श्रीनगर बांध की समस्याओं के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय जिम्मेदार दिखाते हुए राष्ट्रीय जनआयोग की घोषणा करके क्षेत्र के बांध प्रभावितों में उम्मीद जगा दी है।
विमल भाई
श्रीनगर बांध परियोजना के पर्यावरण व पुनर्वास तथा अन्य सवालों की निगरानी रखने और निर्णय लेने की पूर्ण जिम्मेदारी केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की है। हाल ही में जल संसाधन एवं नदी विकास और गंगा पुनर्जीवन मंत्री उमा भारती ने उत्तराखंड राज्य सरकार को परियोजना के विभिन्न नियमों के उल्लंघनों पर कार्यवाही करने का जो निर्देश दिया है, उसका श्रीनगर के नागरिकों ने स्वागत किया है।
श्रीनगर बांध आपदा संघर्ष समिति व माटू जनसंगठन के तत्वाधान में उत्तराखंड में अलकनंदा नदी के किनारें श्रीनगर में आयोजित सेमिनार में वक्ताओं ने परियोजना बनने से पहले और परियोजना के चालू होने के बाद विभिन्न असरों पर अपनी बात रखी। माटू संगठन के समन्वयक विमल भाई ने कहा कि हम मंत्री जी के पत्र में व्यक्त की गई, चिंताओं का स्वागत करते हैं। हम मानते हैं कि राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह अपने स्तर पर परियोजना से संबंधित मुद्दों का तथ्य परक आंकलन करें और अपनी रिपोर्ट केन्द्रीय मंत्रालय को भेजें और साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि परियोजना की मूलत: दो पर्यावरण और वन स्वीकृतियां, केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय द्वारा दी जाती हैं। इसलिये मंत्रालय की यह पहली जिम्मेदारी है कि वह दोनों स्वीकृतियों पर निगरानी करे। इस मंत्रालय ने बिना किसी अध्ययन, पर्यावरण प्रभाव आंकलन किये बांध की उंचाई 65 मी. से 95 मी. तथा विद्युत उत्पादन क्षमता 220 मेगावाट से 330 मेगावाट करने की अनुमति दी जिसका नतीजा यह हुआ कि मां धारी देवी का प्राचीनतम मंदिर जलमग्न हो गया, श्रीनगर शहर को लगातार समस्याओं का सामना करना पड़ा है, जिसमें पीने का गंदा पानी, बांध की नहर के रिसाव के कारण चौरास क्षेत्र के अनुसूचित जाति बहुल मंगसू, सुरासू, गुगली नागराजासैण, पतुल्डु तथा नौर व मढ़ी आदि समस्त वह क्षेत्र जहां से परियोजना की नहर गुजरती है, खतरे की स्थिति में है। जिसे सरकारी वाडिया संस्थान ने भी स्वीकारा है। अलकनंदा लोगों से छिन गई है।
गढ़वाल के केन्द्रीय विश्वविद्यालय, श्रीनगर के भूगर्भ विज्ञानी प्रो. सती ने कहा कि यह परियोजना भूगर्भीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र में बना दी गई है जो कि भविष्य के लिये खतरा है।
कीर्तिनगर से चन्द्रभानु तिवाड़ी ने कहा कि बांध का मक निस्तारण के बारे में पर्यावरण मंत्रालय ने पूर्व में अपनी स्वीकृति में स्पष्ट दिशा निर्देश नहीं दिये थे और बांध कम्पनी ने भी मक का निस्तारण समुचित तरीके से नहीं किया जिस कारण सन् 2013 की आपदा में श्रीनगर शहर के एक हिस्से को भयंकर परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। एन0 जी0 टी0 के 19/08/2016 के आदेश में यह बात स्वीकार की गई है।
मंगसू गांव के महेश भारद्वाज का कहना है कि हमें छला गया। पहले हम नदी से पानी लाते थे अब पीने का पानी दो दिन में एक बार मिलता है। बांध नहर के कारण सिंचाई की गूलें खत्म हो गई, हमारी जमीनों पर खेती नहीं हो पा रही और जो जमीनें लीज पर ली थीं, कम्पनी ने उसका हर साल एक समझौता करना था, जो कई सालों से नहीं हुआ है। हमारे रिहायशी भवनों में भी दरारें है न पशुओं को चारा है न घर में अनाज। रोजगार से भी युवाओं को भी वंचित कर दिया गया है।
भक्तियाना क्षेत्र की वार्ड सदस्य सुश्री विजयलक्ष्मी रतूड़ी ने कहा कि बांध से मिलने वाला 12 प्रतिशत व 1 प्रतिशत बिजली का पैसा जो क्षेत्र के लिये खर्च किया जाना था उसका कुछ पता ही नहीं है।
श्रीनगर बांध आपदा संघर्ष समिति के अध्यक्ष चन्द्र मोहन भट्ट ने चिन्ता व्यक्त की कि नदी में अविरल प्रवाह न होने के कारण बांध से पावर हाउस तक नदी का पारिस्थितिकी तंत्र खत्म हो गया है। मछलियों का जीवनचक्र प्रभावित हुआ है। 6 सरकारी ट्यूबवैल निर्मित होने से पहले ही बेकार हो गये। अन्य विभिन्न वक्ताओं ने भी बांध से उत्पन्न विभिन्न समस्याओं पर चिन्ता व्यक्त की। सेमिनार के अंत में सर्वसम्मति से केन्द्रीय मंत्री उमा भारती जी, अनिल माधव दवे व मुख्यमंत्री हरीश रावत को पत्र के माध्यम से अपनी चिन्ताओं से अवगत करवाया व मांग की कि ये सभी मुद्दे केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा अध्ययन किए जाएं। पर्यावरण मंत्रालय अपनी जिम्मेदारी निभाए, चूंकि पर्यावरण एवं वन दोनों की ही स्वीकृति उसने ही दी है। आगे की रणनीति के तौर पर बांध से जुड़ी सभी समस्याओं पर एक विस्तृत अध्ययन रिपोर्ट के लिये एक ‘श्रीनगर बांध पर राष्ट्रीय जनआयोगÓ की घोषणा की गई, जिसके नामों की घोषणा भी जल्दी की जाएगी। यह जनआयोग अगले दो महीनों में इस रिपोर्ट को सरकार को भेजेेगा तथा राज्य सरकार द्वारा की जा रही कार्यवाही पर निगाह भी रखेगा।