अक्सर सुनने में आता है कि पत्रकारों ने उस बड़ी या जरूरी खबर को जानबूझकर नहीं छापा है। या फिर वो फलां बड़ी खबर मैनेज कर ली गई है। या खबर से मुख्य हिस्सा ही गायब है।
लेकिन अब पत्रकार पुतला जलाने जैसी हल्की और छोटी खबर लिखने में भी डर रहे हैं। या फिर किसी लालच के कारण पुतला जलाने जैसी सामान्य खबर को भी नहीं लिख पा रहे हैं।
बीते रविवार आठ सितंबर को डोईवाला के व्यस्तम चौराहे डोईवाला में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का पुतला जलाया गया। ये पुतला एसडीएम डिग्री कॉलेज में निर्दलीय प्रत्याशियों और उनके सर्मथकों द्वारा जलाया गया था। निर्दलीय प्रत्याशियों और उनके सर्मथकों का आरोप है कि मुख्यमंत्री के दबाव में पुलिस और कॉलेज प्रशासन कार्य कर रहे हैं। इसलिए वो चुनाव का बहिष्कार कर रहे हैं।
निर्दलीय प्रत्याशियों और उनके सर्मथकों ने डोईवाला के भीड़-भाड़ वाले इलाके में मुख्यमंत्री के खिलाफ नारेबाजी करते हुए पुतला फूंका। पुतला फूंकने वालों ने पुतला फूंकने का वीडियो, फोटो और प्रेसनोट भी डोईवाला के पत्रकारों को भेजा।
लेकिन एक-आध पत्रकार को छोड़कर किसी ने भी मुख्यमंत्री के पुतला जलाने वाली खबर और फोटो छापने की हिम्मत नहीं दिखाई। सीएम का पुतला फूंकने वालों ने प्रेसवार्ता की भी बात कहीं जिसमें लगभग सभी पत्रकारों ने जाने से मना कर दिया।
शायद ही कभी पत्रकारिता के इतने बुरे दिन आए हों कि पुतला जलाने की खबर लिखने में पत्रकारों को सरकार का ड़र सता रहा हैं। डोईवाला की पत्रकारिता की इतनी बुरी दशा हो चुकी है कि जिसकी सरकार होती है पत्रकार खुद ही उसके सामने सरेंडर कर देते हैं।
कुछ पत्रकारों ने तो अवैध खनन के खिलाफ खबरें न लिखने की जैसे कसम खा रखी है।
कई पत्रकार तो पत्रकारिता कम और राजनीति में अधिक रूचि रखते हैं। ऐसी भी चर्चाएं हैं कि कुछ पत्रकार सरकार से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से खूब लाभ उठा रहे हैं। उबाऊ और घटिया खबरों के कारण ही घंटों में पढ़ा जाने वाला अखबार अब लोग कुछ मिनट में ही पढ़कर रद्दी वाले टोकरी में कबाड़ी के लिए रख देते हैं।