नवल खाली
इसे कहते हैं पाठकों का असर। उत्तर प्रदेश के भाजपा विधायक तथा बलात्कार के आरोप में सजा काट रहे पूर्व विधायक अमरमणि त्रिपाठी के विधायक बेटे अमनमणि त्रिपाठी के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो गया है।
बद्रीनाथ जाते हुए इन्होंने डीएम और एसडीएम से बदसलूकी कर दी थी। यही नहीं फोन पर पूर्व विधायक अमरमणि त्रिपाठी ने भी खूब बदसलूकी की। यह खबर पर्वतजन में प्रकाशित होने के बाद लौटते वक्त मुनिकीरेती में सभी लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर दिया तथा मुकदमा दर्ज करने के बाद जमानत पर रिहा कर दिया है।
टिहरी के मुनिकीरेती थाने में ही इनके खिलाफ मुकदमा दर्ज हो गया है।
अब तो पाठकों को उत्तराखंड को दिशा दिखाने की कमान अपने हाथ में ले ही लेनी चाहिए। एक बार पाठक किसी बात पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर कर दें तो फिर कोई भी शासन-प्रशासन उसकी अवहेलना करने की हिमाकत नहीं कर सकता।
पर्वतजन में खबर प्रकाशित होने के बाद पूरे राज्य में बवाल मच गया। खबर पढ़ने के बाद जागरूक पाठकों ने व्यापक प्रतिक्रिया दी। इस पर आला अधिकारी तत्काल हरकत में आ गए और पूर्व विधायक अमरमणि के बेटे अमनमणि त्रिपाठी के खिलाफ लॉक डाउन के उल्लंघन में पहले गिरफ्तार किया और फिर मुकदमा दर्ज कर दिया। फिलहाल उन्हे जमानत पर छोड़ दिया गया।
अहम सवाल यह है कि जब बद्रीनाथ के कपाट बंद हैं तो भला अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश ने विधायकों के लिए पास कैसे जारी करा दिया !
ऐसा लगता है कि उत्तराखंड में सरकार नाम की कोई चीज नहीं रह गई है।
एसडीएम देहरादून ने सिर्फ 8 लोगों के लिए पास जारी किया था, जबकि ओमप्रकाश के आदेश से 11 लोग 3 गाड़ियों में भरकर बद्रीनाथ केदारनाथ की यात्रा पर निकले।
आखिर ओम प्रकाश को यह अधिकार किसने दे दिया ! हैरत की बात यह है कि रुद्रप्रयाग चमोली और पौड़ी जैसे शहरों को क्रॉस करने के बाद यह लोग बद्रीनाथ केदारनाथ जा रहे थे।
इन को किसी ने क्वॉरेंटाइन करने के लिए नहीं कहा।इनकी किसी ने चेकिंग नहीं की। इनकी किसी ने थर्मल स्कैनिंग करने की जरूरत नहीं समझी।
पर्वतजन इसीलिए ओम प्रकाश और त्रिवेंद्र सिंह रावत के ऐसे कारनामों पर सवाल उठाता रहा है।
दरअसल यहां पर सरकार नाम की कोई चीज नहीं बची है। उत्तराखंड में ऐसा प्रतीत होता है कि यहां सरकार नहीं बल्कि एक गैंग चलाई जा रही है। और उत्तराखंड का शासन-प्रशासन त्रिवेंद्र सिंह रावत के हाथ से निकल कर ओमप्रकाश के हाथों में आ गया है।
यदि यह लोग एक जिगरवाले एसडीएम से नहीं उलझते तो शायद बद्रीनाथ केदारनाथ घूमकर कर भी आ जाते।
आखिर इन लोगों को मुख्य सचिव ने पास कैसे जारी करने का आदेश दिया !
यह अपने आप में हैरतअंगेज है, लेकिन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत इस पर कोई एक्शन लेने की हिम्मत दिखा पाएंगे ऐसा आज तक तो नहीं हुआ।