पौड़ी स्थित वानिकी विश्वविद्यालय को यहां के कुलपति ने अपने बच्चों को ही नौकरी देकर तथा मनमानी खरीद-फरोख्त से भ्रष्टाचार का अड्डा बना लिया है।
पर्वतजन ब्यूरो
उत्तराखंड में सरकारी नौकरियों की भर्ती नियमावली के अनुसार यह स्पष्ट प्रावधान है कि भर्ती की अधिकतम सीमा 42 वर्ष होगी, किंतु औद्यानकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय भरसार में 42 वर्ष से ऊपर के व्यक्तियों की फर्जी भर्तियां की जा रही हैं। भरसार विश्वविद्यालय ने 15 अक्टूबर 2016 को चहेतों को भर्ती करने के लिए एक विज्ञापन निकाला, जिसमें अधिकतम आयु सीमा 45 वर्ष रखी गई है। यह सरासर नियमों के विपरीत है।
कुलपति ने आयु सीमा अपनी मर्जी से इसलिए बढ़ाई है, ताकि अपने चहेतों को नियुक्ति दी जा सके। आरोप हैं कुलपति की इससे मोटी डील हुई है।
कुलपति ने अपने खास-खास को स्थाई नियुक्ति देने के लिए जनसंपर्क अधिकारी, लेखाधिकारी, सहायक अधिष्ठाता, छात्र कल्याण वैयक्तिक सहायक के पदों का विज्ञापन निकाला। इस पर पहले से ही तय था कि किस पद पर किसकी नियुक्ति होनी है। इतना ही नहीं, जो 42 वर्ष से ऊपर हो गए हैं, उनको जबरन छूट दी जा रही है, वह भी सरकारी ऑर्डर की अनदेखी करते हुए। बीपी सिंह बिष्ट को जनसंपर्क अधिकारी, हेमंत बिष्ट को सहायक अधिष्ठाता छात्र कल्याण तथा विमल जुगरान को लेखाधिकारी राहुल बिंजोला को वैयक्तिक सहायक बनाया जाना है। ऐसे में संस्थान के कर्मचारियों का आरोप है कि दिखाने के लिए विज्ञापन निकालने की नौटंकी करके जनसामान्य को गुमराह किया जा रहा है।
बेटे-बेटी को घर बैठे वेतन
आउटसोर्सिंग पर कार्य करने वाले कर्मचारियों को पहले ठेकेदारी पर सेवाएं देने के लिए कहा गया और अब उन्हें उपनल के द्वारा 6-7 हजार की नौकरी करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर कुलपति डा. मैथ्यू प्रसाद ने अपनी शक्ति का गलत इस्तेमाल करते हुए अपने बेटे सुधांशु प्रसाद तथा बेटी मधुलिका प्रसाद को घर बैठे तनख्वाह दिलाई, वह भी दो साल से अधिक समय तक। जब इसका विरोध शुरू हुआ तो कुलपति को उन्हें हटाना पड़ा। इतना ही नहीं उन्हें तो 30000 से 35000 तक दिए गए, किंतु उनके जैसे अन्य कर्मचारियों को उपनल के माध्यम से 6-7 हजार की नौकरी करने के लिए मजबूर किया जा रहा।
कुलपति ही नहीं, बल्कि विश्वविद्यालय के पीआरओ हेमंत सिंह बिष्ट ने भी अपनी पत्नी मोहिनी को घर बैठाकर तनख्वाह दिलाई, वह भी 12 हजार हर माह। उनकी पत्नी खाद्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान सहसपुर के बाद डोईवाला से वेतन पाती रही। विश्वविद्यालय कुलपति तथा पीआरओ दोनों मिलकर अनाप-शनाप डील बनाकर काफी धन की बंदरबाट कर रहे हैं और अपने खास लोगों को हर तरीके से गलत फायदा पहुंचा रहे हैं। इस बंदरबांट में सेलाकुई ऑफिस पर जमे कर्मचारी भी शामिल हैं, जो बहुत कम ऑफिस आते हैं और तनख्वाह पूरी पाते हैं। अभी विषय वस्तु विशेषज्ञ के पदों पर पक्की नियुक्तियां हुई, इसमें भी काफी रिश्वत लेने की चर्चाएं चरम पर है। संस्थान के ही लोगों का आरोप है कि इसमें अयोग्य लोगों को नियुक्त किया गया है।
मनमानी का अड्डा विश्वविद्यालय
यही नहीं संस्थान के सेलाकुई स्थित कार्यालय में चार-पांच कर्मचारियों को कमरे दिए गए हैं, जिनसे कोई किराया नहीं लिया जा रहा है और न ही पानी का कोई बिल, जबकि रानीचौरी व भरसार में इनके जैसे कई अन्य कर्मचारी 6-7 हजार की तनख्वाह में कमरे का किराया दे रहे हैं। ऐसे में यह छूट क्यों दी जा रही है!
एक कर्मचारी आरोप लगाते हुए कहते हैं कि डा. अरविंद शुक्ला को भी फ्री में कमरा दिया गया था, उनसे कोई किराया नहीं लिया गया। ऐसे में कुलपति डॉ. प्रसाद ने विश्वविद्यालय को ही नहीं, बल्कि सरकार को भी नुकसान पहुंचाया है। इतना ही नहीं, एक चहेते कर्मचारी नवीन को भी प्रसाद ने कार्यालय सहायक का ऑफर लेटर देने के बाद क्लर्क बनाया। सिर्फ कुछ खास लोगों पर मेहरबान मैथ्यू प्रसाद ने भेदभाव करके संस्थान के अन्य कर्मचारियों में हीनभावना पैदा कर दी है। विश्वविद्यालय के कर्मचारी कहते हैं कि कुलपति तथा पीआरओ की संपत्ति की जांच की जानी चाहिए।
नियमानुसार कुलपति को भरसार कैंपस में ही रहना चाहिए था, किंतु वह देहरादून में जमे बैठे हैं। ऐसे में इस विश्वविद्यालय के द्वारा क्या तरक्की हो रही होगी, उसकी व्याख्या कोई भी कर सकता है। यही नहीं, देखा-देखी विश्वविद्यालय के कुलसचिव देहरादून में ही डेरा जमाए बैठे रहते हैं। इसी का परिणाम है कि आज तक विश्वविद्यालय ने कोई ऐसी तकनीक नहीं बनाई जो पहाड़ के छोटे किसानों को फायदा दे सके। इसका परिणाम यह है कि विश्वविद्यालय के कुलपति के प्रति संस्थान के कर्मचारियों में ही गुस्सा पनपने लगा है।
औद्यानकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय भरसार की स्थापना उत्तराखंड को हिमाचल की तरह विकसित का समृद्ध बनाने के लिए की गई थी, परंतु आज इस की स्थिति देख कर लगता है कि यह सिर्फ यहां जमे अधिकारियों के विकास के लिए बनाया गया है।