ब्यूरो। 14 साल की लड़की को जबरन घर में रखकर उत्पीड़न करने के मामले में मुकदमा झेल रही सीनियर सिविल जज दीपाली शर्मा के खिलाफ उत्तराखण्ड सरकार ने आपराधिक मामला वापस लेने का निर्णय लिया है।
यह रहा भ्रष्टाचार की पैरोकार सरकार का “जनहित”मे आदेश
इस संबंध में सरकार की ओर से अभियोजन पक्ष ने सीजेएम कोर्ट में आवेदन दाखिल किया है। केस वापस लेने को लेकर इसी सप्ताह सुनवाई होनी है। पिछले साल नैनीताल के पदमपुर गांव से 14 साल की लडकी को पिछले साल जनवरी में रोशनाबाद हरिद्वार स्थित जजेज कॉलोनी में जज दीपाली शर्मा के घर से पुलिस ने लडकी को आजाद कराया था।
तत्तकालीन एसएसपी कृष्ण कुमार वीके की अगुवाई में पुलिस ने लड़की को बरामद किया और लड़की का मेडिकल भी कराया गया था, जिसमें करीब बीस घाव सामने आए थे इनमें से कुछ पुरानी जलने के जख्म भी थे।
इसके बाद एएसपी रचिता जुयाल की ओर से सिडकुल थाने में मुकदमा भी दर्ज कराया गया। जज के खिलाफ आईपीसी की धारा 370 1, 4, 7 और 323 व 75 जुविनाइल जस्टिस एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था।
जबकि इसकी जांच तब के सीओ मनोज कत्याल ने की थी। इस मामले में पुलिस ने चार्जशीट भी दाखिल कर दी थी। लेकिन सरकार ने तमाम बातों को दरकिनार करते हुए जज दीपाली शर्मा के खिलाफ केस वापस लेने का फैसला किया है।
यही नहीं ये फैसला सरकार ने जनहित में लेने की बात कही है। सूत्रों के मुताबिक सितम्बर में सरकार ने हरिद्वार में अभियोजन ऑफिसर से इस बाबत पूरी रिपोर्ट तलब की थी।
अभियोजन पक्ष की ओर से सरकार को केस के बारे में तमाम जानकारी उपलब्ध कराई गई थी। जिसमें हाईकोर्ट के आदेश पर पुलिस द्वारा लड़की की बरामदगी और उसकी मेडिकल रिपोर्ट का जिक्र भी इस रिपोर्ट में किया गया था।
बावजूद इसके सरकार ने अभियोजन ऑफिसर की रिपोर्ट को दरकिनार करते हुए जज दीपाली शर्मा के खिलाफ कोर्ट में केस वापस लेने का फैसला किया है। एक सप्ताह पहले हरिद्वार की सीजेएम कोर्ट में केस वापस लेने के बाबत सरकार का पत्र भी अभियोजन पक्ष की ओर से दाखिल कर दिया गया है। बताया जा रहा है कि इसी सप्ताह इस मामले में सुनवाई भी होनी है और इस केस को वापस लेने पर फैसला लिया जा सकता है।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि सरकार जिस फैसले को जनहित में लेना बता रही है, उससे एक तरफ जहां 14 साल की मासूम लड़की इंसाफ से महरूम रह जाएगी, वहीं आमजन में भी सरकार तथा कोर्ट के प्रति विश्वास में कमी आएगी।