कई महीने पहले एक पार्टी कार्यकर्ता की शिकायत पर मी टू प्रकरण मे भारतीय जनता पार्टी के महामंत्री संजय कुमार को पद से हटाया जा चुका है, किंतु संजय कुमार की दोबारा सक्रियता से कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। संजय कुमार 13 जुलाई से लगातार सोशल मीडिया में सक्रिय हैं और रामलाल की विदाई से लेकर नए संगठन महामंत्री के स्वागत, हरेला और हिमा दास के स्वर्ण पदक जीतने तक पर वह लगातार बधाई देकर सक्रिय बने हैं।
भाजपा के केंद्रीय तथा प्रादेशिक स्तर के कुछ अधिकारियों पर संजय कुमार को बचाने के लिए प्रयास करने के आरोप लग रहे हैं।
इस मुद्दे पर पुलिस महानिदेशक लॉ एंड ऑर्डर अशोक कुमार का कहना है कि संजय कुमार पर लगी रेप की धारा हटा दी गई है, क्योंकि जांच के बाद यह साफ हो रहा है कि “संजय कुमार 10 मार्च को देहरादून में नहीं था। इसको साबित करने के लिए संजय कुमार ने कई साक्ष्य पुलिस को पेश किए हैं।”
अहम सवाल यह है कि पुलिस को यह किसने बताया कि 10 मार्च को ही पीड़िता के साथ रेप हुआ है ??
पर्वतजन यहां पर पीड़िता के बयान की छायाप्रति उपलब्ध करा रहा है।
इसमें प्रश्न है कि
“संजय कुमार ने तुम्हारे साथ शारीरिक संबंध सबसे पहले कब बनाए ?”
इसमें पीड़िता कहती है कि
“मुझे तारीख ठीक से याद नहीं है, यह मार्च का आखिरी सप्ताह था। आशीर्वाद एंक्लेव में संजय के घर में उसके बेडरूम में उसने मुझे कुछ नशीली चाय पिलाई। इसके बाद मुझे कुछ होश नहीं था। उसके बारे में संजय कुमार ने मुझे कहा था कि मैंने तुम्हारी वीडियो बना ली है, उसी वीडियो का भय दिखाकर उसने तीन बार और मेरा शारीरिक शोषण किया था।”
जांच का अहम सवाल
पुलिस पी गयी ( छायाप्रति)
अब अहम सवाल यह है कि जब पीड़िता ने अपने बयान में कहा है कि यह मार्च का आखिरी सप्ताह था तो फिर पुलिस 10 मार्च की तारीख कहां से और किसके इशारे पर जांच में शामिल कर रही है !!
10 मार्च को सेकंड सैटरडे था तथा मार्च 2018 महीने में कुल 5 सप्ताह आये थे। यदि पुलिस की मनसा निष्पक्ष जांच करने की होती तो मार्च के आखिरी सप्ताह में 26 से लेकर 31 तारीख तक 6 दिनों को अपनी जांच का हिस्सा बना सकती थी।
लेकिन दूसरे सप्ताह के शनिवार को अपनी जांच का हिस्सा बनाकर संजय कुमार को रेप पर क्लीन चिट देना पुलिस की जांच पर भी सवालिया निशान खड़े करता है।
पीड़िता का कहना है कि उसके साथ चार बार दुष्कर्म किया गया है, लेकिन उसने कहीं भी 10 मार्च को रेप होने का दावा नहीं किया है।
ऐसे में पुलिस अपने आप से 10 मार्च की कहानी कैसे गढ़ रही है !
पुलिस पर भी सवाल उठ रहे हैं कि एक बार रेप की धारा लगाने के बाद पुलिस को यह धारा हटाने की क्या जल्दबाजी है !
पुलिस अपनी जांच को कोर्ट के समक्ष भी रख सकती है ताकि कोर्ट ही इस पर निर्णय करें।
संजय कुमार ने हाल ही में सोशल मीडिया में बधाइयां देते हुए राज्य में पुनः अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। वहीं दूसरी ओर पीड़िता का कहना है कि उसको पुलिस प्रशासन से लेकर भाजपा तथा सरकार के अधिकारियों की तरफ से लगातार हतोत्साहित किया जा रहा है।
ऐसे में भाजपा का “बेटी बचाओ” अभियान कुछ और ही कह रहा है।
अब इस अभियान का नया मतलब यह निकाला जा रहा है कि बेटी तो बचाओ लेकिन किस से बचाओ !
जिन पर आरोप हैं वे खुलेआम घूम रहे हैं और सभी पीड़िता के बजाय आरोपित को बचाने में लगे हैं। क्या यही है भाजपा का बेटी बचाओ अभियान !
पर्वतजन अपने पाठकों से अनुरोध करता है कि पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए यदि आपको यह खबर सहायक लगती है तो इसे शेयर जरूर कीजिएगा