दो वर्ष का कार्यकाल पूरा कर चुकी त्रिवेंद्र रावत सरकार इन दिनों किसी काम के लिए विवादों में नहीं है, बल्कि इन दिनों भाजपा के विधायकों की आपसी सिर-फुटव्वल और संगठन का मौन आम जनमानस के मन में सवाल खड़े कर रहा है कि आखिरकार यह सब कुछ लगातार कैसे जारी है !
झबरेड़ा के विधायक देशराज कर्णवाल और खानपुर के विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन के बीच लगातार विवाद ने सबसे ज्यादा नुकसान हरिद्वार से चुनाव लड़ रहे रमेश पोखरियाल निशंक का किया। बीच चुनाव में दोनों विधायकों ने इतना रायता फैलाया कि निशंक खून का घूंट पीकर रह गए। इन दोनों विधायकों के बीच विवाद की जो जड़ें अब खुलकर सामने आ रही हैं, उनमें भाजपा की वह गुटबाजी स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है, जिस गुटबाजी ने अंतरिम सरकार के पहले मुख्यमंत्री स्व. नित्यानंद स्वामी से लेकर जनरल भुवनचंद्र खंडूड़ी, रमेश पोखरियाल निशंक की बारी-बारी कर कुर्सी बदलवा दी।
उत्तराखंड के जन्म के साथ ही भाजपाइयों द्वारा मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए किए गए षडयंत्र उसी दिन दिख गए थे, जब 9 नवंबर 2000 को नित्यानंद स्वामी के शपथ ग्रहण से आधे भाजपाई गायब रहे। बाद में नित्यानंद स्वामी को हटाकर भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री बनाया गया, किंतु राज्य गठन करने वाली भाजपा ने भगत सिंह कोश्यारी के नेतृत्व में लड़े चुनाव में भाजपा को ही चारों खाने चित कर दिया।
संगठन का एक बड़ा धड़ा विधायकों के इस बवाल की आग में घी डालने का काम कर रहा है तो असंतुष्ट विधायकों ने इस आग में लकडिय़ां झोकने का काम कर रखा है। दोनों मोर्चों पर इस प्रकार काम किया जा रहा है कि आने वाले वक्त में त्रिवेंद्र रावत के पास कोई जवाब ही न बचे।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट द्वारा नैनीताल लोकसभा चुनाव लड़कर आने के बाद कार्यकारी अध्यक्ष नरेश बंसल पर किया गया कटाक्ष यह समझने के लिए पर्याप्त है, जो भट्ट ने किया कि मेरी अनुपस्थिति में विधायकों के बीच बवाल हुआ है और उस वक्त नरेश बंसल कार्यकारी अध्यक्ष थे।
2007 में भुवनचंद्र खंडूड़ी के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके खिलाफ षडयंत्र करने वाले मंत्री व विधायक आज भी उसी विधानसभा में बैठे हैं। मजेदार बात यह रही कि यही मंत्री विधायक कुछ दिन बाद उन्हीं रमेश पोखरियाल निशंक के खिलाफ हो गए थे, जिन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया था।
षडयंत्रों का यह खेल 2017 की प्रचंड बहुमत वाली भाजपा सरकार में बदस्तूर जारी है। त्रिवेंद्र रावत की ढीली-ढाली छवि के बीच लोकसभा चुनाव के परिणाम पर अब लोगों की निगाहें टिकी हुई हैं। यदि किसी भी कारणवश पांच में से कोई भी सीट भाजपा हारी तो त्रिवेंद्र रावत पर हमले तेज होने तय हैं। मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़े पांचों प्रत्याशियों की जीत पर भाजपा के दिग्गज भी आशंकित हैं। इंतजार अब 23 मई का है। यदि परिणाम त्रिवेंद्र रावत द्वारा कहे गए अनुसार नहीं आया तो बगावत का झंडा बुलंद होना निश्चित है।