पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज के कोरोनावायरस पॉजिटिव पाए जाने के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत क्वॉरेंटाइन में चले गए हैं।
मुख्यमंत्री के साथ ही मंत्रिमंडल बैठक में उपस्थित हुए अन्य मंत्री और अधिकारी भी क्वॉरेंटाइन हो रहे हैं।
सिर्फ मंत्रिमंडल की बैठक में शामिल ना होने वाले यशपाल आर्य और अरविंद पांडे क्वॉरेंटाइन नहीं होंगे।
भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष देवेंद्र भसीन ने पर्वतजन से फोन पर इसकी पुष्टि की है। डॉक्टर देवेंद्र भसीन ने एक ट्वीट के माध्यम से भी इस बात को सार्वजनिक किया है।
पर्वतजन ने कल शाम इस पर उठ रहे सवालों को लेकर खबर प्रकाशित की थी। इस खबर पर अभी तक 127 शेयर और 109 कमेंट हैं। यह पर्वतजन के पाठकों के शेयर और कमेंट करने का ही परिणाम है कि इस पर सुबह होते-होते संज्ञान ले लिया गया।
गौरतलब है कि कल स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी ने यह तर्क देते हुए क्वॉरेंटाइन को गैरजरूरी बताया था कि सतपाल महाराज कैबिनेट में शामिल अन्य व्यक्तियों के क्लोज कांटेक्ट में नहीं थे, इसलिए उनका क्वॉरेंटाइन होना जरूरी नहीं है। किंतु मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने रविवार को ही खुद को क्वॉरेंटाइन कर दिया था और सचिवालय संघ के अध्यक्ष दीपक जोशी ने भी साफ कह दिया था कि अधिकारी भी सेल्फ क्वॉरेंटाइन में चले जाएंगे।
अहम सवाल यह भी है कि सतपाल महाराज ने 23 तारीख को संस्कृति विभाग के कलाकारों की मीटिंग ली थी तथा 26 तारीख को पर्यटन विकास परिषद में भी मीटिंग ली थी किंतु अभी तक इस ओर किसी का भी ध्यान नहीं है और ना ही किसी ने इसका संज्ञान लिया है।
ऐसा प्रतीत होता है कि सतपाल महाराज के ऊंचे कद और पद के चलते किसी भी अदने ऑफिसर ने अभी तक सतपाल महाराज से उनकी ट्रेवल हिस्ट्री जानने की हिमाकत नहीं की है। यही कारण है कि केस पॉजिटिव आने के बाद अन्य लोगों के सैंपल लेने, उन्हें क्वॉरेंटाइन करने, उन्हें भर्ती करने और अन्य एहतियात बरतने में काफी लापरवाही भरी देरी की गई है।
सतपाल महाराज की पत्नी अमृता रावत अपने बेटे सुयश रावत को लेकर पौड़ी गढ़वाल के चौबट्टाखाल क्षेत्र में 15 मई को मौजूद थी और इस दौरान उन्होंने ग्रामीणों को राहत सामग्री बांटी तथा भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ बैठक भी की थी। वहां के स्थानीय प्रशासन ने अभी तक अमृता रावत के कोरोनावायरस के 4 दिन बाद भी कोई तत्परता नहीं दिखाई है।
सरकार पहले ही इस मामले में कार्यवाही करने के लिए बहुत लेट कर चुकी है। कहीं ऐसा न हो कि खामियाजा विकराल और अप्रिय स्थिति के रूप में सामने आए।