रिपोर्ट/बिजेन्द्र सिंह राणा
उत्तराखंड में विगत 4 माह में दो मुख्यमंत्रियों को इस्तीफा देना पड़ा।शुक्रवार 2 जुलाई को मुख्यमत्री तीरथ सिंह रावत ने भी इस्तीफा दे दिया हैं ।इसी के साथ मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के नाम सबसे कम समय तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहने का एक अनोखा रिकॉर्ड दर्ज हो चुका है।
उत्तराखंड में सत्ता परिवर्तन की खबरें खूब सुर्खियां बटोर रही हैं । ऐसा क्या हुआ जो सीएम तीरथ सिंह को अपनेा इस्तीफा देना पड़ा ।
तीरथ सिंह रावत ने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को दिए खत में कहा है कि, वे जनप्रतिधि कानून की धारा 191 ए के तहत छह माह की तय अवधि में चुनकर नहीं आ सकते। रावत ने कहा, ‘मैं छह महीने के अंदर दोबारा नहीं चुना जा सकता। ये एक संवैधानिक बाध्यता है। इसलिए अब पार्टी के सामने मैं अब कोई संकट नहीं पैदा करना चाहता और मैं अपने पद से इस्तीफे की पेशकश कर रहा हूं। आप मेरी जगह किसी नए नेता का चुनाव कर लें।’
इसके अनुसार माने तो उप चुनाव की स्थिति स्पष्ट न होने के कारण मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को इस्तीफा देना पड़ा। परंतु इस सत्ता परिवर्तन के तार क्या कहीं बंगाल से जुड़े हैं।
उत्तराखंड सत्ता परिवर्तन का बंगाल कनेक्शन।
उत्तराखंड सत्ता परिवर्तन का कहीं ना कहीं प्रभाव बंगाल की राजनीति पर भी पड़ने वाला है ।क्योंकि तीरथ सिंह रावत की तरह ही मुख्यमंत्री के पद पर बने रहने के लिए ममता बेनर्जी को भी 6 माह के भीतर विधानसभा का सदस्य बनने की कानूनी बाध्यता है।
अगर उत्तराखंड में उपचुनाव होते तो इस स्थिति में बंगाल में वीर भूमि और भवानीपुर सीटों पर भी उपचुनाव कराने पड़ते।उपचुनाव का नतीजा निकलता कि, ममता बनर्जी विधानसभा सीट जीतकर सुरक्षित रूप से अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा करती। परंतु अब ऐसा हो पाना असंभव सा प्रतीत होता है। क्योंकि चुनाव आयोग ने कोरोना संक्रमण के इस वर्ष कोई भी उपचुनाव कराने में असमर्थता दिखाई है।
अब उपचुनाव ना होने के कारण ममता बनर्जी को किसी अपने चहेते विधायक को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपनी होगी ।