नहीं थम रहा एम्स में नियुक्तियों में भाई-भतीजावाद
– संविधान के विपरीत लाखों रुपए मासिक सैलरी पर अनावश्यक नियुक्तियां पाए हैं निदेशक के रिश्तेदार
– आरक्षण को दरकिनार कर ग्रुप ‘ए’ के पदों को भी भरा गया है आउटसोर्सिंग में
– सहायक लेखा अधिकारी की भी पिछले दरवाजे से नियुक्ति
रिपोर्ट- जगदम्बा कोठारी
ऋषिकेश। पिछले वर्ष एम्स निदेशक और पदम श्री डॉ रविकांत ने एक बयान दिया था कि “उत्तराखंडियों के अंदर योग्यता नहीं है जिस कारण वह एम्स में नौकरी नहीं पा रहे हैं”। लेकिन इस बयान के पहले और बाद में भी एम्स में भाई भतीजे की नियुक्ति को लेकर कई बड़े खुलासे और विवाद हुए। तमाम विवादों और आरोपों के बीच बेशर्म बने एम्स प्रशासन के अब कई और बड़े कारनामे सामने आये है। बीते कुछ दिनों से आप खबरों के माध्यम से देख और पढ़ रहे हैं कि एम्स प्रशासन ने अनुसूचित जाति, ओबीसी चिकित्सकों के 36 रिक्त पड़े आरक्षित पदों पर आज तक कोई विज्ञप्ति नहीं निकाली है। हाल ही में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा सांसद कांता कदम और मेघालय से कांग्रेसी सांसद अगाथा के सगमा ने लोकसभा में एम्स ऋषिकेश के तहत 36 चिकित्सकों के आरक्षित पदों को लेकर सवाल किए। आखिर एम्स ने अनुसूचित जाति एवं ओबीसी के इन 36 पदों के लिए विज्ञप्ति आज तक क्यों नहीं निकाली। इसका जवाब हम आपको बताने जा रहे हैं। पर्वतजन को मिले एक्सक्लूसिव दस्तावेज में इस बात का बड़ा खुलासा हुआ है।
प्राप्त दस्तावेजों से हुआ खुलासा
सूत्रों के हवाले से पर्वतजन को मिले दस्तावेजों से इस बात का बड़ा खुलासा होता है कि एम्स प्रशासन ने इन सभी 36 आरक्षित जाति के चिकित्सकों के पदों में से 23 डॉक्टरों को आउटसोर्सिंग के माध्यम से भर रखा है। एम्स प्रशासन ने ‘आरक्षण’ को दरकिनार कर ग्रुप ‘ए’ के अंतर्गत आए इन सभी पदों पर आउटसोर्सिंग के माध्यम से चिकित्सकों की नियुक्ति की हुई है। जबकि सरकार द्वारा जारी दिशा निर्देश के अनुसार ग्रुप ‘ए’ के पदों को आउटसोर्सिंग के माध्यम से नहीं भरा जा सकता है।
इनमें प्रत्येक चिकित्सक का मासिक वेतन 1 लाख रुपए से ऊपर है और इतने बड़े वेतन भोगी पदों को एम्स प्रशासन द्वारा ठेकेदारी प्रथा से भरकर केंद्र सरकार को सालाना लाखों करोड़ों रुपए का चूना लगाया जा रहा है। इन 36 आरक्षित पदों में से वर्तमान में 23 अपने चहेते चिकित्सकों को आउटसोर्सिंग के माध्यम से अवैध नियुक्ति दी हुई है। इनमें प्रत्येक डॉक्टर का मासिक वेतन लगभग 1 लाख से ऊपर है। इनके साथ ही चार अन्य रेजिडेंट फैकल्टी के पदों को भी आउटसोर्सिंग से भरा गया था लेकिन वर्तमान में इन चिकित्सकों ने एम्स ऋषिकेश से नौकरी छोड़ दी है।
रिश्तेदार की अवैध नियुक्ति
डॉ रविकांत के निदेशक बनने के बाद से ही एम्स प्रशासन में भाई भतीजे की नियुक्तियों को लेकर कई आरोप लगते रहे हैं। इस बात का खुलासा ‘पर्वतजन’ ने 1 वर्ष पहले भी किया था। जिन पर एम्स प्रशासन ने आज तक कभी कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया ना ही कोई जांच कमेटी गठित की गई। अब ऐसा ही चौंकाने वाला एक और बड़ा मामला सामने आया है। मामला डॉ० केपीएस मलिक की नियुक्ति से लेकर जुड़ा है।डॉ० केपीएस मलिक की नियुक्ति नेत्र विभाग में अक्टूबर 2018 में बतौर विजिटिंग फैकल्टी के रूप में की गई थी। एम्स ऋषिकेश के नेत्र विभाग में चिकित्सकों के कुल 7 पद हैं।
इन सभी 7 पदों पर विशेषज्ञ चिकित्सकों की नियुक्ति पहले से ही हुई है, लेकिन अपने रिश्तेदार को नियुक्ति देने के लिए डॉक्टर केपीएस मलिक को अक्टूबर 2018 में नेत्र विभाग में बतौर ‘विजिटिंग फैकल्टी’ के तौर पर आठवें पद ‘विशेष’ पद के तौर पर बुलाया गया। जिनका की मासिक वेतन करीब डेढ़ लाख रुपए के करीब है और इतना बड़ा पद भी संविधान के विपरीत आउटसोर्सिंग के माध्यम से ही भरा गया है और इसमें बड़ी हैरत की यह बात है कि विजिटिंग फैकल्टी के तौर पर नियुक्ति पाने के लिए उस पदाधिकारी का अपने विभाग में कोई उत्कृष्ट कार्य किया हुआ होना चाहिए या वह उस विभाग में विशेषज्ञ हों, या फिर उसकी कुछ विशेष योग्यता होना अनिवार्य होता है।लेकिन डॉक्टर केपीएस मलिक कि कोई ऐसी योग्यता नहीं है कि उन्हें विजिटिंग फैकल्टी के तौर पर एम्स में रखा जाए। इनकी योग्यता यही है कि यह एम्स निदेशक के रिश्तेदार हैं।
