाई कर दी। परिचालक की सिर्फ इतनी गलती थी कि उसने इनके लड़के की बस को घर तक छोडऩे वाली बात नहीं मानी। इनके अंदर जोश अब इतना बढ़ गया है कि ये उसमें यह भी नहीं समझ पाते कि जिस अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस कार्यक्रम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरे विश्व में फैला रहे थे, वहीं अग्रवाल उसका मट्टीपलीत करने में लगे थे। इस दिन इनके अंदर सरकारी स्वास्थ सेवाओं के प्रति ऐसा प्रेम जागा कि इन्होंने अपनी ही अध्यक्षता वाले योग कार्यक्रम में स्वास्थ्य मंत्री सुरेंद्र सिंह नेगी के साथ अमानवीय व्यवहार तक कर दिया। इनके गुस्से को देखकर विदेशों से आए योग प्रशिक्षु डर कर भागते हुए कहने लगे कि ‘स्वामी जी अटैक, गो बैकÓ।
संगठन की नहीं कद्र
अब विधायक जी अपने संगठन को घर की मुर्गी दाल बराबर समझकर विपक्षी नेताओं के करीब जाने लग गए हैं। इनकी बीच बाजार में उस नेता के साथ लगी फोटो चर्चा का विषय है, जिसने इनके सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल का पुतला कई बार फूंका। इनकी कांग्रेसी मूल के नगरपालिका अध्यक्ष दीप शर्मा से दोस्ती भी किसी से छिपी नहीं है। इसके खिलाफ तों में ये अपनी पार्टी के सभासदों की भी नहीं सुनते। यही नहीं अभी पिछले माह भाजपा की जिला उपाध्यक्ष व सभासद कविता शाह के साथ पालिका परिसर में अध्यक्ष द्वारा की गई बदतमीजी पर जहां भाजपा संगठन एक थे, वहीं अग्रवाल दूसरे राज्य में घूमने निकल गए।
विधायक जी नगर में धर्मशालाओं की जमीनों के खुर्द-बुर्द और पालिका में हुई वित्तीय अनियमितता पर अध्यक्ष के खिलाफ चूं तक नहीं करते। इनकी इन्हीं हरकतों का संज्ञान लेते हुए ऋषिकेश में आयोजित एक बैठक में प्रदेश संगठन मंत्री संजय गुप्ता ने विधायक को चेताया था कि यदि खुद पर इतना विश्वास है तो निर्दलीय लड़कर देख लो।
इतने सालों से विधायकी करने के बाद ये अपनी ही पार्टी के स्थानीय पदाधिकारियों के बीच पैठ बनाने में सफल नहीं हो सके। 2012 में संदीप गुप्ता का नाम काटकर दोबारा अग्रवाल को ही टिकट देने के बाद यहां के स्थानीय पार्टी कार्यकर्ताओं ने संगठन महामंत्री रामलाल अग्रवाल का पुतला फूंका। अभी बीती 4 सितंबर को भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष गोविंद अग्रवाल ने अपनी जन्मदिन की पार्टी में सभी छोटे-बड़े कार्यकर्ताओं को बुलाया।
यहां तक कि दूसरी पार्टी के भी लोग आए, परंतु चुनावी दौर में आयोजित इस पार्टी में भाजपा के स्थानीय विधायक को नहीं बुलाया गया। क्षेत्रीय नेताओं में पार्टी टिकट के प्रब
ल दावेदारों में 2002 के प्रत्याशी संदीप गुप्ता, जो उस समय मात्र ८०० वोटों से हारे थे, का कहना है कि मेरा टिकट दो बार कटना दुर्भाग्यपूर्ण था। संगठन में गॉडफादर परंपरा घातक है।
पूर्व जिलाध्यक्ष व पूर्व जिला पंचायत सदस्य ज्योति सजवाण कहते हंै कि विधायक यहां के कार्यकर्ताओं को हर समय ये एहसास दिलाते रहते हैं कि ऋषिकेश के कार्यकर्ता मूर्ख हैं।
दो बार ऋषिकेश से विधायक बन जाने के बावजूद प्रेमचंद अग्रवाल इस क्षेत्र को अपना नहीं समझते और गुस्से में अक्सर यहां के स्थानीय भाजपाई कार्यकर्ताओं को ताने मारते हुए कहते हैं कि ‘तुम ऋषिकेश वाले तो कोई बात ही नहीं समझते।Ó
विधायक जी नगर में धर्मशालाओं की जमीनों के खुर्द-बुर्द और पालिका में हुई वित्तीय अनियमितता पर अध्यक्ष के खिलाफ चूं तक नहीं करते। इनकी इन्हीं हरकतों का संज्ञान लेते हुए ऋषिकेश में आयोजित एक बैठक में प्रदेश संगठन मंत्री संजय गुप्ता ने विधायक को चेताया था कि यदि खुद पर इतना विश्वास है तो निर्दलीय लड़कर देख लो।