पौड़ी नगरपालिका के कर्मचारियों के सामने वेतन का संकट पैदा हो गया है। पालिका के करीब 45 कर्मचारियां को नवम्बर महीने की तनख्वाह नहीं मिली है। जबकि समस्त कर्मचारियों का जीपीएफ, एलआईसी आदि समेत सेवानिवृत्त कर्मियां की पेंशन रुक गई है। कोषागार ने पालिकाध्यक्ष यशपाल बेनाम के पास वित्तीय अधिकार न होने का हवाला देते हुए भुगतान पर रोक लगा दी है, इस कारण सिंडिकेट बैंक ने पालिका के एक चैक को बाउंस कर दिया है, जबकि अन्य बैंकों में पालिका के खाते लगभग खाली हो गए हैं।
जिस बात का अंदेशा था, वह सच साबित हुई। राष्ट्रीय सहारा ने यशपाल बेनाम की ताजपोशी से पहले ही वित्तीय अधिकारां के संकट को लेकर अपनी खबर प्रकाशित कर दी थी। अब कोषागार ने इस खबर पर अपनी मुहर लगा दी है। बेनाम के पूर्व कार्यकाल में सीज हुए वित्तीय अधिकारोंके चलते पालिका के सामने भुगतान का संकट पैदा हुआ है। जिलाधिकारी ने बिना तथ्यों को परखे बेनाम के वित्तीय अधिकार बहाल कर दिये थे, लेकिन कोषागार ने इस पर अपनी आपत्ति लगा दी है। अब मसला शासन न्याय विभाग के पाले में है। पालिका ने कर्मचारियों का नवम्बर महीने का वेतन, पेंशन, जीपीएफ, कर्मचारी बीमा आदि के भुगतान के लिए पौड़ी कोषागार को 26 लाख रुपये का बिल भेजा था। आमतौर पर यह धनराशि स्वीकृति के बाद बैंक में आती है। जहां से कर्मचारियों के खाते में पैसा स्थानांतरित किया जाता है। कोषागार से स्वीकृति की प्रत्याशा में पालिका ने पंजाब नैशनल बैंक को करीब 11 लाख व सिंडिकेट बैंक को करीब 3 लाख रुपये का चैक भेजकर कर्मचारियों के खाते में वेतन स्थानांतरित करने के लिए कहा था। पीएनबी में पालिका की अपनी आय का पैसा भी जमा रहता है। इस कारण 11 लाख रुपये के चैक को कैश करते हए कुछ कर्मचारियों को वेतन मिल गया। लेकिन सिंडिकेट बैंक में कोषागार से पैसा न पहुंचने के कारण पालिका का चैक बाउंस हो गया। कोषाधिकारी प्रवीन बडोनी ने यशपाल बेनाम के हस्ताक्षरां को यह कहते हुए अमान्य कर दिया है कि उनके वित्तीय अधिकारों की बहाली के बाबत शासन से निर्देश प्राप्त नहीं हुए हैं।
कुछ कर्मचारियों की तनख्वाह जारी हो जाने के कारण पालिका का पंजाब नैशनल बैंक का खाता भी करीब करीब खाली हो गया है। नगरपालिका के अधिशासी अधिकारी ने बताया कि शासन को पत्र भेज कर निर्देश मांगे गए हैं। यदि जल्द ही शासन यशपाल बेनाम के वित्तीय अधिकार बहाल नहीं करता है, तो संकट गहरा सकता है। उधर, जानकारों के मुताबिक ऐसी स्थिति में जिलाधिकारी को ही पालिका में भुगतान के समस्त बिलों पर हस्ताक्षर करना होगा। यानि चुनाव पूर्व स्थिति यथावत रह सकती है। शहरवासियों ने बेनाम के वित्तीय अधिकार बहाल करने की मांग करते हुए कहा कि चुने हुए जनप्रतिनिधि को उसके अधिकार वापस किये जाने चाहिए।