कृष्णा बिष्ट
उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे, विधायक राजकुमार ठुकराल, आदेश चौहान, हरभजन सिंह चीमा और पूर्व सांसद बलराज पासी ने सड़क जाम की तो उन पर दर्ज मुकदमा सरकार ने वापस ले लिया है, लेकिन आम जनता ने अपने अधिकारों के लिए गौलापार हल्द्वानी में रैली निकालकर सड़क जाम करने की स्थिति बनाई तो उस पर सरकार का मुकदमा जारी है।
भला एक राज्य में एक कानून होने के बावजूद सरकार अलग-अलग कार्यवाही कैसे कर सकती है !!
वर्ष 2012 में जसपुर के राजमार्ग को जाम करने पर उपरोक्त महानुभाव के खिलाफ जो मुकदमा दर्ज हुआ था उसमें तो यह महानुभाव कोर्ट में भी हाजिर नहीं हुए। और कोर्ट ने इनके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किए हुए थे।
लेकिन सरकार ने इनको कोर्ट में भेजने की व्यवस्था करने के बजाए जिला जज को पत्र भेजकर यह कह दिया कि यह केस जनहित में वापस लिए जा रहे हैं। अगर इनके केस वापस हो सकते हैं तो फिर फिर जनता ने क्या बिगाड़ा !
31 अगस्त को गौलापार किसानों ने शांतिपूर्ण रैली निकाली थी, लेकिन प्रशासन ने उनकी बात सुनने के बजाय उन पर मुकदमे दर्ज कर दिए।
आखिर यह कौन सा विधान है कि जिसमें एक ही अपराध के लिए दो अलग अलग व्यवहार किए जा रहे हैं !
यही नहीं इससे पहले पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी 17 अगस्त को नशे के विरोध में इसी रोड पर रैली निकाली थी, जिसमें सैकड़ों लोग शामिल हुए थे लेकिन उनके खिलाफ भी पुलिस ने कोई मुकदमा दर्ज नहीं किया।
इन सबके इतर एक चौंकाने वाली हकीकत यह भी है कि जिस सड़क को राज मार्ग बताकर सरकार ने मुकदमा दर्ज किया है, वह दरअसल राजमार्ग है ही नहीं। वर्ष 2014 में राज्य सरकार ने इस सड़क को लोक निर्माण विभाग को ट्रांसफर कर दिया था।
जब यह राजमार्ग रहा ही नहीं तो फिर ग्रामीणों- किसानों पर राजमार्ग बाधित करने का मुकदमा भला कैसे बन सकता है ! लेकिन क्या किया जाए समरथ को नहिं दोष गुसाईं
मंत्री जी पर तो दर्ज गंभीर मुकदमे भी वापस
यूं तो शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे पर दर्ज मुकदमे बेहद गंभीर थे लेकिन सरकार भी तो जीरो टोलरेंस की है तू हुआ यूं कि अरविंद पांडे पर 10 गंभीर किस्म के मुकदमे वापस लेने का प्रस्ताव आया था, लेकिन न्याय विभाग ने 6 मुकदमों पर अपनी सहमति देने से इनकार कर जीरो टोलरेंस की सरकार को भी झटका दे दिया।
अब सिर्फ चार मुकदमे वापस लिए जा रहे हैं। इनमें से भी एक मुकदमा वर्ष 2015 में तहसीलदार के साथ मारपीट का है। यह मुकदमा वापस ले लिया गया है।
हालांकि इन मुकदमों पर न्यायालय वापस लेने या न लेने पर फाइनल निर्णय करेगा। देखना यह है कि न्यायालय का क्या रुख रहता है। न्यायालय को भी इस पर सोचना ही होगा, क्योंकि यदि मुकदमा वापसी से इंकार कर दिया तो कहीं जीरो टोलरेंस की सरकार मुकदमे वापसी पर भी अध्यादेश ना ले आए।