इंटेलिजेंस ब्यूरो ( आईबी ) के दिल्ली कार्यालय ने उत्तराखंड के अपने अधिकारियों से सीएम त्रिवेंद्र रावत द्वारा वर्ष 2007 मे बेची गयी जमीन की डिटेल मांगी है। केंद्रीय अधिकारियों द्वारा खड़काए जाने के बाद उत्तराखंड के आईबी अधिकारी तुरंत हरकत में आए और उन उस स्रोत से भी दस्तावेज हासिल कर लिए, जिनसे पर्वतजन ने हासिल किए थे।

उत्तराखंड स्थित इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधिकारियों ने इस संबंध लगभग एक घंटे आपस मे विचार विमर्श किया। गौरतलब है कि इंटेलिजेंस ब्यूरो का भारत सरकार के स्तर पर एक पॉलिटिकल विंग होता है जो राजनीतिक व्यक्तियों के मामलों को देखता है।

आईबी इस मामले की जांच दो पहलू से भी कर रही है। पहला पहलू राज्य सरकार की प्रशासनिक अक्षमता को लेकर है और दूसरा पहलू राजनीतिक अयोग्यता का। आजकल इंटेलीजेंस ब्यूरो का पूरा अमला इस काम पर लग गया है।

भाजपा हाईकमान इस बात को लेकर मुख्यमंत्री से नाराज है कि उत्तराखंड जैसा छोटा सा स्टेशन भी मुख्यमंत्री नहीं संभाल पा रहे हैं। दिल्ली हार के बाद उत्तराखंड की निर्मम समीक्षा भी शुरू हो गई है।
इंटेलिजेंस ब्यूरो के मुखिया केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह स्वयं हैं। इंटेलिजेंस ब्यूरो सीधे अमित शाह को रिपोर्ट करती है। इसलिए आईबी की सक्रियता से माना जा रहा है कि अमित साह की भी सीधी नजर इस मामले पर टिक गई है।
अब इंटेलिजेंस ब्यूरो ने देहरादून में स्थित इस जमीन के दस्तावेज अपने स्तर पर भी खंगालने शुरू कर दिए हैं। तथा यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि आखिर क्या कारण है कि मुंबई निवासी व्यक्ति से पैसे तो ले लिए गए लेकिन उसको जमीन का कब्जा नहीं दिया गया था। इंटेलिजेंस ब्यूरो की नजर इस एंगल पर भी है कि इस जमीन की खरीद बिक्री की घोषणा मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने चुनावी घोषणा पत्रों में की है या नहीं तथा अपने वार्षिक इनकम टैक्स संबंधी दस्तावेजों में भी इसका खुलासा किया है या नहीं?
आने वाले समय में मेहूंवाला माफी में इस जमीन से जुड़े प्रकरण में कुछ नया चौंकाने वाला खुलासा भी हो सकता है।