जीवन पंत
उत्तराखंड की लाटी सरकार व नुमाइंदों के लाटेपने के कारण राज्य सरकार व उत्तराखंड की साख को ठेस पहुंच रही हैं लेकिन सरकार हैं कि अपने लाटेपने से बाज ही नहीं आ रही हैं।
ताजा वाकया सरकार द्वारा प्रवासी नागरिकों को लाने के लिए एक वेबसाइट को लांच करने के सम्बन्ध में हैं। केंद्र सरकार के स्पष्ट आदेश हैं कि कोई भी सरकारी वेबसाइट अगर बनेगी तो केवल और केवल .gov.in अथवा .nic.in पर ही बनेगी व साथ ही साथ डेटा की सुरक्षा के लिए सभी सर्वर भारत में ही होने चाहिए व लांच करने पर उसे SSL सर्टिफिकेट के साथ लांच करना चाहिए ताकि वेबसाइट की विश्वसनीय व डेटा की सुरक्षा हो सके।
प्राइवेट से सेटिंग करनी थी तो एनआईसी जैसा सफेद हाथी क्यों
उत्तराखंड राज्य सरकार करोड़ों रूपये NIC पर खर्च कर रही हैं व हर विभाग में NIC के अनगिनत लोग लगे हुए हैं ताकि सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी से सम्बंधित कार्यो को निपुणता के साथ किया जा सके। लेकिन इतने अनुभवी लोगों के होने के बावजूद राज्य की लाटी सरकार ने एक निजी कंपनी को प्रवासी उत्तराखंडी लोगों को लाने के लिए एक वेबसाइट बनाने का ठेका दे दिया और यह बिना मिलीभगत के संभव ही नहीं हैं।
कल ही साइट का रजिस्ट्रेशन, कल ही सब चालू माल
सुबह सुबह लाट साहब का एक सन्देश ट्विटर पर आता है कि जो प्रवासी उत्तराखंडी प्रदेश में वापस आना चाहते हैं तो वो http://dsclservices.in/uttarakhand-migrant-registration.php लिंक पर जाकर आवेदन कर सकते हैं। यह सन्देश जल्द ही वायरल हो गया और लोग इसपर हिट करने लगे लेकिन साइट खुल ही नहीं रही थी तो इसपर बयान आया कि लोड ज्यादा होने के कारण यह वेबसाइट धीरे धीरे खुल रही हैं। तब एक हमारे लाटे को भी समझ आ गया होगा तो उनके कारिंदो ने उन्हें एक नया पता दिया जो महाराज जी ने सुबह 10:30 मिनट पर ट्विटर पर अवतरित हुआ जो कि यह था https://dsclservices.in/uttarakhand-migrant-registration.php.
वेबसाइट है कि खुलती नही
इतना सब कुछ होने के बाद भी वेबसाइट थी, जो खुल ही नहीं रही थी और सरकार के नुमाइंदे लाटे को समझा रहे थे कि ज्यादा लोड होने के कारण वेबसाइट खुल नहीं रही हैं और हमारा लाटा भी खुश कि लोग सरकार पर कितना विश्वास करते हैं और उत्तराखंड में वापिस आना चाहते है। लाटे को लगा कि हमारी वेबसाइट भी फ्लिपकार्ट व अमेजन की तरह ज्यादा लोड होने के कारण डाउन गयी हैं।
इसकी टोपी उसके सर
पर्वतजन ने शाम को जब इस मुद्दे को समझने की कोशिश की तो पाया कि जो वेबसाइट का पता लाटाधीश सुबह से बांचता फिर रहा है वो वेबसाइट तो मौजूद ही नहीं हैं क्योकि उसका असल लिंक तो http://dsclservices.org.in/uttarakhand-migrant-registration.php था। शाम को हमने इस विषय में NIC दिल्ली के उच्चाधिकारियों से बात की तो पता लगा कि देहरादून स्मार्ट सिटी वाले इस प्रोजेक्ट को देख रहे हैं व सभी कार्य उन्ही की देख रेख में हो रहे