जगदम्बा कोठारी
एम्स भर्ती महाघोटाला। किस प्रकार राज्य के बेरोजगारों को दरकिनार कर मुजफ्फनगर वालों को मिली नियुक्तियां
परीक्षा से पहले ही पेपर हो गया था आउट
15 से 50 लाख रुपये तक बेचा गया भर्ती परीक्षा पेपर
एक ही परिवार के चार-चार सदस्यों को मिली नौकरी
अधिकारियों के चहेतों को भी मिली गैर कानूनी नियुक्तियां
उत्तराखंड मे लचर स्वास्थ्य व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए वर्ष 2012 में तब की कांग्रेस सरकार ने ऋषिकेश मे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) का शुभांरभ किया। ऋषिकेश एम्स का मकसद उत्तराखंड के दूरस्थ पर्वतीय जिलों सहित मैदानी जिलों में भी आधुनिक स्वास्थ्य सुविधा देने सहित प्रदेश मे बड़ रहे बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध कराना था, जिसका उद्देश्य रोजगार के अभाव मे उत्तराखंड में बड़ रहे पलायन पर कुछ हद तक रोक लगाना था, लेकिन पिछले एक वर्ष से एम्स परिसर एम्स प्रशासन की भ्रष्ट नीतियों के चलते भ्रष्टाचार संस्थान बन गया है। जिसमें अब भर्ती का महाघोटाला उजागार हुआ है। तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद ने घोषणा की थी कि एम्स में तृतीय व चतुर्थ श्रेणी के पदों पर 70 प्रतिशत उत्तराखंड के स्थानीय बेरोजगारों को ही दी जाएंगी। एम्स प्रशासन की मनमर्जी के चलते प्रदेश के बेरोजगारों को दरकिनार करके तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के पदों पर मोटी रकम लेकर बाहरी व्यक्तियों को नियुक्तियां प्रदान कर स्थानीय बेरोजगारों के साथ छल किया जा रहा है।
आइए विस्तार से जानते हैं कि एम्स प्रशासन ने नियमित और आउटसोर्सिंग वाली भर्ती के पदों में स्थानीय युवाओं को बाहर कर बाहरी व्यक्तियों, चहेतों व अपने रिश्तेदारों को नियुक्तियां प्रदान की।
एक ही परिवार के चार -चार। कोई चहेता कोई रिश्तेदार
शुरुआत करते हैं नियमित भर्ती से, जो पिछले वर्ष आयोजित हुई थी। परीक्षा में एक ही परिवार के चार-चार सदस्य चयनित हुए हैं और अधिकारियों के चहेतों को नौकरियां दी गई।
हास्पिटल अटेंडेंट के पदों पर
1- सुमित वैद्य(पति)
2- मोनिका वैद्य(पत्नी)
3- इन्दु वैद्य(सुमित वैद्य की साली)
4- सागर वैद्य(सुमित वैद्य का साला)
अब बात करें अकाउंट आफिस की इस विभाग मे राजभाषा अधिकारी के चहेतों को नियुक्तियां प्रदान की गई।
1- उषा (राजभाषा अधिकारी की साली है)
2- हिमांशु (राजभाषा अधिकारी का भांजा है)
3- ऋषिपाल (राजभाषा अधिकारी ने अपने सहायक के तौर पर नियुक्त किया है।
4- रेखा तिवारी (इनको पति एम्स में आई सेक्सन में पहले से ही नियुक्त थे)
5- हर्षित शर्मा (रेखा तिवारी का रिश्तेदार है)
6- पंकज
7- अंजली (पंकज की पत्नी)
8- छवि (पंकज की साली
9- पंकज के भाई का भी चयन हुआ है।
अब स्टोर विभाग की बात करें तो वहां भी अंकित कुमार और उनके ही साले नितिन कुमार को नियुक्ति मिली है।
स्थानीय बेरोजगारों को दरकिनार कर गलत तरीके से फर्जी नौकरी पाने वालों की फेहरिस्त बहुत लंबी है। सवाल यह है कि आखिर यह सब गोलमाल हुआ कैसे?
