जौनपुर टिहरी गढ़वाल में रेप पीड़िता 9 साल की मासूम बच्ची की हालत फिर बिगड़ी।
बच्ची के खून से सने कपड़े अभी तक उसके घर पर ही पड़े है। अब पुलिस क्या जांच और कार्यवाही कर रही है? अस्पताल में डाक्टर को कौन से कपड़े थमाए गए? कुछ पता नहीं।
परिजनों के साथ बालिका को मसूरी अस्पताल ले जाया जा रहा है। पीड़िता का हाल पूछने को गांव पहुंचे मंत्री यशपाल आर्य ने भी स्वयं देखी बच्ची की बदहाली।
दून अस्पताल से आनन फानन में पिछले दरवाजे से महज तीन चार घंटे के उपचार के बाद ही डिस्चार्ज कर दिया था बच्ची को। दून अस्पताल के डाक्टरों की जिम्मेदारी तय हो तो कई पर गाज गिरेगी।बच्ची ठीक से न चल पा रही है, न सो पा रही है। शौच भी नहीं कर पा रही है। सदमे के चलते सो भी नहीं पा रही है बच्ची। माँ और परिवार गहरे सदमे में। रो-रो कर है बुरा हाल।
31 जून को पुलिस दून अस्पताल से पीड़ित बच्ची व मां को सीधे 150 किमी दूर गाँव ले गए, फिर 2 जून को करीब 250 किमी दूर टिहरी 164 के बयान के लिए ले गए। किंतु, बयान नहीं हो सके।
वजह जानिए :
कैंपटी थाना पुलिस एक निजी वाहन में सिर्फ पीड़ित बच्ची व उसकी माँ को बैठाकर ले गए। पीड़िता के पिता व मामा को यह कहकर छोड़ दिया कि साथ में उनकी जरूरत नहीं है। मजेदार मजाक यह कि उसी गाड़ी में आरोपी विपिन पंवार को भी उसी पीड़िता के साथ करीब चार घंटे के सफर में उसी गाड़ी में साथ बैठाकर ले गए।
परिणाम : बच्ची टिहरी पहुंचने तक इतनी घबरा गई कि मजिस्ट्रेट के सामने बयान भी नहीं दे पाई। माँ ने बताया कि कैम्पटी थाने में आरोपी दरिंदे को देख कर ही बच्ची बुरी तरह सहम गई थी। आरोपी को कोर्ट परिसर में भी दिनभर बच्ची व उसकी माँ के आसपास ही रखा गया।
कुल मिलाकर मामला संगीन है। पुलिस का रवैया शक के दायरे में। खासकर, जांच अधिकारी सीओ नरेंद्र नगर उत्तम सिंह जिमिवाल दलित एट्रोसिटी के हर मामले में लीपापोती करने में जुटे हैं। जो लोग पीड़ित परिवार को पुलिस कार्यवाही के लिए बार बार रोक रहे थे, पीछा किया, उनका नाम पीड़िता के परिजनों ने नैनबाग चौकी में लिखवाए हैं। उनका क्या हुआ?
मंत्री यशपाल आर्य के समक्ष पूरा वाकया रखा गया है। उन्होंने खुद भी देखा है। सीओ को तत्काल प्रभाव से रेप केस समेत दलित उत्पीड़न की सभी घटनाओं से अलग करने, किसी निष्पक्ष अधिकारी को जांच सौंपने की मांग की है।