आज 18 मई दिन सोमवार 2020 को श्रम आयुक्त के कार्यालय पर पूर्व विधायक नारायण पाल (स्वयं ) धरना पर बैठे हैं। उन्होंने जानकारी देते हुए कहा। लॉक डाउन के समय में सिडकुल की तमाम फैक्ट्रियों ने मजदूरों को पैसा नहीं दिया है। बल्कि श्रम नीति कहती है कि श्रमिकों को उनका उचित मेहताना हर हालत में मजदूरों को दिया जाय, मगर सरकार श्रम कानूनों पर बदलाव कर मजदूरों कार्य अवधि घंटे आठ से बारह घंटा कर दिया है जो मजदूरों के साथ न्याय संगत नही है।
अनशन में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल, नैनीताल जिलाध्यक्ष सतीश नैनवाल ,शहर अध्यक्ष राहुल छिमवाल पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष हेमंत बगडवाल,उधम सिंह नगर अध्यक्ष जितेंद्र शर्मा ,यूथ अध्यक्ष सुमित्तर भुल्लर तथा तमाम जिलों के पदाधिकारी नारायण पाल के साथ अनशन मे हैं।
नारायण पाल जी ने कहा श्रम कानून के इस शोषणकारी बदलाव के लिए हाई कोर्ट तक जा सकते हैं।
उपनल ने किया श्रम कानून मे बदलाव का विरोध
उत्तराखंड उपनल संविदा कर्मचारी संगठन के प्रदेश पदाधिकारियों तथा कर्मचारियों ने श्रम कानूनों में बदलाव का पुरजोर विरोध किया है उन्होंने कारखानों में 8 घंटे के स्थान पर 12 घंटे काम करने के नियम को संविधान के विरुद्ध बताया उपनल संविदा कर्मचारी संघ द्वारा बुधवार को सांकेतिक धरना देने का एलान किया है और आने वाले दिनों में अन्य संगठनों के साथ मिलकर विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया है।
उपनल के प्रदेश उपाध्यक्ष पूरन भट्ट ने बताया कि राज्य सरकार मनमाने तरीके से कोरोना संक्रमण की आड़ में श्रम कानूनों में बदलाव कर रही हैं और अगले 3 सालों तक श्रम कानूनों को स्थगित करने के लिए कैबिनेट में प्रस्ताव लाई है जिसका संगठन पुरजोर विरोध करता है।
प्रदेश महामंत्री ने कहा कि सरकार का पूंजीपतियों व उद्योगपतियों एवं ठेकेदारों की आड़ में श्रम कानूनों को बदलने का षड्यंत्र सरकारों की श्रमिक विरोधी और पूंजीपतियों के प्रति अंधसमर्थक मानसिकता का प्रदर्शन है यह मानसिकता श्रमिकों को मनुष्य के तौर पर नहीं बल्कि मुनाफा कमाने के औजार की तरफ देखती है विडंबना यह है कि श्रमिकों के अधिकारों के खात्में को श्रम सुधार कहा जा रहा है जो श्रमिकों के मौलिक तथा जीवन जीने के अधिकार का हनन है जिसका संगठन पुरजोर विरोध करता है ।
प्रदेश अध्यक्ष रमेश शर्मा ने कहा कि उत्तराखंड उपनल संविदा कर्मचारी संगठन मांग करता है कि कार्यस्थलों पर काम के घंटे आठ से बढ़ा कर बारह किए जाने का फैसला कामगार वर्ग के शोषण को तीव्र करने वाला कदम है।