कौन है सूत्रधार
आइए आपको बताते हैं कि इस महाघोटाले के सूत्रधार अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के डॉयरेक्टर डा. रविकांत हैं, जिनके इशारे पर नौकरियों का यह काला खेल चला।
अप्रैल 2018 में किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ के वाइस चांसलर पद्मश्री व यश भारती जैसे पुरस्कारों से सम्मानित डा. रविकांत का चयन एम्स ऋषिकेश के स्थायी निदेशक के पद पर हुआ। पदभार ग्रहण करने के बाद से ही रविकांत ने मनमाने तरीके से राज्य के बाहर से आए परिचितों से नौकरी का खेल शुरू कर दिया।
यहां तक कि ऋषिकेश एम्स में स्थानांतरित होने के बाद इन्होंने अपनी धर्मपत्नी डा. बीना राव को भी अपने तैनाती स्थल ऋषिकेश एम्स में ही प्रवक्ता के तौर स्थानांनतरित करवा लिया।
निदेशक की पत्नी और चहेते
अब निदेशक और उनकी पत्नी के चहेतों की बात करे तों खुलासा और भी चौंकाने वाला है।
बात करते हैं अवर श्रेणी लिपिक अंकिता मिश्रा की। सूत्र बताते हैं यह महिला पहले एम्स भोपाल में तैनात थी, लेकिन कुछ कारणों से इन्हें वहां से निकाल दिया गया, लेकिन निदेशक के करीबी होने के कारण इन्हें ऋषिकेश में तैनाती ही नहीं, बल्कि रहने को सरकारी क्वार्टर भी मिला हुआ है, जबकि 2017 से नियमित हुए कर्मचारियों को बाहर किराए पर रहना पड़ रहा है।
इसी कड़ी में अनुराग शुक्ला,आकांक्षा शुल्का, अंशिका मिश्रा जैसे नाम भी हैं, जिन पर निदेशक की खुली कृपा रही है।
निदेशक रविकांत के ड्राइवर रामरतन की पुत्री राखी की नियुक्ति भी निदेशक की शह पर ही हुई है।
आउटसोर्स मे भी निदेशक के रिश्तेदार
अभी तक तो हम आपको नियमित कर्मचारियों के पदों पर धांधली का उदाहरण बता रहे थे। अब आगे बढ़ते हैं आउट सोर्सिंग कर्मियों की तरफ तो यहां भी निदेशक ने रिश्तेदारी निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पिछले 6 माह के भीतर निदेशक ने लगभग 700 स्थानीय युवाओं को एम्स से बाहर का रास्ता दिखाकर उनकी जगह अपने गृह जनपद मुजफ्फरनगर के अयोग्य व्यक्तियों को नौकरियां बेची। जिसका स्थानीय बेरोजगारों ने पुरजोर विरोध किया। तब एम्स निदेशक ने उन्हें सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला देकर एम्स परिसर के 200 मीटर के दायरे में आने पर जेल भेजने की धमकी दे डाली। जिसके बाद इन निष्कासित कर्मचारियों का आंदोलन और ज्यादा उग्र हो गया तो घबराए निदेशक ने आंदोलनरत 45 निष्कासित कर्मचारियों को 15 मई तक बहाली का आश्वासन दिया है।
अब सवाल उठता है कि जब निदेशक पहले बयान दे रहे थे कि सभी निष्कासित कर्मचारी सुप्रीम कोर्ट की गाइड के अनुसार अपात्र थे तो उन्हें निकाला गया, किंतु अब सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश कहां गए, जब इनकी बहाली का आदेश जारी किया जा रहा है। मतलब साफ था कि निदेशक तब आंदोलनरत कर्मचारियों को बरगला रहे थे और 15 मई बीत जाने के बाद अब निदेशक अपनी बात से पलट गए हैं।
डा. रविकांत यहां तक भी कहां मानने वाले थे। उन्होंने कैंटीन, पार्किंग और सिक्योरटी गार्ड के टेंडर तक भी अपने चहेतों को बेच डाले।
निदेशक की बढ़ती मनमानी के खिलाफ अब शहर के सभी राजनीतिक दल एकजुट होकर ‘निदेशक भगाओ-एम्स के नारे के साथ आंदोलनरत हैं। सरकार को चाहिए कि इस स्कैम की निष्पक्ष हो।
क्या कहते हैं हुक्मरान
”एम्स प्रशासन की मिली भगत के चलते यह भर्ती घोटाला हुआ है, इसकी सीबीआई जांच जरूरी है।”
– मेयर अनिता ममगाई
”सरकार जल्द सकारात्मक कार्यवाही करेगी, हम सभी स्थानीय बेरोजगारों के साथ हैं।”
– भगतराम कोठारी (राज्य मंत्री)
”शुरूआती दिनों से ही निदेशक यूपी के लोंगों के पक्षधर रहें है, इस घोटाले की सीबीआई जांच जरूरी है।”
– मोहित डोभाल (नगर अध्यक्ष यूकेडी ऋषिकेश)
”पूरा शहर जानता है कि किस प्रकार रविकांत के आदेश पर यह फर्जी नियुक्तियां हुई है, इसमें बड़े लोगों का भी हाथ है। सीबीआई जांच नहीं होने तक आंदोलन जारी रहेगा। जांच पूरी न होने तक निदेशक को निलंबित किया जाए।”
– जयेन्द्र रमोला(एआईसीसी सदस्य)
अभी हाल ही में एम्स के छात्रों के वार्षिकोत्सव में निदेशक रविकांत को एक एनजीओ ने ”उत्तराखंड रत्नÓÓ से सम्मानित किया है, जिसे लेकर भी प्रदेश में खासा बवाल मचा हुआ है। बताते चलें कि डा. रविकांत आरएसएस से जुड़े व्यक्ति हैं और एम्स संचालन केंद्र सरकार के अधीन है तो रविकांत पर हाथ डालने से राज्य सरकार मजबूर है। इस महाभर्ती घोटाले में अन्य बड़े खुलासे होने अभी बाकी हैं, जिसमें पर्वतजन की टीम अभी कार्य कर रही है। हमारा उद्देश्य है कि राज्य के स्थानीय बेरोजगार युवाओं को उनका हक मिले। इस विषय पर हमने एम्स प्रशासन का पक्ष रखने के लिए उनसे संपर्क किया, लेकिन वह इस मामले पर बात करने को तैयार नहीं हैं।
बहरहाल, अब यह देखना दिलचस्प होगा कि जिम्मेदार अधिकारी इस महाभर्ती घोटाले का भंडाफोड़ कर स्थानीय पीडि़त युवाओं की उम्मीदों पर कितना खरा उतर पाते हैं या फिर हमेशा की तरह ही इस ज्वलंत मामले को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा!