आखिर किसके दबाव में है प्रशासन। यूजेवीएनएल के पत्र पर क्यों नहीं हो रही कार्यवाही?
खनन वालों के फायदे के लिए शक्ति नहर टूटने, विद्युत उत्पादन प्रभावित होने और जनहानि की आशंका का भी नहीं लिया संज्ञान?
ह्यूमन राइट्स एंड आरटीआई एसोसिएशन ने यूजेवीवीएनएल के पत्र के बावजूद शक्ति नहर किनारे के सर्विस रोड पर खनन से भरे वाहनों की आवाजाही पर रोक न लगाए जाने पर हैरानी जताई है। इस संबंध में एसोसिएशन ने शिकायती पत्र अध्यक्ष/सदस्य, मानव अधिकार आयोग देहरादून को भेजा। पत्र में अध्यक्ष अरविंद शर्मा और महासचिव भास्कर चुग ने कहा कि, पत्र के माध्यम से स्पष्ट रूप से निगम द्वारा प्रशासन को अवगत कराया गया है कि, विभाग के स्वामित्व वाली सर्विस रोड जोकि शक्ति नहर के दाई और है और इसका रखरखाव भी विभाग द्वारा ही किया जाता है, इस मार्ग पर विद्यालय एवं आवासीय कॉलोनी स्थित है, साथ ही ढकरानी गांव के ग्राम वासियों द्वारा उक्त मार्ग का उपयोग रोजमर्रा के कार्यो के लिए किया जाता है।
इस पर धड़ल्ले से नावघाट वाया भीमावाला से खनन सामग्री लेकर भारी वाहन आवागमन कर रहे हैं। उक्त मार्ग भारी वाहनों के कमर्शियल उपयोग हेतु नहीं है। खनन सामग्री से भरे वाहनों के आवागमन के कारण उक्त मार्ग क्षतिग्रस्त हो गया है। जिससे शक्ति नहर के क्षतिग्रस्त होने की प्रबल संभावना है। और नहर के क्षतिग्रस्त होने की दशा में प्रदेश सरकार को 114 मेगावाट विद्युत की हानि के साथ ही जनहानि होने की प्रबल संभावना है। उक्त पत्र में लिखा है कि ग्राम वासियों द्वारा सीएम पोर्टल पर भी प्रकरण की शिकायत कई बार दर्ज कराई गई है एवं विभाग के अधिशासी अभियंता परियोजना जानपद अनुरक्षण ढालीपुर द्वारा भी विभिन्न पत्रों के माध्यम से उक्त मार्ग पर भारी वाहनों की आवाजाही रोकने हेतु अनुरोध किया जा चुका है।
उक्त संदर्भ में एसोसिएशन का कहना है कि, प्रदेश के विद्युत उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली शक्ति नहर के क्षतिग्रस्त होने कि संबंधित विभाग द्वारा स्पष्ट आशंका जताए जाने पर साथ ही भारी जनहानि की भी आशंका जताए जाने के बावजूद ऐसे कौन से कारण है कि तथाकथित जीरो टॉलरेंस का दावा करने वाली सरकार के अधिकारी नहर को और जनहानि से बचाने के लिए कार्यवाही नहीं कर रहे हैं? क्या खनन करने वाले लोगों के द्वारा लुटाए जाने वाले धन का प्रभाव है? या किसी प्रभावशाली राजनेता का भरपूर दबाव है? कि जो अधिकारी भारी जनहानि की भी परवाह नहीं कर रहे हैं?
प्रथम प्रधानमंत्री स्वर्गीय पंडित जवाहरलाल नेहरु के द्वारा पछवा दून को दी गई अनुपम सौगात प्रोजेक्ट एरिया को ऐसे ही क्या बर्बाद होने दिया जाएगा? क्या क्षेत्र की लाइफ शक्ति नहर को बचाना प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं है? क्या क्षेत्र के लोगों को नहर की क्षति ग्रस्त होने की दशा में बाढ़ में मरने के लिए छोड़ दिया जाना उचित होगा? शक्ति नहर के पुल भी अपनी आयु पूरी कर चुके हैं और उनके वाहनों के भारी दबाव के कारण एक पुल पूर्व में भी टूट चुका है. फिर भी शक्ति नहर के पुलों पर आज भी खनन वाहनों का आवागमन बदस्तूर जारी है। जो हम सभी के मानव अधिकारों का बहुत बड़ा उल्लंघन है।