उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के मामले पर पूर्व सीएम हरीश रावत व पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत आमने-सामने हो गए हैं।
पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने आयोग को भंग कर देने की बात कही और इसके गठन को गलत ठहराया |
तो हरदा ने पलटवार करते हुए कहा कि अगर त्रिवेंद्र रावत ने फैसला लिया होता तो आज धामी की धूम नही बल्कि रावतों की धूम होती।
त्रिवेंद्र ने कहा था…
उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग बनाने की मंशा सही नहीं थी। ऐसी संस्थाओं की जरूरत नहीं है जो राज्य की साख को गिराने का काम करें। यूकेएसएसएससी भर्ती परीक्षाओं में घपले ही घपले सामने आ रहे हैं। एसटीएफ अब तक परीक्षाओं में घपले के आरोप में आयोग के पूर्व अध्यक्ष व पूर्व प्रमुख वन संरक्षक डा आरबीएस रावत, पूर्व सचिव मनोहर कन्याल, परीक्षा नियंत्रक आरएस पोखरिया को गिरफ्तार कर चुकी है, वहीं पूर्व सचिव संतोष बड़ोती को संस्पेंड किया जा चुका इसके साथ ही अभी तक एसटीएफ 44 से ज्यादा गिरफ्तारियाँ इस मामले में हो चुकी है। ऐसी संस्थाओं को भंग कर देना चाहिए।
हरीश रावत का पलटवार
यारा बड़ी देर कर दी समझ आते-आते। 2017 में जब हमने जांच शुरू की थी, जब आपके मंत्री ने विधानसभा के पटल पर स्वीकार किया था कि गड़बड़ियां पाई गई है। जांच रिपोर्ट शासन को मिली है। यदि तब इतना गुस्स दिखाया होता तो फिर धामी की धूम नहीं होती, रावतों की धूम होती। धन्य है उत्तराखंड, दरवाजे की चौखट पर सर टकराए तो घर ही गिरा दो। विधानसभा में भर्तियों में धांधलियां हुई तो विधानसभा भवन ही गिरा दो संस्थाएं खड़ी की हैं, यदि संस्थाओं का दुरुपयोग हुआ है तो उसको रोकिए, दृढ़ कदम उठाइए संस्थाएं तोड़ने से काम नहीं चलेगा। यदि हमने मेडिकल और उच्च शिक्षा का वॉक इन भर्ती बोर्ड नहीं बनाए होते तो आज डाक्टर्स और उच्च शिक्षा में टीचर्स की भयंकर कमी होती। रावत ने कहा है कि यदि गुस्सा दिखाना ही है तो अपनी पार्टी के लोगों को दिखाइए न, ये जितने घोटालेबाज अब तक प्रकाश में आए हैं इनका कोई न कोई संबंध भाजपा से है और विधानसभा भर्ती, यदि घोटाला है तो उसकी शुरुआत से लेकर के कहाँ तक कहूं, तो गुस्सा सही दिशा की तरफ निकलना चाहिए। उत्तराखंड का संकल्प होना चाहिए कि जिन लोगों ने भी इन संस्थाओं में गड़बड़ियां की हैं, हम उनको ऐसा दंड देंगे कि कोई दूसरी बार गड़बड़ी करना तो अलग रहा, कोई भूल करने की भी गलती न करे।