कमल जगाती, नैनीताल
उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने पिछले दिनों जारी किए अपने आदेश में राज्य के बॉण्ड धारी चिकित्सकों को परमानेंट चिकित्सकों के बराबर वेतनमान और अन्य सेवा सुविधा दस माह के भीतर देने को कहा है ।
याचिकाकर्ता डॉ.अभिषेक बंदूनी व अन्य ने
हल्द्वानी के सुशीला तिवारी मैडिकल कॉलेज से सशर्त अपनी डिग्री हासिल की और सरकार के साथ एक बॉण्ड के तहत काम शुरू किया। सरकार ने बांड में दी शर्तों में बदलाव कर चिकित्सकों को दुर्गम और अति दुर्गम क्षेत्रों में दिए जाने वाले वेतनमान और सुविधाओं में बदलाव कर कमी कर दी। इससे नाखुश डिग्रीधारी चिकित्सकों ने राज्य सरकार व एक अन्य के खिलाफ उच्च न्यायालय में मुकदमा दर्ज कर नियमों में नियमविरुद्ध बदलाव को चुनौती दी थी।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता विपुल शर्मा के अनुसार उन्होंने न्यायालय को बताया कि बॉन्ड में पांच वर्ष दुर्गम और अति दुर्गम क्षेत्रों में सेवा देना अनिवार्य था, इसके अलावा इन चिकित्सकों को परमानेंट चिकित्सकों के बराबर वेतनमान और अन्य सुविधाएं भी दी जानी बताई गई थी । लेकिन ड्यूटी जॉइन करते समय सरकार ने वेतन को, स्थल के अनुसार घटाकर कम कर दिया। उन्होंने बताया कि न्यायालय ने इस बात का संज्ञान लिया कि अगर चिकित्सक का सरकार ध्यान नहीं रखेगी तो दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में चिकित्सक मरीजों का ध्यान कैसे रख सकेंगे ?
अधिवक्ता ने बताया कि बॉन्ड धारी चिकित्सकों को लगभग एक लाख और सतत्तर हजार के सापेक्ष केवल 48 हजार, 52 हजार और 56 हजार रुपये दिए जा रहे हैं।
वरिष्ठ न्यायाधीश राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा की खंडपीठ के इस आदेश के बाद पहाड़ों में चिकित्सकों की नियुक्ति से, एक हद तक चिकित्सकों की कमी से निजात मिलने की उम्मीद जताई जा रही है।