उत्तराखंड के लोग अपनी ही जमीन पर मालिक बनने की जगह मात्र एक कर्मचारी (मजदूर)बनकर रह गए हैं ।अपनी जमीनों को भू माफियाओं को सस्ते दामों में बेचकर फिर उसी जमीन पर मजदूरी करना कितना दुःखदायी होता हैं ये आप समझ सकते हैं ।
भू-कानून के मुद्दे ने उत्तराखंड में अब आंदोलन से आगे बढ़कर राजनीतिक रूप ले लिया है। कई राजनीतिक पार्टी जैसे : कांग्रेस, यूकेडी, आम आदमी पार्टी सख्त भू-कानून के समर्थन में आ चुकी हैं।
भू-कानून की मांग को लेकर सभी लोगों का तर्क है कि जमीनें यूं ही सस्ती दाम पर बिकती रहीं तो एक दिन राज्य के लोग भू स्वामी के बजाय अपनी ही जमीनों पर उगे पर्यटन कारोबार में कर्मचारी बनकर रह जाएंगे।
प्रदेश में कई जगह ऐसे उदाहरण सामने आने भी लगे हैं। जहां गांव वाले अपनी जमीन बेचकर,अब वहीं आठ दस हजार की नौकरी कर रहे हैं।
कुछ उदहारण देखिये : –
१-मुक्तेश्वर के स्तबुंगा निवासी एक व्यक्ति ने छह साल पहले अपनी 12 नाली में से चार नाली जमीन बेची। उन्होंने बताया कि खेती में ज्यादा फायदा नहीं हो रहा था। पैसे की भी जरूरत थी। इसलिए जमीन बेचने का निर्णय लिया। नोएडा के एक व्यक्ति ने यहां अपना रिजॉर्ट बनाया, अब यहां शानदार रिजॉट बन चुका है, जिसमें नौकरी मिल गई है।
२-रामगढ़ के निकट बुंगी निवासी एक युवक ने बताया कि उनके पिता ने दस साल पहले अपनी तीन नाली जमीन लखनऊ की पार्टी को कॉटेज बनाने के लिए बेच दी थी। अब इसी कॉटेज में उनको 12 हजार महीना की तनखाव्ह मिल रही है। सोनू ने बताया कि उनका परिवार खेती करता है। खेती से फायदा नहीं हो पा रहा था। इसलिए लोग अपनी जमीन बेच रहे हैं।
३ : रामनगर ढिकुली के दो युवकों ने बताया कि 2001 में उन्होंने अपनी जमीन बेच दी। अब उक्त जमीनों पर रिजॉर्ट बन गए हैं। 2005 में रिजॉर्ट बनकर तैयार हुआ, अब वो रिजॉर्ट में ही देखरेख का काम कर रहे हैं। जहां उन्हें 10-10 हजार रुपये वेतन मिल रहा है। गांव के कई युवा भी रिजॉर्ट में ही काम करते है। ढिकुली में 150 के करीब रिजॉर्ट हैं।
४ : मसूरी-चबा मार्ग पर स्थित काणाताल अपने शानदार रिजॉर्ट के लिए नाम कमा चुका है। यहां सौड, जड़ीपानी, सनगांव, रौसलीधार, ठांगधार गांव की जमीनों पर कई बड़े बड़े रिजॉर्ट बने हैं। स्थानीय लोग यहां वाहन चालक, कुक, वेटर का काम कर रहे हैं। जबकि उक्त गांव फलपट्टी और सब्जी उगाने के लिए पहचान रखते थे। अब लोग खेती छोड़ छोटी मोटी नौकरी कर रहे हैं।
५ : ऋषिकेश से 15 किमी दूर पौड़ी यमकेश्वर ब्लॉक के मोहनचट्टी कस्बे में हाल के समय में एक दर्जन से ज्यादा रिजॉर्ट बने हैं। सिंदूड़ी गांव के पूर्व प्रधान अरुण जुगलान ने बताया कि बैरागढ़ गांव में उनकी कृषि भूमि है। उसमें से कुछ भूमि पर रिजॉर्ट बनाने की योजना बनायी थी।
सालभर पहले कृषक भूमि को व्यावसायिक उपयोग (143) कराने के लिए यमकेश्वर तहसील के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन भू परिवर्तन नहीं हुआ। जुगलान ने बताया कि यमकेश्वर प्रखंड के बैरागढ़ गांव के मोहन चट्टी क्षेत्र में करीब 12 रिजॉर्ट खुले हैं। सभी रिजॉर्ट दिल्ली, हरियाणा राज्य के लोगों के हैं।
पूर्व प्रधान के अनुसार इन रिजॉर्ट में करीब 30 प्रतिशत स्थानीय लोग काम करते हैं, जिन्हें न्यूनतम मासिक पारिश्रमिक पांच-छह हजार रुपये ही मिलता है।
अब इस तरह के हालातो को देखते हुए तो यही कहा जा सकता हैं कि सरकार को जल्द से जल्द उत्तराखंड में लोगो की भू कानून की मांग को संज्ञान में लेना चाहिए ।जिससे उत्तराखंडवासी अपनी ही जमीन पर मजदूर न बने ।