उत्तराखंड सीएम त्रिवेंद्र रावत ने चुनिंदा पत्रकारों को दिए पांच-पांच लाख के विज्ञापन। जनता ने उठाये सवाल
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का एक और कारनामा सामने आया है। त्रिवेंद्र सिंह रावत के हस्ताक्षर से जारी ऐसे कई पत्र सामने आए हैं। जिसमें उन्होंने कुछ पत्रकारों को विभिन्न स्मारिकाओं में विज्ञापन छपवाने के नाम पर पांच ₹5लाख तक जारी किए हैं। त्रिवेंद्र सिंह रावत के हस्ताक्षरों से जारी विज्ञापन के आदेश उत्तराखंड में चर्चा का विषय बने हुए हैं। पत्रकार उमेश कुमार ने आरोप लगाया है कि, त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए तथा सरकार के कारनामों का खुलासा करने वाले पत्रकारों के खिलाफ खबर छपवाने के लिए पांच लाख रुपए के विज्ञापन बांटे हैं।
आज सुबह जब उन्होंने अपने खिलाफ खबर छापने वाले एक न्यूज़ पोर्टल की खबर के स्क्रीनशॉट के साथ ही मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा जारी ₹3 लाख के विज्ञापन आदेश के साथ पोस्ट किया तो फिर सोशल मीडिया पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ आक्रोश की बाढ़ आ गई। लोगों में इस बात को लेकर बड़ा गुस्सा है कि, जिन अखबारों का नाम तक उन्होंने नहीं सुना है भला उन्हें पांच-पांच लाख रुपये का विज्ञापन त्रिवेंद्र सिंह रावत ने किस आधार पर जारी किया है।
गौरतलब है कि, उत्तराखंड सरकार की विज्ञापन नीति में काफी नियम कायदे बनाए गए हैं लेकिन इस नीति में यह भी स्पष्ट है कि नीति को तोड़कर विज्ञापन देने का अधिकार सिर्फ मुख्यमंत्री को ही है। इसलिए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ही खुद अपने हस्ताक्षर से विज्ञापन आदेशों पर हस्ताक्षर किए हैं। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत काफी लंबे समय से भ्रष्टाचार को लेकर कुख्यात हो चले हैं और अब जनता के असल मुद्दों को उठाने वाले पत्रकारों के खिलाफ साजिश करने वाले मुख्य अभियुक्त भी बन चुके हैं।
गौरतलब है कि, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने यह विज्ञापन अपने अधिकारों का दुरुपयोग करके जारी किए हैं। मुख्यमंत्री द्वारा इस कदाचार के खिलाफ कुछ पत्रकार कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं। जाहिर है कि, यदि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ हाईकोर्ट ने कुछ डिसीजन दिया तो फिर त्रिवेंद्र सरकार की किरकिरी होनी तय है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस तरह से लगभग एक करोड़ रुपए तक के विज्ञापन बिल्कुल गुमनाम पत्रकारों को दिए हैं। जिनके प्रकाशनों का नाम तक जनता ने नहीं सुना है।
उत्तराखंड में विगत 3 सालों से विकास कार्य पटरी से उतरे हुए हैं। सरकार न सिर्फ कोरोनावायरस से जंग के मोर्चे पर पूरी तरह से नाकाम साबित हुई बल्कि प्रवासियों की समस्याओं से निपटने में भी पूरी तरह असफल साबित हुई। जनता में किरकिरी से बचने के लिए त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पहले मीडिया में बाकायदा पेड न्यूज़ प्रकाशित करवाई और उसके बाद जनता के मुद्दे उठाने वाले पत्रकारों के खिलाफ खबर छपवाने के एवज में कुछ पत्रकारों को पांच लाख रुपये में खरीद डाला। नियम कायदे का उल्लंघन करके केवल कुछ मीडिया हाउस को विज्ञापन दिए जाने से अन्य पत्रकारों में त्रिवेंद्र सिंह रावत के प्रति काफी आक्रोश है।
पत्रकारों का कहना है कि, त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उनके हिस्से का बजट मात्र सात या आठ पत्रकारों में बांट दिया है। त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस कारनामे पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। एक और सरकार खर्चों में कटौती करने के नाम पर नई भर्तियां न करने का ऐलान कर रही है और मुख्यमंत्री केयर फंड में दान देने के लिए जबरन वसूली कर रही है, वहीं दूसरी ओर इसी तरह का कारनामा अंजाम दे रही है। उमेश कुमार कहते हैं कि कोरोनाकाल में अपना धुंधला पड़ चुका चेहरा चमकाने को बाँट रहे हो ..इनमे अधिकतर वो पत्रकार है जो जनता की आवाज़ उठाने वालों के ख़िलाफ़ खबरें छापते पाए जाते है।
आप सिर्फ़ उन्हें वित्त-पोषित करते है जो आपकी जय जयकार करते है। ये इन काग़ज़ों से साफ़ हो गया है।
उत्तराखंड में लोग चुनिंदा पत्रकारों को लाखों रुपए के विज्ञापन दिए जाने को लेकर विभिन्न तरह के सवाल उठा रहे हैं। पवन रावत कहते है कि, “वाह रे मेरे जन जन के प्रिय मुख्यमंत्री जी ! सरकारी कर्मचारियों की एक दिन का वेतन काटो यह कह कर कि हमारे पास पैसे नहीं है, लोगों से दान मांगों, और अपने प्रचार के लिए कुछ थाली चटुओं को लाखों रुपये बांटो झूठी शान में।” पूरे प्रकरण को लेकर जहां लोग मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से बेहद खफा हैं, वही पत्रकारिता के गिरते स्तर को लेकर भी तमाम तरह की चिंताएं व्यक्त कर रहे हैं। यदि इस मुद्दे को लेकर कोई वाकई कोर्ट चला गया तो त्रिवेंद्र रावत की फजीहत होनी तय है।