बताया जा रहा है कि, डॉक्टर केपीएस मलिक एम्स निदेशक डॉ रविकांत के रिश्तेदार हैं और रिश्ते में इनके साले लगते हैं। विजिटिंग फैकल्टी के तौर पर आए विशेषज्ञ का अल्प कार्यकाल होता है, इनकी नियुक्ति साल 6 महीने से या साल भर से अधिक नहीं होती है लेकिन डॉ० केपीएस मलिक अक्टूबर 2018 से अपने पद पर बने हुए हैं। कोविड-19 महामारी के चलते हैं एक और तो एम्स प्रशासन ने पिछले दिनों सात डॉक्टरों को बजट ना होने के चलते बाहर कर दिया वहीं दूसरी ओर पिछले 2 सालों से फैकल्टी विजिटर के रूप में डॉ० केपीएस मलिक पर डेढ़ लाख रुपए प्रतिमाह बेफिजूल खर्च किया जा रहा है।
कनिष्ठ लेखाकाधिकारी पद पर भी पिछले दरवाजे से भर्ती
एम्स निदेशक डॉ० रविकांत के एक आदेश की प्रतिलिपि पर्वतजन के हाथ लगी है। एम्स निदेशक के इस आदेश में अनुराग वादवा नाम के एक युवक को सहायक लेखा अधिकारी के पद पर नियुक्ति प्रदान करने का आदेश जारी किया गया है। संविदा के तहत आने वाले सहायक लेखा अधिकारी के इस पद के लिए एम्स प्रशासन द्वारा कोई भी विज्ञप्ति नहीं निकाली गई। बल्कि पिछले दरवाजे से निदेशक के आदेश पर गुपचुप तरीके से सहायक लेखा अधिकारी लिए संविदा द्वारा इस पद को भर दिया गया।
ऐसे ही तमाम भ्रष्टाचार के आरोप एम्स प्रशासन पर लगते रहे हैं। पर्वतजन भी समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए समय-समय पर एम्स में हुए भ्रष्टाचार पर खुलासे करता रहा है। लेकिन इन पर आज तक ना कोई कार्यवाही हुई ना ही कोई जांच टीम गठित की गई।
सोए हुए सांसद और विधायक
उत्तराखंड के दुरस्त पहाड़ी इलाकों में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं देने के उद्देश्य से ऋषिकेश में एम्स की स्थापना की गई थी। लेकिन एम्स में फैले इस भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने के लिए उत्तराखंड के सांसद और विधायक सोए हुए हैं। कुछ दिन पूर्व उत्तर प्रदेश से महिला राज्यसभा सांसद कांता कदम और कांग्रेस से मेघालय की सांसद अगाथा के सगमा ने एम्स ऋषिकेश से जुड़े प्रश्नों को लोकसभा में उठाया था। देश के अन्य राज्यों की महिला सांसदों ने एम्स ऋषिकेश को लेकर सदन में सवाल किए लेकिन उत्तराखंड के सांसदों, विधायकों ने इस संवेदनशील विषय पर कभी लोकसभा,राज्यसभा या फिर विधानसभा में चर्चा तक नहीं करी। शायद इसका मुख्य कारण यह है कि इन जनप्रतिनिधियों के भी चहेते एम्स ऋषिकेश में नियुक्ति पाए हुए हैं।
एम्स निदेशक दिल्ली तलब
राज्यसभा के बाद लोकसभा में भी 36 अनुसूचित जाति और ओबीसी के चिकित्सकों के पद ना खुलने का मामला उछलने के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय ने एम्स निदेशक और पदम श्री डॉ० रविकांत को दिल्ली तलब किया है। संसद के दोनों सदनों में मामला उठने के बाद अब एम्स निदेशक डॉ० रविकांत की मुश्किलें बढ़ गई है। अब देखना है कि इस बार यह जांच कहां तक पहुंचती है और महाभ्रष्ट इस निदेशक पर कोई कार्यवाही होती है या फिर पहले की तरह मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा।
नगर निगम पार्षदों ने दी आंदोलन की चेतावनी
भाजपा से नगर निगम पार्षद राजेंद्र प्रेम सिंह बिष्ट ने एम्स प्रशासन के खिलाफ हल्ला बोल की चेतावनी दी है। उनका कहना है कि एम्स निदेशक की मानसिकता शुरू से ही पहाड़ विरोधी रही है। इन्होंने पहले भी बयान दिया था कि ‘उत्तराखंड के लोगों के अंदर योग्यता नहीं होती’। जबकि हकीकत यह है कि उत्तराखंड के योग्य लोगों को दरकिनार कर मुजफ्फरनगर आदि शहरों से अयोग्य व्यक्तियों को एम्स में गैरकानूनी तरीके से नियुक्तियां दी गई है।सभी पार्षद एकजुट होकर एम्स निदेशक के खिलाफ आंदोलन करने की रणनीति बना रहे हैं।