थे। हमने जब उन्हें सारी बाते बतायी तो उन्होंने प्रोजेक्ट वालो से बात की तो प्रोजेक्ट वालो ने https://dsclservices.in/uttarakhand-migrant-registration.php को http://dsclservices.org.in/uttarakhand-migrant-registration.php पर भेज दिया, जो कि कल ही रजिस्टर हुआ है। सरकार के इसी नौसिखियेपन पाने के कारण लोग डिजिटल धोखाधड़ी का शिकार होते हैं क्योकि सरकार को सिर्फ और सिर्फ .gov.in का ही प्रयोग करना चाहिए।
असुरक्षित है साइट। डाटा चोरी का खतरा
रात में जब हमने इस वेबसाइट को चेक किया तो अपना सर पकड़ लिया क्योकि https:// जो कि सुरक्षित माना जाता हैं उसे http:// पर भेजा जा रहा था जो कि असुरक्षित था। व इससे लोगो के डेटा चोरी होने का ख़तरा बढ़ गया था। अभी भी उत्तराखंड प्रवासियों के लिए बनी हुई वेबसाइट सुरक्षा की दृष्टि से सही नहीं हैं।
यह जो वेब लिंक की प्राइवेट वेबसाइट है, यह आधार कार्ड डाटा सेव कर रही है। जबकि प्राइवेट वेबसाइट आधार कार्ड डाटा सेव करने के लिए अधिकृत नहीं है। इसके लिए या तो इसको एनआईसी की परमिशन चाहिए और वह डाटा भी केवल आधार की ही डेटाबेस में सेव हो सकता है, यह किसी प्राइवेट वेबसाइट पर नहीं सेव हो सकता।
खामियों की भरमार, सुधारों सरकार
इसमे एक खामी यह है कि यह दो डॉक्यूमेंट अपलोड किए बिना ओके नहीं हो रही है आधार कार्ड अपलोड करने के बाद यदि किसी के पास पैन कार्ड नहीं है तो फिर वह इस साइट पर अपना पंजीकरण नहीं करा सकता। भला एक प्रवासी के पास कितने डॉक्यूमेंट हो सकते हैं।
इसमें दूसरी खामी यह है कि आजकल साइबर कैफे बंद है और कितने लोगों के पास ऐसे मोबाइल होंगे जिसमें यह वेबसाइट खोल कर उसका डाटा भरा जा सके और हमारे प्रवासी कितने जानकार हैं होंगे कि वे इस वेबसाइट का सदुपयोग कर सकेंगे !
इसमें तीसरी महत्वपूर्ण खामी यह है कि यदि किसी नेटवर्क की खामी के चलते ओटीपी यानी वन टाइम पासवर्ड नहीं आता है तो इस पर रिसेंड ओटीपी का ऑप्शन नहीं है। पूरा का पूरा डाटा दोबारा से भरना पड़ता है, जो कि नेटवर्क स्लो होने के कारण अथवा साइट धीमी होने के कारण काफी समय लेने वाला है।
चौथी महत्वपूर्ण खामी का जिक्र तो पहले कर ही चुके हैं कि यह वेबसाइट फाइनली एक प्राइवेट वेबसाइट पर जाकर रीडायरेक्ट होती है जहां पर आधार कार्ड जैसे डाटा उपलब्ध कराए जाने से पर्सनल जानकारी चोरी होने की पूरी पूरी संभावना है। जबकि हर कोई जानता है कि आधार कार्ड का डाटा कितना महत्वपूर्ण होता है।
धन्य है यह सरकार और इसके ऐसे नुमाइंदे जो दो महीने से भी प्रवासियों की चिंता के प्रति संवेदनशीलता से काम करने के बजाय प्रवासियों के पंजीकरण में भी मलाई देख रहे हैं। धन्य है ऐसा जीरो टोलरेंस !
अब जब मनमर्जी कर ही दी है तो सरकार को चाहिए कि अपने तकनीकी विशेषज्ञों को लगाकर प्रवासियों का पर्सनल डाटा चोरी होने से रोकने की व्यवस्था की जाए और इस साइट को थोड़ा फास्ट किया जाए तो कुछ तो रिलीफ मिलेगा।