ज्ञानेंद्र कुमार
प्रदेश में एक नयी सुगबुगाहट जन्म लेने लगी है। अगर वो सच है ( ज़िसकी प्रबल संभावनायें हैं ) तो यह समझ लीजिये कि प्रदेश के संविदा पर काम कर रहे हजारों लोगों और नौकरी की सोच रहे बेरोजगारों के हाथ में कटोरा आने ही वाला है।
खबर यह जन्म ले रही है कि प्रदेश में योजनाओं / विभागों में काम कर रहे संविदा कर्मियों को मार्च 2020 के बाद आउट सोर्सिंग कंपनियों के हवाले कर दिया जायेगा। चाहे वो कितने भी वर्षों से काम क्यों ना कर रहे हों। यह आउटसोर्स एजेंसीज भी प्रदेश से बाहर की ही होंगी, क्योंकि स्थानीय कंपनीज मानकों को पूरा ही नहीं कर पायेंगी। यह योजनायें चाहे केन्द्र पोषित हों या राज्य की, होने की तो यही संभावनायें जतायी जा रही हैं।
वैसे यह प्रक्रिया पहले से ही शुरू हो चुकी है। महिला कल्याण एवं बाल विकास विभाग में यह ज़िम्मा चंडीगढ़ के पीपीएस ग्रुप को और पंचायती राज में लखनऊ की एबीएसएन को भर्ती का काम दिया जा चुका है। इन भर्तियों में एक एक पद के लिये कितने रूपये दिये गये हैं, यह चर्चा भी बेरोजगार आम करते हैं।
अब यही सुनने में आ रहा है कि 31 मार्च के बाद संविदा कर्मी विभाग के नहीं बल्कि उस विभाग के लिये चुनी गयी के साथ अनुबंध करेंगे वो भी उसी कंपनी की शर्तों पर। संविदा कर्मी हैं तो कुछ दावा भी सरकार के समक्ष नहीं रख सकते। उन्हें वही वेतन लेना होगा जो कंपनी देना चाहेगी। संभावना यही जतायी जा रही है कि प्रत्येक संविदा कर्मी का वेतन 10-25% तक कम कर दिया जायेगा। अगर कर्मचारी विरोध करता है तो बाहरी राज्यों के बेरोजगार हैं ही।
कुछ दिन पूर्व ही मुख्यमंत्री ने “नौकरियों की बहार आने” का दावा किया है। उसे तो चलो कोई भी गंभीरता से नहीं ले रहा लेकिन मौजूदा संविदा कर्मियों के भविष्य पर तो तलवार की संभावना लग ही रही है।
सरकार तो इसकी घोषणा एकदम आखिरी क्षण में ही करेगी क्योंकि तब इतना कम समय होगा कि संविदा कर्मी, उस कंपनी की मनमानी का विरोध करेंगे या परिवार की रोजी रोटी के लिये झुक जायेंगे ? 108 में भी तो यही हुआ था।
और मीडिया से यह उम्मीद मत रखिये कि वो इस बात पर सरकार से कोई स्पष्टिकरण मांग पायेगी सो अब जो कुछ करना है वो संविदा कर्मियों को ही करना है।
( यह तो बताने की ज़रूरत नहीं कि ऐसे सिस्टम में कंपनी कैसे प्रवेश करती हैं ? कहाँ कहाँ मैनेजमेंट किया जाता है )