अल्पसंख्यक स्कूलों में शिक्षा विभाग के अधिकारी प्रबंध संचालक अथवा एडमिनिस्ट्रेटर की भी नियुक्ति कर रहे हैं जबकि कानूनन ना तो अल्पसंख्यक स्कूलों में एडमिनिस्ट्रेटर बिठाए जा सकते हैं और ना ही 12 से अधिक सदस्यों के रहते इन स्कूलों की प्रबंध समिति में नए सदस्यों को नामित किया जा सकता है।

देहरादून में गुरु नानक बॉयज पब्लिक इंटर कॉलेज चुक्कूवाला में आजकल ऐसा ही चल रहा है। स्कूल की प्रबंध समिति में नए सदस्यों को नामित कराए जाने की प्रक्रिया चल रही है और इसके लिए बाकायदा अखबारों में विज्ञापन दिए गए।

इसके पीछे यही कारण बताया जा रहा है कि कुछ अधिकारी स्कूलों में अपने मनमाफिक प्रबंध समिति का गठन करके अपने चहेतों की नियुक्तियां करना चाहते हैं।

ऐसी ही तिकडम उत्तराखंड के अन्य अल्पसंख्यक स्कूलों में भी की जाती रही है लेकिन उन्हें उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेशों के बाद अपने कदम पीछे खींचने पड़े हैं, किंतु अधिकारी और अन्य स्वार्थी तत्व हाईकोर्ट के आदेशों के बावजूद अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं।
रुद्रपुर के गुरु नानक गर्ल्स इंटर कॉलेज में भी पहले प्रबंध संचालक यानी एडमिनिस्ट्रेटर बिठा दिया गया था लेकिन स्कूल के पदाधिकारी जब इस कदम के खिलाफ हाईकोर्ट की शरण में गए तो हाईकोर्ट ने अपने आदेश ने साफ कह दिया कि उत्तरांचल स्कूल एजुकेशन एक्ट 2006 के अनुसार अल्पसंख्यक स्कूलों में प्रशासक की नियुक्ति नहीं की जा सकती है तथा उन्हें तुरंत चुनाव कराने के आदेश दिए थे।
टीएमये पाई फाउंडेशन के एक केस में सुप्रीम कोर्ट की 11 जजों की बेंच ने वर्ष 2003 में अल्पसंख्यक स्कूलों के पक्ष में साफ-साफ व्यवस्था दी है कि अल्पसंख्यक स्कूलों के अध्यापकों को अपने सदस्य चुनने की पूरी आजादी होगी, इसमें सरकारी हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
जबकि मुख्य शिक्षा अधिकारी देहरादून में 16 तारीख को अखबारों में विज्ञापन निकालकर गुरु नानक बॉयज इंटर कॉलेज चुक्कूवाला के प्रबंध संचालक को निर्देशित किया है कि वह स्कूल की प्रबंध समिति की साधारण सभा के सदस्यों के लिए सदस्यता आवेदन आमंत्रित करें।
इस स्कूल की प्रबंध समिति में पहले से ही 56 सदस्य हैं किंतु नई सदस्यता की प्रक्रिया से यह भय उत्पन्न हो गया है कि इससे मैनेजमेंट को कब्जाया जा रहा है जबकि कानूनन स्कूल में एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त नही किया जा सकता है और नए सदस्यों को शामिल करने का अधिकारियों को कोई अधिकार नही है। सवाल उठता है कि जब प्रबंध संचालक की नियुक्ति गलत है तो जरूरत ना होते हुए भी किस के निर्देशों पर मुख्य शिक्षा अधिकारी तथा मंडलीय शिक्षा निदेशालय पौड़ी अल्पसंख्यक स्कूलों में ऐसा गैरकानूनी हस्तक्षेप करना चाहते हैं।
आखिर इसकी जरूरत क्या है। सत्ता के साथ अपने बल पर यह अधिकारी अपने रिश्तेदारों को इन स्कूलों में नियुक्त करने की मंशा में सफल हो सकते हैं।
पहले भी इसी स्कूल में प्रबंध संचालक द्वारा बनाए गए थे जो उत्तराखंड हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिए थे और कहा था कि प्रबंध संचालक द्वारा सदस्यों को नामित करना गैरकानूनी है अहम सवाल यह है कि आखिर वे कौन से लोग हैं जिनके इशारे पर अल्पसंख्यक स्कूलों की प्रबंध समितियों में कब्जा कराया जा रहा है और अपने चहेतों की नियुक्ति करने की मनसा के पीछे आखिर कौन लोग हैं !


