रिपोर्ट—महेश चन्द्र पन्त
2 अक्टूबर 1994 को रामपुर तिराहा मुजफ्फरनगर में उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों की बरसी पर , चिन्हित राज्य आंदोलनकारी समिति (रजि) के तत्वाधान में उत्तराखंड के विभिन्न स्थानों पर समिति से जुड़े पदाधिकारियों के नेतृत्व में स्थानीय जनप्रतिनिधियों, सदस्यों, पदाधिकारियों व अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की व 2 अक्टूबर को *काला दिवस के रूप में मनाया।
राज्य बनने के 21 वर्षों के उपरांत भी आंदोलन में शहीद हुए आंदोलनकारियों को न्याय दिलाने के मामलों में सरकार की ढिलाई ने शहीदों को न्याय पाने से वंचित रखा। तत्कालीन उत्तराखंड सरकार कि न्यायालय में मजबूत पैरवी न होने के कारण इस वीभत्स व जघन्य हत्याकांड के आरोपी बरी हो गए।
उत्तराखंड राज्य बन जाने के बावजूद भी इस गंभीर मामले पर विभिन्न सरकारें इस जघन्य कांड की सीबीआई जांच की मांग से भी आंखें मूंद रही। इस सामूहिक हत्याकांड के 27 वर्षों के पश्चात भी शहीद व उनके परिवारों को न्याय न दिला पाना, शहीदों के प्रति विभिन्न सरकारों की उपेक्षा पूर्ण मानसिकता को दर्शाता है।
विगत दिनों, चिन्हित राज्य आंदोलनकारी समिति (रजिस्टर्ड) की एक बैठक हरिद्वार में आयोजित की गई थी। उस बैठक में 2 अक्टूबर का दिन काला दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया था, इसी परिपेक्ष में समिति के पदाधिकारियों और सदस्यों ने
समिति के बैनर तले काला दिवस के रूप में दिवंगत शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की।