जगदंबा कोठारी
राज्य स्थापना के बाद से ही पर्वतजन निरंतर बेबाकी से जन सरोकारों के मुद्दे उठाता रहा है। तब चाहे सरकार भाजपा की रही हो या कांग्रेस की। पर्वतजन निर्भिकता से सभी सरकारों की कारगुजारियों से जनता को वाकिफ कराता रहा है। इन 20 वर्षों में पर्वतजन ने कई बड़े खुलासे किए, जिन्होंने कि सत्ता परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इस दौरान कई मुख्यमंत्री आए और गए, लेकिन उन्होंने कभी मीडिया की आवाज को नहीं दबाया। तमाम मुख्यमंत्रियों के शासन में पत्रकारों का इतना उत्पीडऩ कभी नहीं हुआ, जितना कि वर्तमान त्रिवेंद्र सरकार के राज में हो रहा है। सिंगटाली प्रकरण के बाद पर्वतजन के खिलाफ मुनिकीरेती थाने में मुकदमा दर्ज किया गया और इसे तीन माह तक दबाकर रखा गया।
उधर बागेश्वर के युवक को भी पर्वतजन के खिलाफ मुकदमा लिखवाने का दबाव त्रिवेंद्र सरकार द्वारा बनाया गया, लेकिन पर्वतजन को समय रहते इसकी भनक लग गई।
जाहिर है कि सरकार की मंशा पर्वतजन पर गैंगस्टर एक्ट लगाकर जनता की आवाज को दबाना है। अब पिछले दरवाजे से असंवैधानिक नियुक्तियां दिलवाने के लिए पशुपालन विभाग पर दबाव बना रही राज्यमंत्री रेखा आर्य पर कार्रवाई करने के बजाय सरकार ने इसका खुलासा करने वाले पर्वतजन के संपादक शिव प्रसाद सेमवाल पर ही संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज कर दिया। अब उनकी जान को भी खतरा बना हुआ है।
बुधवार शाम पहाड़ टीवी को दिए गए एक एक्सक्लूसिव लाइव साक्षात्कार में शिव प्रसाद सेमवाल ने इस बात का खुलासा किया है कि उनके परिवार को डर है कि सरकार उनके साथ कुछ अनहोनी कर सकती है। जिस प्रकार से वह त्रिवेंद्र रावत सरकार के निशाने पर हैं, इससे तो उत्तराखंड के जनमानस में भी उनकी जान को लेकर भय बना हुआ है। क्योंकि सरकार पहले भी वरिष्ठ पत्रकार उमेश कुमार के साथ भी इस प्रकार का दुस्साहस कर चुकी है। अब श्री सेमवाल ने भी सरकार से अपनी जान को खतरा बताया है।
पर्वतजन के पाठकों की ओर से मिले भारी जन समर्थन के सहयोग से इन सब घटनाओं के बावजूद पर्वतजन बेबाकी से संविधान के चौथे स्तम्भ की भूमिका बखूबी निभाता आ रहा है।
त्रिवेंद्र सरकार की इस तानाशाही और मनमानी से उत्तराखंड की जनता में आक्रोश पनपना जायज है। पिछले तीन वर्षों से त्रिवेंद्र रावत सरकार राज में उत्तराखंड की जनता का अब सब्र का बांध टूटने लगा है। अब सोशल मीडिया पर भी लोग जमकर सरकार के खिलाफ अपना गुस्सा निकाल रहे हैं।
कुल मिलाकर पत्रकारों की आवाज को दबाकर सरकारों की कारगुजारियों को दबाया नहीं जा सकता है। बल्कि यूं कहें कि इससे आम जनता भी सरकार के नीति-नियंताओं की कार्यशैली को बारीकी से भांप लेती है, तो गलत नहीं है।
बहरहाल, अब देखना यह होगा कि सरकार को आईना दिखाने वाले पत्रकारों पर शिकंजा कसने की कार्यवाही पर टीएसआर सरकार विराम लगा पाती है या या नहीं!