मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने एक सम्मेलन में यह ऐलान किया कि सरकार जल्दी ही बेनामी संपत्ति को जफ्त करने के लिए कठोर कानून लाएगी और उन जफ्त बेनामी संपत्तियों का उपयोग स्कूल अस्पताल आदि संचालित करने में किया जाएगा।
एक साल पहले जो कहा वो क्या हुआ
गौरतलब है कि इसी तरह का ऐलान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ठीक एक साल पहले 16 सितंबर 2018 को भी किया था तब मुख्यमंत्री ने कहा था कि सरकार का इरादा बिहार की तर्ज पर बेनामी संपत्तियों को कब्जे में लेकर उनका सामाजिक कार्यों के लिए इस्तेमाल करने का है।
एक साल पहले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बेनामी संपत्तियों के मामलों की जांच के निर्देश अधिकारियों को दिए थे और मुख्यमंत्री के निर्देश पर विजिलेंस समेत अन्य संबंधित एजेंसियां ऐसे लोगों की कुंडली बांचने में भी जुट गई थी बड़ा सवाल यह है कि एक साल बाद भी उन कुंडलियों का क्या हुआ और उस जांच का क्या हुआ ! अभी तक ना तो दोबारा से कुछ पूछा गया है और ना ही इसकी कोई रिपोर्ट सरकार को मिली है।
बिहार पैटर्न के अध्ययन से क्या रिजल्ट निकला इसका भी कुछ अता पता नहीं है।
अब फिर से सरकार ने बेनामी संपत्तियों को कब्जे में लेने का लोकप्रिय राग बजाना शुरू कर दिया है।
हरीश रावत ने उठाए थे सवाल
जब एक साल पहले त्रिवेंद्र रावत ने बेनामी संपत्तियों को जप्त करने की बात कही थी तब हरीश रावत ने अगले ही दिन 17 सितंबर 2018 को त्रिवेंद्र सिंह रावत से मांग की थी कि आए दिन अखबारों में बेनामी संपत्तियों की खबरें छप रही हैं लेकिन उन पर कोई जांच नहीं हो रही है।
इसके साथ ही कई बेनामी संपत्तियों की जांच अपने अंतिम चरण में थी उन पर भी काम आगे नहीं बढ़ा है। हरीश रावत ने एक साल पहले हरीश रावत ने दून को बेनामी संपत्तियों का हब बताते हुए कहा था कि अंगेलिया हाउसिंग सोसायटी जैसे कई इलाकों में बड़े स्तर पर बेनामी संपत्तियों की खरीद-फरोख्त हुई है।
एक साल पहले मुख्य विपक्षी पार्टी के नेता तथा पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत द्वारा गिनाई गई इन बेनामी संपत्तियों पर भी सरकार की जांच आगे नहीं बढ़ती है तो बेनामी संपत्ति की जांच कराना भी एक जुमला मात्र रह जाएगा ।
हरीश रावत पहले गा चुके हैं यह राग
गौरतलब है कि वर्ष 2016 में तख्तापलट से अपनी सरकार बचाने के बाद 13 मई 2016 को हरीश रावत ने भी बेनामी संपत्ति पर 2 साल की जेल की सजा और संबंधित संपत्ति का 25% हर्जाना सरकारी खजाने में जमा कराने का विधेयक का खाका तैयार कराया था। हरीश रावत ने इस विधेयक को जल्दी ही कैबिनेट में रखे जाने की बात कही थी तथा बेनामी संपत्ति की कैलकुलेशन से लेकर ट्रिब्यूनल में सुनवाई तक का पूरा रोड मैप तैयार कर दिया था।
साथ ही कैसे शिकंजा कसा जाएगा इस पर भी विस्तृत खाका अध्यादेश में शामिल कर लिया था।
उस समय हरीश रावत ने कहा था कि इसी बेनामी संपत्ति पर विधेयक लाने की तैयारी के कारण उनकी सरकार के विधायकों ने बगावत का बिगुल फूंका था त्रिवेंद्र रावत ने भी आज यही कहा कि वह धर्म युद्ध लड़ रहे हैं और इसमें अपना पराया कुछ नहीं देखा जाएगा सवाल यह है कि क्या सरकार में शामिल कोई विधायक या मंत्री भी बेनामी संपत्ति के नाम पर त्रिवेंद्र सिंह रावत के निशाने पर है या नहीं !
बहरहाल अभी तक का परिणाम तो यह है कि वर्ष 2016 के हरीश रावत से लेकर सितंबर 2018 और अब आज त्रिवेंद्र रावत ने अपनी ही बात दोहरा दी है लेकिन इस एक साल में इस पर हुई शून्य प्रगति यह आशंका पैदा कर रही है कि बेनामी संपत्ति का खुलासा भी कहीं एक जुमला बनकर न रह जाए।
हालांकि यह भी उल्लेखनीय है कि यदि आगामी विधानसभा सत्र में त्रिवेंद्र सिंह रावत वाकई बेनामी संपत्ति को जप्त करने वाला ठोस विधेयक पारित करा लेते हैं तो सरकार के लिए यह एक मील का पत्थर साबित होगा।
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