मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर घोषणा की थी कि 1 जनवरी 2020 से पीआरडी और उपनल के कर्मचारियों को ₹500 मानदेय दिया जाएगा।
लेकिन ₹500 प्रतिदिन देना तो दूर की बात है, यहां विभिन्न विभागों में काम कर रहे उपनल और पीआरडी के कर्मचारियों को विगत चार चार महीने से वेतन तक नसीब नहीं हुआ है।
कुमाऊं के सुशीला तिवारी अस्पताल के 718 कर्मचारियों को विगत 3 माह से वेतन नहीं मिला है। उनके घरों का किराया और स्कूटी आदि की किस्तें भी नहीं जा पा रही हैं, किंतु मुफलिसी की हालत में गुजर-बसर कर रहे अपने राज्य के इन कर्मचारियों की सुध लेने को सरकार तैयार नहीं है। डॉ सीपी भैंसोड़ा का कहना है कि फंड ना होने के कारण वह वेतन नहीं दे पा रहे हैं।
एक तरफ मंत्रियों और विधायकों के वेतन भत्ते लगातार बढ़ते जा रहे हैं, सचिवालय में बैठे अफसरों और अन्य सरकारी अधिकारियों का लाखों रुपए का वेतन 1 दिन भी लेट नहीं होता। वहीं वेतन न मिलने के कारण इन कर्मचारियों के आंगन में न तो ठीक से होली का रंग बरस पाता है। और ना ही दिवाली की रोशनी ठीक से जगमग आ पाती है।
उपनल और पीआरडी के 10, 12 हजार के वेतन पर काम कर रहे इन कर्मचारियों के साथ सिस्टम की संवेदनहीनता अब हर हदें पार कर रही है।
कोई भी विभाग जब चाहे तब इन कर्मचारियों को निकाल बाहर करता है। भले ही वह पिछले अट्ठारह-उन्नीस साल से अपनी सेवाएं विभाग में देकर बूढ़ा हो चला हो।
उस कर्मचारी का परिवार कैसे गुजर बसर करेगा? अथवा उसे फिर कौन नौकरी देगा? इसको लेकर उत्तराखंड की कल्याणकारी सरकार जरा भी सोचने को तैयार नहीं है।
यहां तक कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से भी समान कार्य समान वेतन के आदेश किए जा चुके हैं लेकिन सरकार न तो इन कर्मचारियों को सम्मानजनक वेतन देने को तैयार है और न ही अपनी की घोषणा पर समय से अमल करने के प्रति जरा भी गंभीर है। हम अपनी युवा पीढ़ी के साथ यह खिलवाड़ करके एक असफल राज्य होने की ढलान की ओर लुढ़कते जा रहे हैं।