लोकसभा चुनाव 2019 से पहले टिहरी लोकसभा से कांग्रेस से टिकट के लिए चक्कर काट रहे किशोर उपाध्याय वनाधिकार के नाम पर अपना व्यक्तिगत एजेंडा चला रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद से किशोर उपाध्याय ने विपक्ष के मुद्दों से अपने आप को अलग कर वनाधिकार वाला एजेंडा चलाकर अपने को लाइम लाइट में रखने का लगातार काम किया है। किशोर उपाध्याय इन दिनों सुबह से शाम तक उत्तराखंड के वनाधिकार पर सोशल मीडिया से लेकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व प्रिंट मीडिया में व्यस्त हैं।
दो बार विधायक, एक बार राज्य मंत्री और उत्तराखंड में कांग्रेस के अध्यक्ष बनने के बाद सत्ता को घेरने के मुद्दे से हटकर अलग तरह का आंदोलन चलाना कई गंभीर सवाल खड़े करता है कि क्या अब उन्हें सरकार द्वारा की जा रही अनियमितताएं नजर नहीं आ रही हैं।
विगत 9 जुलाई से उत्तराखंड में खानपुर के विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन द्वारा उत्तराखंड के लिए कहे गए अपशब्दों पर तीखी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। चारों ओर चैंपियन के पुतले फूंके जा रहे हैं और उत्तराखंड के अस्तित्व पर सवाल खड़े होने लगे हैं कि क्या कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन जैसे लोग इस प्रदेश में बर्दाश्त करने लायक है या नहीं। इस संदर्भ में भाजपा के नेताओं के बयान भी सामने आए, किंतु उत्तराखंड के मूल अधिकारों वनाधिकारों की बात करने वाले किशोर उपाध्याय की जुबान चैंपियन के मामले में बंद है। किशोर उपाध्याय प्रदेशहित में वनाधिकार आंदोलन चलाने की बात करते हैं तो यह कैसे संभव हो सकता है कि उत्तराखंड राज्य को गंदी-गंदी गाली देने वाले चैंपियन के बारे में किशोर उपाध्याय बोलने से डर रहे हैं।
पर्वतजन ने किशोर उपाध्याय के इस मौन धारण पर सवाल पूछा तो किशोर उपाध्याय ने बात टालते हुए बताया कि उन्होंने ट्विटर पर उसकी आलोचना कर दी है। किशोर की इस किनाराकशी से स्पष्ट हो रहा है कि चैंपियन के प्रति वे सॉफ्ट कॉर्नर लेकर चल रहे हैं। जो व्यक्ति एक ओर उत्तराखंड के लोगों को उनका अधिकार दिलाने की बात करे और वही व्यक्ति उत्तराखंड को गाली देने वाले के साथ खड़ा हो जाए तो समझा जा सकता है कि इन्हें कांग्रेस के अध्यक्ष पद से क्यों हटाया गया होगा।