देहरादून।
उत्तराखंड में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन भी अनियमितता और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया है। मिशन के तहत स्वयं सहायता समूहों में योजना के तहत न तो काम ही दिया जा रहा है और न ही प्रोत्साहन। इस कारण अधिकांश स्वयं सहायता समूह इस मिशन से मिलने वाले लाभ से वंचित है।
मिशन के प्रोजेक्ट कुछ चुनिंदा महिलाओं को ही दिए जा रहे है। ’आम महिला को उसके जमा पैसों का ब्याज तक नहीं मिल रहा है। इस आशय की शिकायत हाल में मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत से जनता दरबार में की गयी। मुख्यमंत्री ने इस मामले में कार्रवाई का आश्वासन दिया है।
केंद्र सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय ने वर्ष 2014 में गरीब और असहाय लोगों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन शुरू किया था। मिशन के तहत अति गरीब, विधवा और विकलांगों को रोजगार से जोड़ा जाना है।
योजना के तहत गांव में महिला स्वयं सहायता समूह, ग्राम संगठन और कलस्टर बनाए गये। उत्तराखंड में महिला एवं बाल विकास विभाग स्वयं सहायता समूहों, ग्राम संगठनों और कलस्टर को कार्य देता है, लेकिन अब टेक होम राशन जैसी योजनाओं के लिए भी टेंडर जारी किये जाने की सूचना उन स्वयं सहायता समूहों को मिली है जो टेक होम राशन का काम कर रहीं हैं।
वह सब इसका विरोध कर रहे है,परंतु विभाग नई दिशा इस काम को यदि इस माध्यम से देना चाहता है। तो सरकार और विभाग यह जरूर ध्यान रखे कि, जो गलती उन्होंने की वह गलती आगे न दोहराएं। उनके साथ सख्त अनुबंध भविष्य के लिए होने चाहिए।और आगे यह काम स्वयं सहायता समूह से दहव न छीने।’
मिशन के तहत टेक होम राशन यानी टीएचआर, इंदिरा अम्मा भोजनालय और मिड डे मील का काम स्वंय सहायता समूहों को दिया जाता है। लेकिन इसमें भी विभागीय अधिकारी अपने चहेतों को ही काम देते है। धरातल पर टी एच आर, अम्मा भोजनालय, मिड डे मील का कार्य दलाली की भेंट चढ़ गया है।
शिक्षा विभाग से जुड़े एक अधिकारी मिड डे मील को समूह में देने के लिए समूह की महिलाओं से रिश्वत माँग रहा है। उसका कहना है कि,ब्लॉक से जिले तक को पैसा खिलाना पड़ता है । जबकि यह सब कार्य सभी स्वयंसेवी समूहों को दिया जाना चाहिए था। न कि कुछ खास को|
विकासनगर के स्वाभिमान महिला संगठन कलस्टर की अध्यक्ष कल्पना बिष्ट का कहना है कि, उनके कलस्टर में लगभग 700 महिलाएं है| उनमें से 200 बहनें और 2 दो विकलांग भाई ऐसे है, जिनकी आर्थिक स्थिति को मजबूत करना बेहद जरूरी है। लेकिन विभाग ने कभी उनको कोई काम नहीं दिया।
टीएचआर का काम अफसरों के चहेतों को ही दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि, सिर्फ कुछ महिलाओं को काम मिल रहा है। 6 साल से उन्हीं महिलाओं के पास ही टेक होम राशन ओर अम्मा कैंटीन का काम है।
एक ही महिला के पास टी एच आर, अम्मा कैंटीन और 10750 रु महीने का आई पी आर पी पद और काम है। एक ही महिला पर सरकारी खजाना लुटाया जा रहा है। जिले में बैठे अधिकारी अपने पद का दुरुपयोग कर रहे हैं। अधिकारी अन्य महिलाओं की उपेक्षा कर रहे है।जबकि जिन महिलाओं की विभाग तक पहुंच नहीं है,उन्हें छह साल बाद भी काम नहीं मिला।
उनका आरोप है कि, विकास नगर इलाके में पांच-छह महिलाओं को ही काम मिलता है और उन्हें चकराता तक टीएचआर का काम दिया गया है, जो कि नियमों के खिलाफ है। इसके अलावा समूहों के गठन के बाद जो बुनियादी सहायता राशि यानी स्टार्टअप फंड दिया जाना चाहिए था, वो छह साल बाद भी नहीं मिली है।
मिशन के तहत महिला समूहों को 2500 रुपये , ग्राम संगठनों को 75 हजार और कलस्टर को तीन लाख 25000 रुपये मिलने थे। जो कि आज तक नहीं मिले। आवाज उठाने पर मार्च माह में कुछ राशि खातों में डाली गई है|
कल्पना के अनुसार, मिशन की योजनाएं धरातल पर नहीं उतर रही है। खादी ग्राम उद्योग कुकूट विभाग को कई बार कल्पना द्वारा लिखा गया परंतु कोई जवाब नहीं मिला । एक महिला अपने क्लस्टर के लिए प्रशिक्षण और योजनाएं मांग रही है तो ये उसकी ना सुन कर इंतजार करते है सिफारिशों की।